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शब्द-शब्द परमाणु

जय प्रकाश त्रिपाठी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :208
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16195
आईएसबीएन :978-1-61301-732-6

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शस्त्र का अर्थशास्त्र और तीसरा विश्वयुद्ध : शब्द-शब्द परमाणु

कवि उदय प्रकाश लिखते हैं- 'जब भी रचना और कर्म के बीच की खाई को पाटने का सवाल उठाया जाएगा, फेदेरिको गार्सिया लोर्का का नाम ख़ुद-ब-ख़ुद सामने आएगा। बतलाना नहीं होगा कि रचना और कर्म की खाई को नष्ट करते हुए लोर्का ने समूचे अर्थों में अपनी कविता को जिया। यह आकस्मिक नहीं है कि पाब्लो नेरूदा और लोर्का की रचनाशक्ति फ़ासिस्ट शक्तियों के लिए इतना बड़़ा ख़तरा बन गईं कि दोनों को अपनी अपनी नियति में हत्याएँ झेलनी पड़ीं। फ़ासिज़्म ने मानवता का जो विनाश किया है, उसी बर्बरता की कड़ी में उसका यह कुकर्म और अपराध भी आता है जिसके तहत उसने इन दोनों कवियों की हत्या की। लोर्का को गोली मार दी गई और नेरूदा को... नेरूदा और लोर्का गहरे मित्र थे।'

इस किताब के आख़िरी पन्नों में लोर्का, ब्रेख्त, पाब्लो, नाज़िम, मिगुएल, इल्या कामिन्सकी, हो ची मिन्ह, येहूदा आमिखाई, आदम ज़गायेव्स्की, सिनान अन्तून, विस्साव शिम्बोर्स्का, हालीना, ग्युण्टर ग्रास के शब्दाभास भी इसलिए कि हमारे सुधी पाठक भी, उनके शब्दों की तरह शिद्दत से विश्व मानवता का चेहरा नोच रहे जंगली अभिजातों की समय रहते रही शिनाख़्त कर सकें। यह शिनाख़्त ज़रूरी क्यों है, क्योंकि प्रथम विश्वयुद्ध में नौ करोड़ से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी, और; जिनमें कुल 8 लाख में से 47,746 भारतीय सैनिक भी मारे गए और 65,000 घायल हो गए थे, छह वर्षों तक जारी रहे दूसरे विश्व युद्ध में भी पांच करोड़ से ज्यादा लोग मारे गए थे। यह तादादा कोई मामूली नहीं, और अब; तीसरे विश्वयुद्ध के अंदेशों के बीच यूक्रेन-रूस संघर्ष में मारे गए लोगों के बारे में एक चुनौती स्वतंत्र सटीक गणना की भी है। इतना ही नहीं, क्रिस हेड्गेस तो लिखते हैं कि 'मानव समाज के लगभग साढ़े तीन हजार वर्षों के लिखित इतिहास में, केवल 268 वर्ष शान्तिपूर्ण रहे हैं, युद्धों और हिंसक संघर्षों में लगभग 34.17 करोड़ लोग मारे जा चुके हैं। यह संख्या एक अरब तक बताई जाती है।' और तीसरा विश्वयुद्ध, फिर तो धरती पर शायद ही कोई जन-जीवन बचे। फिर तो नरसंहारक महाशक्तियों के विरुद्ध पूरी दुनिया को, जितना जल्दी हो सके, एकजुट संगठित होना ही होगा।

कमोबेश, इन्ही अर्थों में, मैक्स सीत्ज़ लिखते हैं, 'जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने उन्नीसवीं शताब्दी में काफ़ी कुछ लिखा, लेकिन आज भी इसमें कोई विवाद नहीं है कि उनकी दो कृतियां 'कम्युनिस्ट घोषणा पत्र' और 'दास कैपिटल' ने दुनिया के करोड़ों लोगों पर राजनीतिक और आर्थिक रूप से निर्णायक असर डाला। ...मार्क्स के चार विचार साम्यवाद की असफलता के बावजूद आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं।' ब्रिटेन के स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में जर्मन इतिहासकार अलब्रेख़्त रिसल कहते हैं, 'भूमंडलीकरण के पहले आलोचक थे मार्क्स। उन्होंने दुनिया में बढ़ती ग़ैरबराबरी के प्रति चेतावनी दी थी।' 2007-08 में आई वैश्विक मंदी ने एक बार फिर उनके विचारों को प्रासंगिक बना दिया।'

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    अनुक्रम

  1. अनुक्रमणिका

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