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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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आधुनिक भारत के निर्माता

अध्याय 20  तिलक, गोखले और गांधी

तिलक और गोखले के जीवन में अपूर्व साम्य है। दोनों का जन्म कोंकण में हुआ परन्तु दोनों के जीवन का अधिकांश भाग पूना में बीता। दोनों ने शिक्षक के रूप में अपना जीवन प्रारम्भ किया। तिलक गोखले से दस वर्ष बड़े थे। अतः उनके उदाहरण से प्रेरणा प्राप्त कर गोखले डेक्कन एजुकेशन सोसायटी के आजीवन सदस्य बन गए। दोनों ने एक ही मंच से अपना सार्वजनिक जीवन प्रारम्भ किया। दोनों ने राष्ट्र की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया। दोनों ही कांग्रेस के आजीवन सदस्य रहे। गोखले तो 1905 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने और तिलक से भी अध्यक्ष बनने का अनुरोध कई बार किया गया, किन्तु उन्होंने कभी भी कांग्रेस का अध्यक्ष पद सुशोभित नहीं किया गया। दोनों को पर्याप्त प्रसिद्धि और लोकप्रियता प्राप्त हुई और दोनों के नाम हमारे राष्ट्रीय स्वाधीनता-संग्राम के इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं।

यह थी उनकी ऊपरी समानता, पर दोनों के विचारों में बुनियादी मतभेद थे और इसी कारण वे एक दूसरे से बिल्कुल अलग थे। वह मतभेद व्यक्तिगत स्वभाव से लेकर राजनैतिक सिद्धान्तों और आदर्शों के क्षेत्र तक फैला था। गोखले नम्र और भावुक व्यक्ति थे; तिलक स्वेच्छा सम्पन्न सिद्धान्तवादी थे। गोखले गंगा के समान थे, ''जिसमें स्नान कर आदमी निर्मल हो जाता है,'' किन्तु तिलक अथाह महासागर के समान थे, जिसमें' कूदना खेल नहीं। गोखले को रानडे का शिष्य होने का गर्व था, पर तिलक किसी को भी अपना गुरु मानने को तैयार न थे। गोखले अपने आप तो ठीक मार्ग पर रहते, किन्तु जब फिरोजशाह मेहता गलत रास्ते पर होते, तब वह यह जानते हुए भी उनका साथ दे देते थे; किन्तु तिलक स्वयं जो सोचते थे, उसे ही सही समझते थे। गोखले प्रशंसा के लिए लालायित रहते थे, किन्तु तिलक कर्तव्य को ही अपना पुरस्कार मानते थे। शास्त्री के शब्दों में गोखले उस कोमल वल्लरी के समान थे, जिसे फैलने के लिए किसी वृक्ष के सहारे की जरूरत पड़ती है और तिलक स्वयं एक ऐसे विशाल बरगद के वृक्ष के समान थे, जिसमें से निकली अनेक शाखाएं चारों ओर फैली रहती हैं।

राजनीति में गोखले उदार विचारों के थे। वह राजनीति का आध्यात्मीकरण चाहते थे। तिलक उग्र विचारों के थे, जिस पर उन्हें गर्व था। उनका विचार था कि राजनीति दुनियादार लोगों का एक खेल है। गोखले समझते थे कि ब्रिटिश सम्पर्क नियति का विधान है और भारत के हित में है। तिलक भारत पर ब्रिटिश विजय को न्यायोचित ठहराने के लिए इस प्रकार की दैवी इच्छा और नियति पर विश्वास करने वाले नरम दलवालों की तीव्र भर्त्सना करते थे। गोखले अनुनय विनयपूर्वक समझाने-बुझाने, अपील करने और वैधानिक ढंग से विरोध प्रकट करने में विश्वास करते थे। तिलक आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता और शक्ति पैदा करने की कोशिश करते थे।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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