जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
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अन्ततः पत्रिकाओं के स्वामित्व में परिवर्तन करना आवश्यक हो गया। तिलक 'केसरी' को अपने नियंत्रणाधीन रखना चाहते थे, किन्तु फर्ग्युसन कॉलेज के अपने अध्यापन-कार्य और मराठी-रंगमंच के प्रति बढ़ती हुई अपनी रुचि के कारण, एक सुयोग्य लेखक होने के बावसूद भी, केलकर को 'मराठा' का सम्पादक बने रहने की चिन्ता न थी। ह. ना० गोखले को केवल प्रेस के व्यवसायिक विषयों की ही चिन्ता थी। अतः सन् 1891 के अन्त में जाकर निर्णय हो ही गया कि 'केसरी' एवं 'मराठा' दोनों के स्वामित्व को तिलक संभालें और आर्यभूषण प्रेस गोखले और केलकर के हाथों में रहे, जिसके प्रति दोनों पत्रिकाएं 7,000 रुपयों की देनदार थीं।
1890 और 1891 साल तिलक के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण थे। इन्हीं दिनों जीवन के चौराहे पर खड़े तिलक ने बीते वर्षो का सिंहावलोकन कर भविष्य की राह निश्चित की थी। शिक्षाशास्त्री के रूप में दस वर्षों में उन्हें अपने मित्रों से मनमुटाव और अपने आदर्शों के महल के टूटने के अलावा, कुछ और न मिला था। हां, दूसरी ओर इस बीच उनकी प्रसिद्धि एक पत्रकार के रूप में जरूर हो गई थी और उन्हें जनसेवा के तीखे-मीठे अनुभव हो चुके थे। फिर भी स्वार्थ-सिद्धि के लिए जनकार्य से मुंह मोड़ने का विचार उनके मन में एक क्षण को भी न आया। उल्टे सोसाइटी से छुटकारा पाने के बाद, उनके सामने देश-सेवा के नए-नए रास्ते खुल गए। सांसारिक दृष्टि से उनकी अवस्था सन्तोषजनक नहीं कही जा सकती थी, क्योंकि वह भारी कर्ज में डूबे हुए थे। फिर भी उनके चरण अपने लक्ष्य की ओर बड़ी दृढ़ता से बढ़ते जा रहे थे और जैसा कि, नेपोलियन ने कहा है, इन दोनों पत्रिकाओं के रूप में उनके हाथ में 500 संगीनें मौजतद थीं।
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- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट