लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

आधुनिक भारत के निर्माता

इन सारी घटनाओं का सिंहावलोकन करने से पता चलता है कि इनसे देश को अत्यन्त लाभ हुआ। ये दोनों महापुरुष इन सोसायटियों के बन्धन से परे होकर अपने-अपने स्वतन्त्र रास्ते ग्रहण कर सके। श्री तिलक के सामने पहली समस्या जीविकोपार्जन का कोई और जरिया ढूंढ़ने की थी, जिससे उन्हें समाज-सेवा के लिए भी पर्याप्त समय मिल सके। किन्तु ऐसी परिस्थिति में भी कभी भी सरकारी नौकरी करने का विचार उनके मन में नहीं आया। 1889 में आरम्भ किए गए कानून का क्लास लेने से उन्हें बहुत साधारण, किन्तु नियमित आय होती थी। लेकिन उन्होंने अपने दो मित्रों की साझेदारी में जो रूई-ओटाई का कारखाना हैदराबाद राज्य के लाटूर नामक जगह में खरीदा था, उससे आशानुसार कोई भी लाभ नहीं होता था।

डेक्कन एजुकेशन सोसायटी से त्यागपत्र देने के बाद तिलक को 'केसरी' और 'मराठा' की ओर अधिक ध्यान देने का अवसर मिला। इन पत्रिकाओं ने प्रभावपूर्ण पत्रकारिता से जनता में अपना स्थान बना लिया था, किन्तु ये पत्रिकाएं कई वर्षों तक घाटे में ही चलती रहीं। सोसायटी के पंजीकरण के बाद उसके सदस्य इन पत्रिकाओं के प्रभारी हो गए, किन्तु यह व्यवस्था चल न सकी और श्री आगरकर ने भी उनका भार संभालने से अस्वीकार कर दिया, तब उन्हें अक्तूबर, 1886 में केलकर को सौंप दिया गया। तिलक का कहना है कि श्री आगरकर ने 'केसरी' और 'मराठा' को बन्द करने तक की भी सलाह दी थी। वास्तव में श्री आगरकर को आत्माभिव्यक्ति के अवसर से वंचित हो जाने का इतना दुख हुआ कि उन्होंने 'सुधारक' नामक एक नया पत्र गोखले की सहायता से निकाला, जिसके अंग्रेज़ी-सतम्भ वह लिखा करते थे। 'सुधारक' के निकलते ही न केवल आगरकर और तिलक के बीच मतभेद बढ़े, बल्कि सोसायटी के अन्य सदस्यों के बीच मतभेद की खाई और भी अधिक चौड़ी हुई, जबकि प्रत्येक पक्ष अपनी-अपनी पत्रिकाओं के माध्यम सें अपने-अपने मत पर जोर देने लगा।

तिलक का सम्बन्ध पत्रिकाओं से बना रहा और 1887 में उन्होंने अपने को 'केसरी' का प्रकाशक घोषित कर दिया, जिसका मतलब था कि वह उसके सम्पादक भी हैं। हा. ना. गोखले की सलाह पर जिन्हें आर्यभूषण प्रेस का, जहां ये दोनों पत्रिकाएं मुद्रित होती थीं, कार्यभार संभालने के लिए बम्बई से बुलाया गया था, तिलक इन दोनों पत्रिकाओं की गिरवी का स्वामित्व ग्रहण करने के लिए बाध्य हुए। 'केसरी' के पाठकों की संख्या जल्दी ही वढ़कर 5,000 तक पहुंच गई, किन्तु इससे जो आय होती थी, वह 'मराठा' द्वार। उठाए जानेवाले घाटे में समाप्त हो जाती थी। 'मराठा' के सम्पादक केलकर के विचार आगरकर के सुधारवादी विचारों से अधिक मिलते थे, अतः दोनों पत्रिकाओं द्वारा व्यक्त परस्पर-विरोधी विचारों से कुछ अप्रसन्नता भी बढ़ी। जहां एक ओर 'केसरी' और 'सुधारक' जलते हुए सामयिक प्रश्नों पर एक दूसरे का घनघोर विरोध कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर 'मराठा' अपने ही सहयोगी 'केसरी' के विरुद्ध था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

लोगों की राय

No reviews for this book