लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

आधुनिक भारत के निर्माता

ईसाई धर्म ने केशवचन्द्र सेन जैसे बहुत-से व्यक्तियों को आकर्षित किया। ईसाई-धर्म-प्रचारकों ने भी हिन्दू-समाज की हुटियों और बुराइयों को दिखलाकर परिस्थिति से लाभ उठाने की बड़ी चेष्टा की। स्वामी दयानन्द सरस्वती के ईसाई-धर्मप्रचारों के विरुद्ध आन्दोलन आरम्भ करने के पूर्व भी श्री विष्णुबुआ ब्रह्मचारी जैसे व्यक्ति उन धर्म-प्रचारकों के हिन्दू-धर्म-विरोधी कार्यों का सामना कर रहे थे।

विष्रगुशास्त्री चिपलूणकर की 'निबन्धमाला' के आरम्भ होते ही, महाराष्ट्र में पुनरूत्थानवादी आन्दोलन उठ खड़ा हुआ। उस समय तक हिन्दू धर्म के समर्थक भी केवल आघातों से भारतीय संस्कृति की रक्षा का प्रयत्न भर कर रहे थे। किन्तु चिपलूणकर के लेखादि में इस तरह की बचाव और क्षमायाचना की भावना न थी। उन्होंने न केवल विदेशी ईसाई-धर्मप्रचारकों पर ही, बल्कि देशी समाज-सुधारकों पर भी चोटें कीं, जो विशेषकर पाश्चात्य तौर-तरीकों और रीति-रिवाजों की नकल-भर करना चाहते थे। हालांकि उनके तर्क कभी-कभी बड़े भिन्न-स्तरीय और गंवारू होते थे, फिर भी यह भी सच है कि उनके तर्क अपने विपक्षियों पर सीधी चोट करते थे।

लेकिन समाज-सुधारकों और रूढ़िवादियों का विवाद तब आरम्भ हुआ, जब तिलक युवक हो गए। डेक्कन कॉलेज के अपने छात्र-जीवन में उनमें और आगरकर में अधिकतर वाद-विवाद इसी विषय पर होता था। आगरकर राष्ट्रवादी होने के साथ-साथ समाज-सुधार के कट्टर समर्थक थे। दूसरी ओर तिलक समाज-सुधार से पहले राजनैतिक सुधार करने पर जोर देते थे, किन्तु वह कभी भी रूढ़िवादी न थे और पुरानी परिपाटी को बदलने के पक्ष में थे। किन्तु तिलक ने सदा समाज-सुधारकों का विरोध किया, इसलिए लोगों का उन्हें रूढ़िवादी समझना स्वाभाविक ही है। यद्यपि वह भी हिन्दू समाज को पुनर्जीवित करने के पक्षपाती थे, तथापि उन्हें हिन्दू धर्म के सिद्धान्त, दार्शनिक

परम्पराएं और नैतिक मूल्य बहुत प्रिय थे। उनकी मान्यता थी कि ऐसे परिवर्तन धीरे-धीरे सहमति से ही किए जाने चाहिएं, किसी दबाव से नहीं। उनका विश्वास था कि सार्वजनिक शिक्षा ही समाज-सुधार का सबसे उत्तम साधन है और इसके प्रसार में एक आदर्श व्यवहार सौ उपदेशों से अधिक प्रभावशाली होगा। उस समय देश में सुधारकों के उपदेश और उनके आचरण में जो महान भेद था, उससे तिलक का उनके प्रति तिरस्कारपूर्ण व्यवहार स्वाभाविक ही था।

जो भी उस समय के इतिहास का अध्ययन करेगा, वह इसी निष्कर्ष पर पहुंचेगा कि उन सुधारको ने विवेक की अपेक्षा उत्साह से अधिक काम लिया। एक ओर आगरकर जैसे व्यक्ति धर्मोपदेश के कार्य उत्साह से कर रहे थे, दूसरी ओर श्री बहरामजी मलबारी जैसे लोगों को केवल पाश्चात्य सभ्यता की नकल करना ही खलता था। श्री मलबारी जनता को समाज-सुधार के प्रति जागृत करने की जगह 5000 मील दूर ब्रिटेन में एक आन्दोलन चला रहे थे। तिलक इसका भी विरोध करते थे कि कोई भी सुधार अंग्रेज शासकों द्वारा भारतीयों पर लादा जाए, न केवल इसलिए कि अंग्रेज विदेशी और दायित्वशून्य थे बल्कि इसलिए भी कि उनकी सारी धार्मिक एवं सामाजिक व्यवस्था ही भारतीयों से भिन्न थी।

तिलक ने विशेषकर उन लोगों का विरोध किया जो समाज-सुधार का आधार वेद-पुराणों में ढूंढ़ते थे। तिलक को उनके पाखण्ड का भण्डाफोड़ करने में कोई कठिनाई न हुई। उन्होंने रा० गो० भांडारकर जैसे प्रकाण्ड विद्वान का भी विरोध किया तर्क का तर्क से मन्त्रों का मन्त्रों से जवाब देकर उनकी सभी बातों का खण्डन किया। एक बार समाज-सुधार की आवश्यकता मान लेने पर धर्म-पुस्तकों के आधार पर तर्क देना सचमुच ही हास्यस्पद है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai