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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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तिलक ने उच्च नयायालय के निर्णय का स्वागत किया और कहा कि इससे उसने हिन्दू-कानून तथा उसके रीति-रिवाजों का बल प्रदान किया है। रानाडे से हुए गम्भीर तर्क-वितर्क में उन्होंने धर्म-ग्रन्थों के अपने गहन अध्ययन का सहारा लेकर इस मत का खण्डन किया था कि किसी पत्नी को अपने पति के साथ रहने को बाध्य नहीं किया जा सकता। तिलक ने इस विषय पर 'केसरी' में जो दो लेख लिखे थे, वे उनकी महान आवेशपूर्ण प्रतिभा के परिचायक थे। किन्तु लगता है कि वह इस विवाद के मानवीय पहलुओं को नज़रअन्दाज करके अपने को इन लेखों में महिलाओं की मुक्ति के विरोधी के रूप में पेश किया था।

यह मानना पड़ेगा कि बहस-मुहाबसे के आवेश में आकर तिलक प्रायः ऐसी हठधर्मियां कर जाते थे और तदनुसार ही विचार भी प्रकट कर देते थे। इसके बाद ऐसे कई विवाद एक के बाद एक उठ खड़े हुए, जिनमें तिलक ने कई बार अपने को रूढ़िवादी मत के एक कट्टर समर्थक के रूप में प्रस्तुत किया। इन्हीं कारणों से सुधारकों ने उन्हें रूढ़िवादी करार दिया, किन्तु वह कभी रूढ़िवादियों के भी प्रिय नहीं हो सके, क्योंकि वह उनसे उतने ही भिन्न विचार रखते थे, जितना कि सुधारकों से। तिलक की इस अस्पृहणीय स्थिति का भास 1891 में हुआ, जब 9 जनवरी को मलबारी और उनके मित्रों के प्रयत्नों के फलस्वरूप इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल में 'एज ऑफ कन्सेन्ट बिल' पेश किया गया। इस विधेयक में प्रस्ताव किया गया था कि 12 वर्ष से कम अवस्था की पत्नी के साथ सम्भोग करना दण्डनीय होना चाहिए और बाल-विवाह में पत्नी को अधिकार होना चाहिए कि वह वयस्क होने पर अगर चाहे, तो पति का परित्याग कर दे।

तिलक ने इस विधेयक को हिन्दू-धर्म में हस्तक्षेप कहकर उसके विरुद्ध एक आन्दोलन खड़ा कर दिया। उन्होंने इन प्रस्तावों का विरोध ही नहीं किया, बल्कि समाज-सुधार-विषयक कुछ नए प्रस्ताव भी रखे, जिनको यहां पेश करना आवश्यक है, क्योंकि वे तिलक के प्रति-क्रियावादी होने के आरोप का खण्डन करते हैं-(1) कन्याओं का विवाह 16 वर्ष की अवस्था से पूर्व नहीं होना चाहिए, (2) युवकों का विवाह 21 वर्ष के पूर्व नहीं होना चाहिए, (3) किसी भी पुरुष को 40 वर्ष के बाद विवाह नहीं करना चाहिए, (4) यदि कोई पुरुष पुनः विवाह करना चाहे, तो उसे किसी विधवा से विवाह करना चाहिए, (5) मद्यपान बन्द हो, (6) दहेज-प्रथा बन्द हो, (7) विधवाओं का मुण्डन न हो और (8) जो लोग इन प्रस्तावों को स्वीकार करें वे अपनी आय का दसवां भाग इन्हें लागू करने के लिए दान दें। कहना व्यर्थ है कि किसी भी समाज-सुधारक ने तिलक के प्रस्तावों का समर्थन नहीं किया।

इनमें से कुछ प्रस्ताव कितने मौलिक थे, यह इसी से सिद्ध होता है कि दहेज-प्रथा पर 1961 में आकर रोक लगाई गई और मद्यनिषेध तो हमारे संविधान के एक निदेशक तत्व का अंग होने के बावबूद भी आज तक देश में लागू नहीं किया जा सका है।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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