लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

आधुनिक भारत के निर्माता

वास्तव में शिवाजी के वंशजों ने रायगढ़ स्थित उनकी छतरी (समाधि) और अन्य भवनों की रक्षा करने का कभी कोई प्रयत्न नहीं किया था। तिलक को शिवाजी उत्सव का विचार रायल एशियाटिक सोसायटी, बम्बई में एक पारसी विद्वान आर० पी० करकेरिया द्वारा पढ़े गए एक लेख से प्राप्त हुआ था। यह लेख शिवाजी और उनके गढ़ों पर था। पहले तिलक के मन में केवल उन गढ़ों की मरम्मत का ही विचार था, किन्तु शीघ्र ही वह इस महान योद्धा के नाम से सम्बद्ध एक राजनैतिक उत्सव के विषय में भी सोचने लगे। 'मराठा' में उन्होंने लिखा :

''वीर-पूजा मानव का स्वभाव है और अपनी राजनैतिक आकांक्षाओं को मूर्त करने के लिए एक भारतीय महावीर के आदर्श की हमें आवश्यकता थी। इसके लिए शिवाजी से उत्तम चरित्र मिलना असम्भव था। हम अकबर या भारतीय इतिहास के अन्य चरित्र की याद में उत्सव आरम्भ करने के विरुद्ध नहीं। इनका भी अपना एक महत्व होगा, किन्तु शिवाजी का नाम सारे देश के लिए एक विशिष्ट महत्व लिए हुए है और हर देशवासी का यह कर्तव्य है कि वह इस चरित्र को विस्मृत और विकृत न होने दे। हर महापुरुष, चाहे वह भारत का हो या यूरोप का, अपने युग के अनुकूल ही कार्य करता है। यह सिद्धान्त यदि हम मान लें तो हमें शिवाजी के जीवन में कोई भी कार्य ऐसा नहीं मिलेगा जिसकी हम निन्दा कर सकें। शिवाजी के हृदय में स्वातन्त्र्य की जो भावना आरम्भ से अन्त तक थी, उसी भावना के कारण वह राष्ट्र के आदर्श माने जाते हैं।''

तिलक ने अंग्रेज पत्रों के इस आरोप का खण्डन विशेष रूप से किया कि यह पर्व केवल मुसलमानों के विरुद्ध हिन्दुओं को भड़काने के लिए आरम्भ किया गया है। उन्होंने सिद्ध किया कि शिवाजी मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं का सदा आदर करते थे और उनके साथियों में अनेक ऐते मुसलमान भी थे जिन्होंने मुगलों के विरुद्ध उनका साथ दिया था। उन्होंने दृष्टान्त-स्वरूप बताया कि ब्रिटेन में नेल्सन की पूजा होती है और फ्रांस में नेपोलियन की, फिर भी इससे दोनों देशों में कोई द्वेष नहीं है। अतः उन्होंने मुसलमानों को आश्वस्त किया :

''शिवाजी उत्सव का उद्देश्य यह कतई नहीं कि आपका परित्याग या किसी तरह से आपको तंग किया जाए। अब समय बदल गया है और हिन्दू-मुसलमान, दोनों की दशा एक ही है। अतः ऐसी दशा में क्या हम दोनों शिवाजी के महान चरित्र से प्रेरणा नहीं ले सकते?''

कुछ समझदार मुसलमानों ने इस अपील का स्वागत किया, किन्तु अधिकतर गणपति और शिवाजी उत्सवों को सन्देह की दृष्टि से ही देखते रहे। उनके सन्देहों को अंग्रेज समाचारपत्र बढ़ावा देते रहे। तिलक को अंग्रेरेज और मुसलमान, दोनों के विरोधी के रूप में प्रस्तुत कर रहे। उनके हिन्दू विरोधी भी यही आरोप लगाने लगे, यद्यपि वे मान थे कि अंग्रेरेज शासक मुसलमानों का पक्षपात करते हैं। अतः केवल आत्मसम्मान की रक्षा के लिए ही हिन्दुओं ने अपने को संगठित किया है। यह भावना आज भी है कि तिलक मुसलमानों के विरोधी थे, यद्यपि 1916 में उन्होंने ही लखनऊ-समझौते के अन्तर्गत मुसलमानों को विधान परिषदों में उनकी संख्या के अनुपात से अधिक सदस्य चुनने का  अधिकार दिलाया था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai