जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
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''1906 में कांग्रेस के कलकत्ता-अधिवेशन के समय लोकमान्य और कुछ महाराष्ट्रीय मित्र मेरे अतिथि थे। एक दिन लखनऊ के एक सज्जन लोकमान्य से मिलने आए। मैं भी वहां उपस्थित था। वह सज्जन राजनीति में नरम दल के थे, किन्तु वह आते ही बड़ी गरमी से बोलने लगे। उन्होंने लोकमान्य से कहा कि आप कांग्रेस में फूट डाल रहे हैं और पूछा कि ''आपको मालूम है कि मुसलमान क्या कर रहे हैं। वे हिन्दुओं के विरुद्ध संगठित होकर, एक विशाल मुस्लिम राज्य के लिए आन्दोलन करने जा रहे हैं।'' यह सुनते ही लोकमान्य की आंखों में एक चमक आ गई। उन्होंने पूछा : ''क्या आप यह निश्चित रूप से जानते हैं?'' उक्त सज्जन ने कहा : ''इतना निश्चित रूप से, जितना कि मैं आपसे बातें कर रहा हूं। मैंने उनके कुछ पत्र भी देखे हैं। इधर आप हिन्दुओं में फुट डाल रहे हैं, उधर मुसलमान एक होकर हमें कुचलने को तैयार हो रहे हैं।'' जवाब में तिलक ने मुसकरा कर कहा : ''तब हमारी मुक्ति का दिन तो निकट है। क्या आप नहीं देखते कि जिस दिन मुसलमान एक हो जाएंगे, उसी दिन सरकार उन पर पिल पड़ेगी और इसके साथ ही मुसलमान हम लोगों के साथ होंगे।''
शिवाजी उत्सव 15 अप्रैल, 1896 को रायगढ़ में पहली बार मनाया गया। वह बहुत सफल रहा। यह उत्सव महाराष्ट्र में और भी कई जगह तथा कलकत्ते में भी मनाया गया। कलकत्ते में बहुत-से बंगाली तो इसे कई वर्षों तक बड़े धूमधाम से मनाते रहे। इससे शिवाजी के जीवन चरित्र और उनके युग के विषय में गम्भीर अध्ययन की प्रेरणा भी मिली। शिवाजी को एक राष्ट्रीय वीर पुरुष के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय रानडे के बाद तिलक को ही है। किन्तु इसी पर्व के कारण उसके बाद वाले वर्ष (1897) में ही उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। शिवाजी द्वारा अफजल खां के वध पर तिलक ने जो भाषण दिया था और जो बाद में 'केसरी' में छपा था, उसे उत्तेजनापूर्ण और तत्कालीन राजनैतिक परिस्थिति पर सीधा प्रभाव डालने वाला बताया गया और यह अभियोग लगाया गया कि उससे हिसा को बढ़ावा मिलेगा। राष्ट्र के एक महान पुरुष की स्मृति को जाग्रत करने में जुटे तिलक स्वयं महान बन रहे थे।
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- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट