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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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''किन्तु मेरे विचार से जब यह स्पष्ट हो गया है कि सरकार जनता पर अत्याचार के लिए तुली हुई है और बड़े-से-बड़ा अधिकारी भी इस जुल्मोज्यादती के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकता तो हमारे नेताओं का यह कर्तव्य है कि वे जनता की रक्षा का कोई रास्ता ढूंढ़ निकालें। यदि कोई हमसे यह पूछेगा कि जब शहर में आग लगी हुई थी तो तुम्हारे नेताओं ने वहां से भाग खड़ा होकर दूर से शोर मचाने के अलावा और क्या किया तो हम क्या उत्तर देंगे? प्लेग अधिनियम (ऐक्ट) बिना किसी विरोध के सीधे पास हो गया। इसके साथ ही हमें समझ जाना चाहिए था कि अब हवा का रुख किधर है, अर्थात् क्या होने आ रहा है और इसके बाद हमें अपनी रक्षा का उपाय करना चाहिए था। लेकिन हमारे नेतागण स्वयं भाग खड़े हुए।''

रैंड की स्वेच्छाचारिता और तानाशाही उस समय भी चलती रही, जब सरकार ने यह अधिसूचित कर दिया कि महामारी का प्रकोप कम हो गया है और घरों में रोगियों की तलाशी बन्द कर दी जाए। हालांकि महामारी का प्रकोप कम हो गया था, परन्तु फिर भी जहां-तहां लोग अभी भी उससे पीड़ित हो रहे थे। इसके बावजूद तिलक को आदेश दिया गया कि वह अपना अस्पताल बन्द कर दें। फिर तो उच्चाधिकारियों से प्रार्थना करने के बाद ही यह असंगत आदेश रद्द किया गया।

पूना की इन वारदातों की खबर लन्दन में भी पहुंच गई। गोखले, जिन्हें प्लेग-निरोधक सरकारी कार्रवाइयों का निजी अनुभव था, उस समय वेल्बी आयोग के सम्मुख बयान देने इंगलैंड गए हुए थे। पूना-स्थित उनके कई मित्रों और परिचितों ने अनुरोध किया कि वह गोरे सिपाहियों के अनाचारों के विरुद्ध वहां आवाज उठाएं। तदनुसार गोखले ने 'मैन्चेस्टर गार्जियन' के सम्पादक के नाम एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने पूना-निवासियों पर हुए अत्याचारों और ज्यादतियों का वर्णन किया :

''प्लेग कमेटी के आदेशों के विरुद्ध, अंगरेज सिपाही पूजा-स्थलों और रसोईघरों में घुस कर खाद्य सामग्री को अपवित्र करते थे और मूर्तियों पर थूक कर और उन्हें तोड़ कर सड़कों पर फेंक देते थे। घर में अन्धकार होने के बहाने स्त्रियों को सड़क पर ले जाकर नंगी कर दिया जाता था। मेरे कई मित्रों ने, जिन पर मेरा पूर्ण विश्वास है, स्त्रियों पर किए गए बलात्कार की दो घटनाओं का वर्णन किया है। इनमें से एक स्त्री ने तो लज्जा के कारण आत्महत्या कर ली है।''

भारत-मंत्री (सेक्रेटरी ओंफ स्टेट) ने तुरन्त ही इन आरोपों को ''निराधार, नीचतापूर्ण एवं मनगढ़न्त' कह कर टाल दिया। भारतीय राष्ट्रीयता के कट्टर विरोधी ब्रिटिश संसद के पारसी सदस्य सर मंचरजी भावनगरी ने गोखले को 'नीच, झूठा' आदि बताया। गोखले इन आरोपों को सिद्ध न कर सके और जिन मित्रों पर उन्होंने विश्वास करके ये आरोप लगाए थे, वे भी उन्हें धोखा दे गए। अतः भारत लौटने पर उनके सामने क्षमायाचना के अतिरिक्त कोई और रास्ता न था। फिर भी जिस दयनीयता से उन्होंने क्षमायाचना की, उससे उनके मित्रों एवं प्रशंसकों को दुख हुआ। उनको समाचार देनेवालों में मुख्य समझे जानेवाले दोनों नाटू भाई दो साल तक बिना किसी मुकदमे के कैद रहे।

इस बीच इन अत्याचारों का परिणाम यह हुआ कि रैंड और लेफ्टिनेन्ट आयर्स्ट की हत्या हो गई। वे (22 जून, 1897 को) ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के हीरक जयंती-समारोह में भाग लेकर लौट रहे थे कि किसी ने उनकी हत्या कर दी। यद्यपि रैंड अपने अत्याचारों के कारण बदनाम था, पर किसी को अनुमान न था कि कोई उससे ऐसा बदला लेगा। इस काण्ड से जनता को आघात पहुंचा और सरकार तो अपना संतुलन ही खो बैठी। कावसजी जहांगीर जैसे राजभक्त को भी रैंड की अन्त्येष्टि-क्रिया में भाग न लेने दिया गया। पूना में सामूहिक दण्ड लगाने के लिए पुलिस बिठा दी गई। हत्यारे को पकड़वाने के लिए बीस हजार रुपये के इनाम की घोषणा की गई। कुछ ही महीनों में दामोदर चाफेकर नामक व्यक्ति को पकड़ कर फांसी दे दी गई।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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