जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
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तीन विफल प्रयत्नों के बाद 4 अगस्त को न्यायाधीश बदरुद्दीन 'तैबजी ने तिलक को जमानत पर रिहा कर दिया। मुकदमे की सुनवाई 8 सितम्बर को दौरा जज स्ट्रेची की अदालत में आरम्भ हुई। 6 यूरोपनीय और 3 भारतीय सूरी चुने गए। तनावपूर्ण वातावरणके एडवोकेट जनरल ने अभियोग पक्ष की ओर से मुकदमा आरम्भ किया। धारा 124-क के मूल शब्द थे-सरकार के प्रति 'द्रोह (डिसअफेकशन) की भावना पैदा करना' और द्रोह शब्द के अर्थ तथा भाव की व्याख्या पर ही सारा अभियोग आधारित था।
सरकारी वकील का कहना था कि तिलक अपने लेखों द्वारा ब्रिटिश सरकार के प्रति द्रोह की भावना पैदा करके उसे उलटना चाहते हैं। दूसरी ओर सफाई में तिलक के वकील ने कहा :
''रैंड की हत्या के बिना तिलक की गिरफ्तारी नहीं हो सकती थी। तिलक पर लगाए गए अभियोग के आधार अधिकांशतः लेख और कविताएं हैं। किसी कविता का निश्चित, कानूनी और वैज्ञानिक अर्थ नहीं निकाला जा सकता। शिवाजी उत्सव स्काटलैंड में मनाए जानेवाले राबर्ट ब्रूस और विलियम वैलेस उत्सवों की तरह है। जब लोगों में राष्ट्रीय त्योहारों का उत्साह रहता है, तो वे अतिशयोक्तिपूर्ण आलंकारिक भाषा का प्रयोग करते ही हैं। अफजल खां की हत्या का विवाद समाचारपत्रों में रैंड की हत्या के बहुत पहले से ही छिड़ा हुआ था। इसलिए इन दोनों में कोई सम्बन्ध देखना कल्पना के भी परे है। यदि सरकार को विश्वास था कि हत्या में तिलक का हाथ था तो उसे यह अभियोग खुलेआम लगाना चाहिए था। इस तथ्य से ही कि उन पर हत्या का आरोप न लगाकर धारा 124-क के अन्तर्गत उन्हें गिरफ्तार किया गया है, सरकारी मुकदमों का खोखलापन और कमजोरी सिद्ध होती है।''
सन 1870 में भारतीय दण्ड विधान में सम्मिलित धारा 124-क की प्रथम व्याख्या 'बंगबासी' के मुकदमे में कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सर कौमर पैथरम ने 1891 में की थी। उसी व्याख्या का अनुसरण करते हुए न्यायाधीश स्ट्रेची ने कहा कि 'द्रोह' का अर्थ है 'निष्ठा का अभाव' जिसमें घृणा, शत्रुता, नापसंदी, विरोध, अपमान आदि जैसी सरकार-विरोधी सारी दुर्भावनाएं आ जाती हैं। उन्होंने आगे कहा :
''द्रोह का अर्थ वे सभी भावनाएं हैं जिनसे सरकार के प्रति विरोध प्रकट होता है। कानून में इस शब्द के यही अर्थ हैं और किसी व्यक्ति को ये भावनाएं उत्पन्न नहीं करनी चाहिए। सरकार के प्रति ऐसी किसी छोटी या बड़ी भावना को उत्पन्न करना या उत्पन्न करने का प्रयत्न करना इस धारा के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध है। इसके अलावा यह प्रश्न तो बिलकुल महत्वहीन है कि संबद्ध प्रकाशन से सरकार से द्रोह की भावना पैदा हुई है या नहीं।''
सुनवाई के पांचवें दिन 14 सितम्बर को जूरी ने अपना निर्णय दिया। बहुमत से छः बूरियों ने तिलक को अपराधी ठहराया। न्यायाधीश ने यह निर्णय मानकर तिलक को डेढ़ साल की कड़ी कैद की सजा दी।
सारे देश की आंखें इस मुकदमे की ओर लगी थीं। अतः इस दण्ड के समाचार से सबको दुख हुआ। मुकदमे के अन्तिम दिन जब यह मालूम हुआ कि निर्णय शाम को दिया जाएगा तो तारघरों और समाचारपत्रों के दफ्तरों के सामने विशाल भीड़ एकत्र हो गई। सर्व-साधारण ने तिलक की सजा का समाचार दुख और क्रोध से सुना। केवल सरकारी अफसरों और अंग्रेजों ने ही इस पर हर्ष प्रकट किया। मद्रास के एक पत्र ने लिखा कि उस दिन को भूलना असम्भव है और इस घटना से भारतीयों और अंग्रेजों के सम्बन्ध अच्छे होने की कोई आशा नहीं।
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- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट