लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

आधुनिक भारत के निर्माता

ऐसे कौन-से प्रभाव थे, जिनके कारण तिलक ने अपने जीवन को निःस्वार्थ देशसेवा की ओर मोड़ दिया? सन् 1879 में देश 1657 के विद्रोह के प्रभाव से मुक्त हो चुका था। अलबत्ता, सन् 1878 में वासुदेव बलवन्त फड़के ने अवश्य ही एक और सशस्त्र विद्रोह का प्रयास महाराष्ट्र में किया था। देश में उस समय भयंकर अकाल पड़ा हुआ था, जिसमें बहुत-से लोग मर गए थे। धीरे-धीरे ब्रिटिश शासन की कलई खुलने लगी थी। 1876 में श्री दादाभाई नौरोजी ने भारत की बढ़ती हुई गरीबी पर ईस्ट इंडिया असोसियेशन की बम्बई-शाखा के तत्वावधान में एक निबन्ध पढ़ा था, जो बाद में विस्तारित होकर सही-सही आकड़ों से युक्त उनकी अत्युत्कृष्ट कृति 'पावर्टी ऐण्ड अन-ब्रिटिश रूल इन इण्डिया' के रूप में परिणत हो गया।

श्री रानडे के निर्देशन में रहकर सार्वजनिक सभा, जिसकी स्थापना सन् 187० में पूना में हुई थी, विधिपूर्वक रचनात्मक ढंग से जनता के कष्टों को प्रकाश में लाने का कार्य कर रही थी और जन-जीवन में एक नई भावना, नई चेतना पैदा कर रही थी। इस संस्था ने कई क्षेत्रों में, जैसे स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग को बढ़ावा देने और कृषकों की हालत के सम्बन्ध में जांच करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया था। इसने 1874 में ब्रिटिश संसद के पास एक स्मार-पत्र भेजकर उससे भारतीय प्रतिनिधित्व की मांग की थी। फिर सन् 1875 में इसने बड़ौदा के महाराज मल्हारराव गायकवाड़ का, जिन पर ब्रिटिश सरकार के रेजिडेण्ट को विष देने का अपराध लगाकर उन्हें गद्दी से वंचित कर दिया था, पक्ष लेकर सरकार का विरोध किया। इस घटना से महाराष्ट्र में बड़ी चिन्ता और व्यग्रता व्याप गई थी।

इन सब घटनाओं का इन युवकों पर, जो अब अपनी जीवन-यात्रा आरम्भ करनेवाले थे, गहरा प्रभाव अवश्य पड़ा होगा। ये नवयुवक भी विष्णु शास्त्री चिपलूणकर की 'निबन्ध-माला' से भी अवश्य ही प्रभावित हुए होंगे, जिसमें भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए बड़ी तीखी-शैलीदार भाषा में तर्कपूर्ण ढंग से जनता को प्रेरित किया गया था। विष्णु शास्त्री अंग्रेजी-शिक्षा के बड़े भारी प्रशंसकों में थे और उसे वह 'शेरनी का दूध' कहा करते थे किन्तु साथ-ही-साथ वह ईसाई धर्म-प्रचारकों के आक्रमण से भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं की रक्षा करने में भी न चूकते थे और अंग्रेजों के इस दावे का, कि वे केवल भारतीयों की भलाई करने के लिए ही भारत आए हुए हैं, मजाक उड़ाने से बाज नहीं आते थे।

विश्वास है कि श्री तिलक और श्री आगरकर पर मुख्यतः विष्णु शास्त्री चिपलूणकर का ही प्रभाव पड़ा था और इसी कारण इन युवकों ने 'न्यू इंग्लिश स्कूल' की स्थापना में उनका साथ दिया था, किन्तु इस विश्वास का कारण कोई सम-सामयिक प्रमाण नहीं है। लगता है कि इन युवकों के मस्तिष्क में इस योजना का बीजारोपण पहले ही हो गया था और विष्णु शास्त्री चिपलूणकर-जैसे किसी सुविख्यात अनुभवी वृद्ध का सहारा लेकर उन्होंने इस योजना को सफल रूप दिया। अपनी युवावस्था के उन दिनों की चर्चा करते हुए, तिलक ने कहा था, ''हम लोगों का हृदय उस समय देश के पतन को देखकर पीड़ित था और हम लोग बहुत सोच-विचारकर इसी निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि मातृभूमि का उद्धार केवल शिक्षा से ही सम्भव है।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai