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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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बम्बई विधान परिषद में लैंड रेवेन्यू कोड के संशोधन के लिए पेश सरकारी बिल के सिलसिले में तिलक ने किसानों की समस्याओं पर कई लेख 'केसरी' में लिखे। इस बिल का उद्देश्य ऐसी व्यवस्था करना था जिसके अन्तर्गत अपनी जमीन को साहूकार के हाथ बेचने या बन्धक रखने की किसान की स्वतंत्रता पर रोक लगे। बिल पेश करने का कारण बताते हुए कहा गया था कि जमीन को बेचने या बन्धक रखने की अपनी असीमित स्वतंत्रता के परिणामस्वरूप किसान काश्तकार से रैयत होते जा रहे हैं। परिषद में इस विषय पर काफी मतभेद था। इसलिए फिरोजशाह मेहता का यह संशोधन जब अस्वीकृत कर दिया गया कि जनता की राय जानने के लिए बिल पर चल रहा विचार-विमर्श स्थगित कर दिया जाए, तब उनके और गोखले के नेतृत्व में सभी निर्वाचित सदस्य भवन छोड़कर बाहर चले गए। यह अपने ढंग का पहला ही अवसर था जब सदस्य बम्बई विधान परिषद की बैठक का त्याग कर बाहर चले गए हों। और इससे बड़ी सनसनी फैली। तिलक ने मेहता का पूरा-पूरा समर्थन किया, क्योंकि इस विधेयक का उद्देश्य किसान और साहूकार के, जो उन दिनों ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग थे, आपसी सम्बन्ध को तोड़ देना था।

कांग्रेस के दिल्ली-अधिवेशन (1900) और कलकत्ता-अधिवेशन में तिलक का शानदार स्वागत किया गया। कलकत्ता-अधिवेशन में गांधीजी भी उपस्थित थे। उन्होंने इस विषय में लिखा है : ''लोकमान्य को उसी ब्लॉक में ठहराया गया जहां मैं था। मुझे याद है कि वह एक दिन बाद आए थे। और जैसा कि स्वाभाविक था, सदा की भांति उनका 'दरबार' लगा रहता था। अगर मैं कलाकार होता तो मैं उन्हें उसी तरह बिस्तर पर बैठा चित्रित करता जिस शान से मैंने उन्हें बैठे देखा था। मेरे मस्तिष्क में वह चित्र अभी भी ताजा है। उनसे मिलने जो बहुत-से लोग आए, उनमें मुझे केवल एक का नाम आज याद है और वह थे बाबू मोतीलाल घोष। उस समय उन लोगों ने ब्रिटिश सरकार के गलत कार्यों का लेखाजोखा करते हुए जो अट्टहास और वार्ता की थी, उसे मैं कभी नहीं भूल सकता।''

फरवरी 1902 में 'केसरी' का आकार बढ़ाकर दुगुना कर दिया गया। यह वह अवसर था जब उन्होंने 'केसरी' की पिछले 21 वर्षों की प्रगति का सिंहावलोकन उपस्थित किया था। इस बीच इसके पाठकों की सख्या 700 से बढ़कर 13,000 तक पहुंच गई थी। वास्तव में इसके पाठकों की संख्या उन दिनों इससे भी कई गुनी अधिक थी, क्योंकि लोग सरकार-विरोधी इस अखबार को डर से चोरी-छिपे ही पढ़ते थे और खुलेआम ग्राहक नहीं बनते थे। उन्होंने अपने पत्रों की नीति फिर से पुष्ट की :

''जब तक हमारा उद्देश्य जनता को अपने अधिकारों की रक्षा के उद्देश्य से संघर्ष के लिए तैयार करना और सबल बनाना है, तब तक हमें डरने की कोई आवश्यकता नहीं। जिस समय लॉर्ड लिटन का प्रेस ऐक्ट पास हुआ था, उसी समय 'केसरी' का जन्म हुआ। उस समय लोगों का विचार यही था कि समाचारपत्रों में वही लेख लिखे जाने चाहिए जिनसे शासकों को चोट न पहुंचे। लेकिन अब समय बदल गया है। अब हम इसे अपना कर्तव्य समझते हैं कि जनता में जागृति लाने का कार्य किया जाए और उसे सत्य-निष्ठा तथा एकता का पाठ पढ़ाया जाए। हम शासकों के लिए नहीं, बल्कि इसलिए लिखते हैं कि हमारे पाठक हमारी भावनाओं, विचारों, चिन्ताओं और आक्रोश-क्षोभ को समझें।

जनवरी 1903 में तिलक के जेष्ठ पुत्र विश्वनाथ का प्लेग से देहान्त हो गया। संबेदना सूचक पत्रों के उत्तर में उन्होंने कहा : ''जब सारा शहर ही जल रहा हो, तब हर एक को अपने हिस्से का ईंधन अवश्य देना चाहिए।'' फिर उसके बाद वाले दिन सुबह जब 'केसरी' के लिए वह बोलकर लेख लिखा रहे थे, तब उन्हें पता चला कि उनके दूसरे पुत्र बापू को भी बुखार है। यह सुनकर उनके स्थान पर कोई और होता तो विचलित हो जाता, लेकिन वह टस-से-मस न हुए और अपने काम में तब तक लगे रहे जब तक कि उसकी पाण्डुलिपि को पुनः देखकर उन्होंने प्रेस नहीं भेज दिया।

तिलक की पुस्तक 'दि आर्कटिक होम इन दि वेदाज़' जिसे उन्होंने यरवदा जेल में ही सूत्रबद्ध किया था, 1903 में प्रकाशित हुई। इस पुस्तक का अधिकांश भाग 1902 की गर्मियों में सिंहगढ़ में ही लिखा गया था। वह धाराप्रवाह घण्टों तक बोलकर लिखाते रहते थे और जब कोई नया विचार आता था, तभी चुप होते थे। जैसा कि नेविन्सन का मत था, वदिक शोध की दृष्टि से तो यह पुस्तक मूल्यवान है ही, 'साथ ही यह इसलिए और भी महत्व रखती है कि यह उस समय लिखी गई जब लेखक मुकदमेबाजी में परेशान था और उसका धन, यश, ख्याति, सब कुछ खतरे में था। ऐसे समय में ऐसे बहुत कम ही लोग हुए हैं जिन्होंने धर्म-पुस्तकें लिखने की बात सोचने का साहस किया हो।'

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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