लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

आधुनिक भारत के निर्माता

''जातिभेद के विनाश, धार्मिक स्वतन्त्रता, स्त्री शिक्षा, बड़ी उम्र में विवाह, विधवा विवाह और तलाक-प्रथा जैसे जिन सामाजिक सुधारों को कुछ लोग भारत की राजनीतिक सुधारों से पहले रखते है, वे बर्मा में पहले से ही मौजूद हैं, किन्तु बर्मावासियों में अपने धर्म, देश या उद्योग के प्रति कोई गौरव-भाव परिलक्षित नहीं होता। इससे हम यह समझ सकते हैं कि समाज-सुधार और राष्ट्रीय पुनर्जागरण में कोई सहज सम्बन्ध नहीं है।''

1899 में रैंड की हत्या के लिए चाफेकर को दी गई फांसी का एक दुष्परिणाम निकला। चाफेकर को धोखा देकर पकड़वाने का संदेह द्रविड़-बन्धुओं पर था। अतः पूना में एक रात उन्हें घर से बाहर बुलाकर गोली मार दी गई और वे मर गए। आतंकवाद के पुनः प्रकोप से अंग्रेज समाचारपत्रों में फिर खलबली मच गई। अक्तूबर में 'टाइम्स आफ इंडिया' ने लन्दन 'ग्लोब' से लेकर एक समाचार प्रकाशित किया जिसमें कहा गया था कि 'तिलक हत्या-आन्दोलन के संयोजक भले ही न हों, मगर हत्याओं का दौर उनकी ही देखरेख में जारी है।' तिलक ने 'टाइम्स आफ इंडिया' पर तुरन्त मुकदमा चलाया और उसे बिना किसी शर्त के क्षमा याचना करनी पड़ी। 'ग्लोब' ने भी थोड़ी आनाकानी करने के बाद क्षमा मांग ली।

तिलक ने सक्रिय राजनीति में अपनी वापसी की सूचना 4 जून, 1899 को 'केसरी' में प्रकाशित 'पुनश्च हरि ओम्' शीर्षक अग्र लेख माध्यम से दी। इसमें उन्होंने एकता के लिए जोरदार अपील की : ''हम देखते हैं कि महामारी (प्लेग) के प्रकोप और सरकार के कोप के कारण हमारी सारी गतिविधि ठप्प पड़ गई है। अगर हमें फिर से उन्हें चालू करना है तो पहले हमें अपने मतभेद को पाटकर एकता लानी होगी। क्या पिछले दो वर्षों के अनुभव से हमारी आंखें नहीं खुल सकतीं? दोनों राजनीतिक दल इस बात पर एकमत हैं कि हमें अंग्रेजी सरकार से किन अधिकारों को लेना है। यदि यह सत्य है तो नरम और गरम विचारों की चर्चा ही बेकार है। सरकार ने पहले से ही हमारे वाक् स्वातंत्र्य पर रोक लगा दी है। अतः हम सबको गलत सन्देह और मतभेद पैदा करके परस्पर एक-दूसरे को अलग नहीं रखना चाहिए।''

नरम दलवाले ऐसी अपीलें सुनने को तैयार न थे। जब से तिलक को राजद्रोह के अपराध में सजा मिली थी, तब से वह उनके लिए डर का कारण बन गए थे। प्रथम श्रेणी में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की उच्चतर गणित परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद वहां से (सीनियर रैंगलर के रूप में) लौटने पर रघुनाथ पुरुषोत्तम परांजपे के सम्मान डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी ने जो स्वागत-समारोह आयोजित किया था, उसमें उन्हें आमन्त्रित तक नहीं किया गया था। जब 1899 कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में तिलक ने एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें बम्बई के गवर्नर लार्ड सैंघर्स्ट के शासन की तीव्र निन्दा की गई थी, नरम दल के प्रतिनिधियों ने उसके विरोध में बवंडर खड़ा कर दिया और जब कांग्रेस अध्यक्ष (र च० दत्त) ने इस पर यहां तक धमकी दी कि यदि इस प्रस्ताव पर मत लिया गया तो वह अध्यक्ष-पद छोड़ देंगे, तब प्रस्ताव वापस ले लिया गया।

इस प्रस्ताव पर मुख्य आपत्ति यह थी कि वह एक प्रान्तीय विषय से सम्बन्धित है। इसलिए तिलक ने 1900 में यह प्रस्ताव पुनः सातारा सम्मेलन में हुए बम्बई प्रांतीय सम्मेलन में पेश किया। इस बार भी सम्मेलन के अध्यक्ष जी. के. परीख के नेतृत्व में नरम दलवालों ने इसका विरोध किया, क्योंकि वे सरकार का कोपभाजन होने से डरते थे। इस प्रस्ताव को स्थगित कराने के लिए परीख ने कई रास्ते अपनाए और अन्त में वह प्रतिनिधियों में समझौता कराने में सफल भी हो गए। तिलक ने इस कायरता की कटु आलोचना करते हुए 'केसरी' में लिखा : '''इस प्रकार के सम्मेलन और अधिवेशन चापलुसों और ऐसे डरपोक लोगों के लिए नहीं हैं जो हर गवर्नर के सामने केवल आवेदन और अध्यावेदन-भर पेश करते हैं। दरअसल ऐसे सम्मेलन और अधिवेशन उनके लिए हैं जो बिना किसी हिचक के जोरदार और निर्भीक, किन्तु संयत-स्वर में जनता की आवाज बुलन्द करते हैं। इसलिए बम्बई प्रांतीय सम्मेलन के अध्यक्ष ने जो रुख अपनाया था, वह मनमाना और अवैधानिक था।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

लोगों की राय

No reviews for this book