जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
|
0 5 पाठक हैं |
आधुनिक भारत के निर्माता
लेकिन तिलक ने कहा कि इसका अर्थ यह नहीं कि हम कोई ऐसा अवैध तरीका अपनाएं या कोई ऐसी सशस्त्र क्रांति करें जो नियम-विरुद्ध हो। एक अधीन देश के संघर्ष का स्वरूप कैसा हो, यह उसकी परिस्थितियों से ही निर्धारित होना चाहिए। शासकों पर दवाब डालने के लिए प्रत्येक व्यावहारिक तरीका अपनाया जाना चाहिए। संविधान (जिसका अस्तित्व ही नहीं) या कानून (जो नौकरशाही के इच्छानुसार बदलता रहता है) नहीं, बल्कि न्याय और स्वतन्त्र होने का जनता का अभिच्छेद्य-जन्मसिद्ध अधिकार ही भारतीय राजनीति के निश्चायक तत्व होने चाहिएं। स्वतन्त्रता का फल जनता के हाथों में स्वयं नहीं आ टपकता। जनता को उसे पाने लिए उठना तथा प्रयास करना चाहिए और जो शासक उसे नहीं देना चाहते, उनके हाथ से उसे छीन लेना चाहिए।
''हमारे तरीके भी आत्मविश्वास पर ही आधारित होने चाहिएं। उदाहरणार्थ वहिष्कार को लीजिए। यह स्वैच्छिक और अहिंसात्मक हैं। हम धरना देने और बलपूर्वक किसी को विदेशी वस्तु खरीदने से रोकने के पक्ष में नहीं। और इस सत्याग्रह में हम सेडिसस मीटिंग्स ऐक्ट जैसे सरकारी तरीकों की परवाह नहीं करेंगे। हमें इसकी भी चिन्ता नहीं कि हमारा क्या होगा। हमने अपने को भारतीय जनता की सेवा में बिना किसी सोच-विचार के अर्पित कर दिया है। हममें से 3 या 4 हजार व्यक्तियों के अपने को गिरफ्तार करा देने से नौकरशाही भी घबड़ा उठेगी। हमारा ध्येय है-अपने दुख-तकलीफों की ओर व्यापार और शासन में बाधा डालकर इंग्लैण्ड का ध्यान खींचना।''
गोखले इतने उग्र तरीकों से सहमत नहीं थे और फिरोजशाह मेहता ने इसे पागलपन बताया। वह सिद्धान्ततः भी इसका विरोध करते थे तथा इसे अव्यावहारिक और नासमझी की बात मानते थे। गोखले आन्दोलन को निश्चित सीमा के बाहर नहीं जाने देना चाहते थे। उनके अनुसार निराशावस्था में बहिष्कार तो उचित था, लेकिन उसको जारी रखने से प्रत्याशित राजनीतिक सुधार के निष्फल न सही, किन्तु क्षतिग्रस्त होने की आशंका जरुर थी। और इसके अलावा फिर जैसा कि उन्होंने सूरत में कहा था : ''हम सरकार की उपेक्षा या विरोध कैसे कर सकते हैं? निश्चय ही हम उसका अपमान नहीं कर सकते, क्योंकि वह देखते-देखते हमारे आन्दोलन को शीघ्र ही कुचल देगी-उसका गला घोंट देगी।''
|
- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट