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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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आधुनिक भारत के निर्माता

तिलक मद्यनिषेध आन्दोलन के भी रहनुमा थे, यों यह बहिष्कार आन्दोलन का अंग न बन सका। बम्बई विधान परिषद का सदस्य होने के समय से ही उन्होंने मद्यनिषेध में दिलचस्पी ली थी। उनके विचार से मद्यपान ब्रिटिश शासन की देन थी। चूंकि मद्यपान पश्चिमी देशों में साधारण बात थी, इसलिए भारत में इसका प्रचार अंगरेजों के आने के बाद ही हुआ, जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि जहां पेशवाओं के समय केवल हर जिले से एक हजार रुपये आबकारी कर के रूप में हासिल होते थे, वहां 60 साल के विदेशी शासन में यह राजस्व बढ़कर 6 लाख रुपये तक पहुंच गया। इस प्रकार जो मद्यपान हमारे धर्म और सामाजिक रीति-रिवाजों के विरुद्ध था, उसके प्रचलन के लिए सरकार ही जिम्मेदार थी।

पूना में 1907 में स्थापित टेम्परेन्स असोसिएशन की प्रबन्ध-समिति के सदस्य तिलक भी थे। गोखले इसके अध्यक्ष थे। इस संस्था ने मद्यनिषेध के लिए प्रचार-कार्य जोरों से किया और कई स्थानों पर शांतिपूर्वक धरना देने की भी व्यवस्था की। लेकिन जब आबकारी विभाग के अफसरों के दबाव में आकर पुलिस ने कार्यकर्ताओं को तंग करना शुरू किया, तब मद्यनिषेध आन्दोलन ने लड़ाकू रुख अपना लिया। जिस समय अनुनय-विनय से समझा-बुझाकर पियक्यड़ों को सही रास्ते पर लाने पर भी रोक लगी हुई थी, उस समय भी तिलक ने शराब की दूकानों पर धरना देने का आन्दोलन छेड़ने की योजना बनाई और नई पीढ़ी के लोगों से शराब न पीने का अनुरोध किया और कहा :

''युवक शराब के पक्षपातियों की नीति का विरोध करके जेलों को भरने के लिए तैयार हो जाएं। इस काम में उनके सगे-सम्बन्धी और पड़ोसी उनकी सहायता जरूर करें। मद्यपान के प्रति आप में इतनी तीव्र घृणा होनी चाहिए कि उसके विरोध में कारावास तुच्छ जान पड़े।''

मद्यनिषेध आन्दोलन इतना सफल रहा कि केवल सारे महाराष्ट्र में शराब की बहुत-सी दूकानें ही बन्द नहीं हुई, बल्कि सरकार भी आतंकित हो उठी और उसे यह आशंका हुई कि कहीं तिलक स्वदेशी आन्दोलन की भांति मद्यनिषेध आन्दोलन का भी इस्तेमाल एक राजनैतिक हथियार के रूप में तो नहीं कर रहे हैं। इससे आबकारी राजस्व की काफी हानि तो हुई ही, साथ ही इसके राजनीतिक परिणाम भी बुरे निकले। अब यह अनुमान करना कठिन है कि यदि तिलक जून, 1908 में राजद्रोह के अभियोग में गिरफ्तार न किए गए होते, तो मद्यानेषेध आन्दोलन कितना अधिक बढ़ा होता। लेकिन जैसा कि अन्य कई आन्दोलनों की गति हुई, इस आन्दोलन ने भी उनकी अनुपस्थिति में टें बोल दिया, मतलब समाप्त हो गया।


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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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