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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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11 अक्टूबर 1907 को गोखले ने वेडरबर्न को जो पत्र लिखा, उसमें उन्होंने इन सब चालों पर प्रकाश डाला, जिसका जिक्र मॉर्ले ने अपनी आत्मकथा में किया है-

''इस सप्ताह गोखले का वेडरबर्न के नाम लिखा एक रोचक पत्र मेरे हाथ लगा है। गोखले का कहना है कि आज सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है कि कांग्रेस की फूट को कैसे रोका जाए। 'भविष्य इस समय अन्धकारमय लगता है।' उन्हें नागपुर में कांग्रेस का अधिवेशन न करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं दीखता। किन्तु इसका भी अर्थ है फूट, क्योंकि नए दलवाले (गरम दलवाले) भी सम्भवतः नागपुर में ही अपना अलग अधिवेशन करने की ठानेंगे। यदि फूट होती है, तो अनर्थ होगा, क्योंकि तब ब्रिटिश नौकरशाही को दोनों दलों को कुचलने में कोई कठिनाई नहीं होगी। वह गोखले और उनके दल की यह कहकर उपेक्षा कर देगी कि उनके समर्थकों की संख्या अधिक नहीं और नए दल को यह कहकर कुचल देगी कि अधिकतर समझदार व्यक्ति उसके विरुद्ध हैं।

''पिछले बारह महीनों में यह बात मेरे दिमाग में कई बार आई है कि एक राजनैतिक दल के प्रबन्धक के रूप में गोखले बहुत कच्चे हैं। किसी दल के संचालक को अथवा किसी भी राजनीतिज्ञ को-जो नेता बनने की आकांक्षा रखता है, कभी विलाप नहीं करना चाहिए, मगर गोखले सदा रोते रहते हैं। यदि मैं उनके स्थान पर होता, तो मैं 'व्यवस्था एवं सुधार' के आधार पर नौकरशाही से समझौता करने की शर्तों पर जोर देता। यदि उन्हें यह समझ होती कि इस प्रकार का रुख अख्तियार करने से क्या लाभ हो सकते हैं, तो कांग्रेस में फूट पड़ने से भी उनका कोई खास बिगाड़ नहीं होता, क्योंकि इससे उन्हें युक्तिसंगत मामलों पर अपने लक्ष्य निर्धारित करने की आजादी मिलती और वे हम लोगों से अपनी मांगों का 60 या 70 प्रतिशत अंश पूरा करा सकते थे।''

मेहता द्वारा अधिवेशन का स्थान नागपुर से सूरत बदलने की परवाह तिलक ने नहीं की। उन्होंने कहा कि ''जहां कहीं भी फिरोबशाह मेहता अधिवेशन करने का निश्चय करें, राष्ट्रवादी दल (नेशनलिस्ट पार्टी) वहीं जाएगा, क्योंकि उसका उद्देश्य कांग्रेस को तोड़ना या अधिवेशन होने से रोकना नहीं है। लेकिन मेहता को यह जानकारी होनी चाहिए कि यह विवाद शीघ्र ही समाप्त होनेवाला नहीं है। नए और पुराने दलों में यह झगड़ा तब तक चलता रहेगा जब तक नया दल विजयी नहीं हो जाता। यह किसी को नहीं समझना चाहिए कि सूरत जैसा सुरक्षित स्थान हर वर्ष मिला करेगा। और फिर कौन निश्चय से कह सकता है कि सूरत भी उनके लिए सुरक्षित है या नहीं।''

देश में ऐसा ही वातावरण था, जब सूरत में स्वागत समिति बनाई गई। इसमें दोनों दलों के लोग थे और नरम दलवालों को आशा थी कि अध्यक्ष के चुनाव सहित सभी विषयों पर उनकी ही बात रहेगी। किन्तु 11 नवम्बर को लाला लाजपत राय के एकाएक रिहा हो जाने से गरम दलवालों को नेता मिल गया। सारे देश से तार एवं पत्र आने लगे कि लाला जी ही अध्यक्ष हों। मेहता ने गोखले तथा अन्य नेताओं को भेजा कि घोष के चुनाव में कठिनाई न हो। गोखले ने गरम दलवालों को समझाने की चेष्टा की कि कांग्रेस इस बार लाला लाजपत राय की देश-निकाले की सजा के विरुद्ध प्रस्ताव पास करने जा रही है, अतएव उन्हीं का अध्यक्ष बनना उचित न होगा। इसके उत्तर में कहा गया कि अध्यक्ष पद पर उनका चुनाव ही इस प्रस्ताव का सबसे बड़ा विरोध होगा।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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