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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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जब इससे नरम दलवालों का काम न बना, तो उन्होंने धमकी दी कि स्वागत समिति में उनका बहुमत है और वे जो चाहेंगे, वही होगा। इसी कारण उन्होंने बाहर के लोगों को निमन्त्रण भेजने में भी देर की। लाला लाजपत राय को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव भी अवैध करार दिया गया और इसके बाद गरम दलवालों के लिए इसके विरोध में सदन से बाहर जाने के अलावा कोई चारा न रहा। घोषणा कर दी गई कि डा० रास बिहारी घोष 'सर्वसम्मति' से सूरत कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए हैं।

'केसरी' के कई अग्रलेखों में तिलक अपने समर्थकों से धैर्य और संयम से काम लेने की प्रार्थना करते रहे और उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस का पृथक् अधिवेशन करने की मांग को अस्वीकार कर दिया।

''शांत चित्त से विचार करने पर यह स्पष्ट हो जाएगा कि गरम दल का ही कांग्रेस पर प्रभुत्व-प्रभाव रहेगा, यदि इस वर्ष नहीं, तो अगले वर्ष ही सही। इसलिए हमें इसी दिशा में प्रयत्न करना चाहिए और कांग्रेस से अलग कोई नया दल बनाने का विचार छोड़ देना चाहिए। हो सकता है कि सूरत कांग्रेस में नरम दलवालों का बहुमत रहे, लेकिन इसमें चिन्ता की कोई बात नहीं। हमें चाहिए कि अपने विचारों को पूरे बल के साथ अधिवेशन में रखें। जनता ने इन विचारों को पहले ही स्वीकार कर लिया है।''

एक और सम्पादकीय में उन्होंने इस पर बल दिया कि लाला लाजपत राय ही अध्यक्ष निर्वाचित हों। उन्होंने आगे कहा कि 'दरअसल. मुख्य प्रश्न यह नहीं कि कौन अध्यक्ष बने, बल्कि यह है क्या थोड़े में एक मत के व्यक्तियों को निरंकुश ढंग से दूसरों के विचारों को दया देने का अधिकार है। राष्ट्रवादी (नेशनलिस्ट) भी कांग्रेस को चाहते हैं।

उनका ध्येय कांग्रेस को नष्ट करना या अराजकता फैलाना नहीं। लेकिन वे मेहता और वाचा की मनमानी मानने को तैयार नहीं। ये गोखले का नेतृत्व नहीं चाहते, जो सरकार को अप्रसन्न करने से डरते हैं। अध्यक्ष पद को लेकर हुए सारे झगड़े की जड़ यही है। प्रश्न सिद्धान्त का है, व्यक्तियों का नहीं।''

तिलक 23 दिसम्बर को और लाला लाजपत राय 24 दिसम्बर को सूरत पहुंचे जहां जनता ने उनका इतने उत्साह से स्वागत किया कि उसके सामने मनोनीत अध्यक्ष का स्वागत फीका पड़ गया। इस बीच लाला लाजपत राय ने घोषणा कर दी कि वह अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। इस घोषणा से नरम दल को जो हर्ष हुआ, वह क्षणिक सिद्ध हुआ। दिन-रात दोनों दल जोरों से काम में जुटे रहे। दोनों ने अलग-अलग सभाओं में अपनी नीति के विषय में मंत्रणाएं कीं। उन्होंने अपनी-अपनी नीतियों को स्पष्ट करने के लिए सार्वजनिक सभाओं का भी आयोजन किया।

स्वागत समिति ने प्रस्तावों का प्रारूप तैयार करने का काम गोखले को सौंपा था, लेकिन अधिवेशन आरम्भ होने तक कोई भी प्रारूप तैयार न हुआ। दस दिन पूर्व अधिवेशन में विचारणीय विषयों की जो सूची भेजी गई थी, उसमें बहिष्कार, स्वदेशी और राष्ट्रीय शिक्षा जैसे विषय न होने से लोगों में सन्देह पहले से बना हुआ था। बाद में नरम दलवालों के सफाई देने पर भी शंकाओं का पूर्ण रूप से निराकरण न हुआ। इस पर गरम दल के 500 प्रतिनिधियों ने निश्चय किया कि वे कलकत्ता अधिवेशन द्वारा स्वीकृत प्रस्तावों में परिवर्तन लाने का हर वैधानिक ढंग से विरोध करेंगे। इसके लिए यदि अध्यक्ष के चुनाव का भी विरोध करना पड़े, तो वे उसके लिए तैयार हैं।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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