जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
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आधुनिक भारत के निर्माता
अध्याय 14 माण्डले में
बर्मा के राजा थिबाव को 1885 के युद्ध में हारने के बाद तिलक के जन्म स्थान, रत्नगिरि में देशनिकाले की सजा मिली थी। अतः यह संयोग की ही बात थी, जो उसके 23 वर्ष बाद तिलक को राजद्रोह के अपराध में दूसरी बार सजा मिलने पर थिबाव का राजधानी माण्डले में निर्वासित किया गया। देवयोग की ही यह बात थी, जिसके ऐतिहासिक व्यंग्य को शायद ब्रिटिश सरकार समझने में असमर्थ थी। किन्तु जब पुलिस के परे में तिलक को 23 सितम्बर, 1908 माण्डले सेन्ट्रल जेल की कोठरी (शेल) में ले जाया गया, तो उनके मन में यह बात अवश्य उठी। इसी जेल में कुछ महीनों के अलावा, जब वहां हैजा फैल जाने के कारण वह मिकटिला जेल में ले जाए गए थे, उन्होंने अपनी तनहाई के 6 वर्ष बिताए।
पिंजड़े की भांति लकड़ी की बनी यह कोठरी (शेल) 20 फीट लम्बी और 12 फुट चौड़ी थी, जिसकी ऊपर की मंजिल में तिलक रहते थे और नीचे रसोई और स्नानघर थे। ये क्वार्टर पहले यूरोपीय अभियुक्तों के लिए बनाए गए थे और इनके तथा जेल के प्रमुख हिस्से के बीच लकड़ी की एक आड़ खड़ी कर दी गई थी। गर्मियों में, जो वहां का सबसे लम्बा मौसम है, यह कमरा कड़ी धूप में तपकर भट्टी की तरह गर्म हो जाता था और लकड़ी के पटरे सूर्य के, ताप से रक्षा करने में असमर्थ थे। और जाड़ा तो और भी भयंकर पड़ता था, जब रक्षा की दृष्टि से लकड़ी की वह कोठरी तीव्र ठण्डी हवा के सामने बेकार साबित होती थी।
तिलक को यहां इतना कष्ट हुआ कि उन्होंने आवेदन के जरिए सरकार से अपने को काला पानी के नाम से कुख्यात द्वीप अन्दमान में भेज देने का अनुरोध किया, जहां देशनिर्वासित क्रांतिकारी रखे जाते थे। तिलक को विश्वास था कि अन्दमान की ठण्डी जलवायु उनके अनुकुल होगी और वहां उन्हें लम्बी सजा पाए कैदी की भांति अधिक सुविधाएं मिल सकेंगी। लेकिन उनका यह अनुरोध नामंजूर कर दिया गया।
सितम्बर की उस सुबह जब तिलक को उस भयानक कोठरी (शेल) में डाला गया होगा, तब उनके हृदय में क्या-क्या विचार आए होंगे? क्या उनके मस्तिष्क में वे सभी घटनाएं एक बार फिर घूम न गई होंगी, जो ''न्यू इंग्लिश स्कूल'' की स्थापना से लेकर ब्रिटिश राज को उखाड़ फेंकने के प्रयत्न के अपराध में छः साल के देशनिर्वासन का दण्ड पाने के समय तक घटी थीं? इस बीच संघर्षों, सफलताओं और असफलताओं से सम्बन्धित न जाने, कितनी ही घटनाएं घटित हुई थीं, जो देश की सेवा में समर्पित उनके जीवन की महान निशानियां थीं-मील के पत्थरों की भांति सबकी नजरों के सामने बिछी हुईं।
जेल की कोठरी में प्रवेश करते ही अकस्मात उनका सार्वजनिक जीवन समाप्त हो गया। उनका निजी जीवन भी उस कोठरी की सींकचों से घिरी चारों दीवारों के अन्दर बन्द हो गया। अब वह केवल एक अपराधी कैदी थे, जिसके नम्बर की टिकट उनके गले में भूल रह थी-जिसकी लंबी सजा की अवधि-भर उनकी नजरों के सामने बिछी हुई थी। इस बीच उनके जीवन को अब इसी धुरी पर घूमते रहना था अब उनकी तनहाई तभी कुछ क्षणों के लिए खतम होने को थी, जब जेलर निरीक्षण में आए या जब हर तीन महीने पर एक बार उनके सम्बन्धी आएं-तभी नीरसता का यह वातावरण क्षण-भर को सर हो सकता था।
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- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट