जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
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तिलक की सजा और उसके बाद बम्बई में हुई अशांति तथा हड़तालों की प्रतिक्रिया भारत और ब्रिटेन के बाहर भी देखने को मिली। जैसाकि सबको मालूम ही है, लेनिन ने तत्कालीन हड़तालों और दंगा-फसादों को भारत के क्रान्तिकारी आन्दोलन की प्रथम लहर बताया था।
7 अगस्त को एक आवेदन के जरिए बम्बई उच्च न्यायालय से प्रिवी कौन्सिल में अपील करने की अनुमति मांगी गई। जोसेफ बैप्टिस्टा ने योग्यतापूर्वक बहस की, किन्तु 8 सितम्बर को यह अर्जी खारिज कर दी गई। फिर भी न्यायालय ने तीसरे अभियोग के आधार पर तिलक को दी गई जुर्माने की सजा को रद्द कर दिया। फिर प्रिवी कौन्सिल की न्याय-समिति के समक्ष अपील करने की अनुमति लेने का पुनः प्रयत्न किया गया, किन्तु वह भी विफल सिद्ध हुआ।
इस बीच सरकारी सचिवालय में इस बात पर उच्चस्तरीय विचार-विमर्श हो रहा था कि तिलक को, जो अस्थायी रूप से अहमदाबाद की साबरमती जेल में रखे गए थे, कहां कैद रखा जाए। उनको बर्मा भेजने का निर्णय किया गया, किन्तु गृह-विभाग उन्हें माण्डले में रखने के पक्ष में नहीं था, क्योंकि वहां लाला लाजपत राय के साथ पूर्ववर्त्ती वर्ष में बहुत नम्र व्यवहार किया गया था। रंगून से 10 मील दूर इनसीन जेल को सर्वाधिक उपयुक्त स्थान माना गया, किन्तु वहां की नम आबोहवा के कारण मधुमेह से पीड़ित तिलक की बीमारी के बढ़ जाने का डर था।
आखिरकार माण्डले को ही चुना गया। 14 सितम्बर को बम्बई में तिलक को 'हार्डिज' नामक जहाज पर बिठा दिया गया तथा जहाज का गन्तव्य स्थान तक गुप्त रखा गया। 21 सितम्बर को बम्बई सरकार ने घोषणा की कि तिलक की उम्र और स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर उनकी काले पानी की सजा को साधारण कारावास के रूप में परिणत कर दिया गया है। इससे निस्सन्देह, तिलक को कठिन परिश्रम तो नहीं करना पड़ा, जितना कि 1897 के कारावास में करना पड़ा था, फिर भी कालेपानी में जो सजा की अवधि विषयक तथा अन्य छूटें-रियायतें मिलती हैं, वे उन्हें नहीं मिलीं।
'हार्डिज' जहाज 22 सितम्बर को रंगून पहुंचा और अगले दिन सुबह तिलक माण्डले पहुंच गए, जहां की कालकोठरी में उन्हें अपने जीवन के अगले 6 वर्ष गुजारने थे।
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- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट