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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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अगले दिन सुबह से बम्बई में पूरी हड़ताल थी। सारा कारोबार ठप्प रहा। जब मुकदमा शुरू हुआ, तभी से सूती कपड़े की मिलों में छिट-पुट जहां-तहां हड़तालें होती रहीं थीं और झगड़े तो मुकदमे के पहले ही दिन हुए थे। लेकिन 23 जुलाई को तो, जो संयोगवश तिलक का 52वां जन्म-दिवस था, लगभग सभी मिलें बन्द रहीं। सारे बाजार और दूकानें भी बन्द थीं। सड़कों पर कुछ मिल मजदूरों को छ्रोड़कर कोई दिखाई नहीं पड़ता था। मज़दूर बहुत क्षुब्ध थे और जैसा ऐसे अवसरों पर होता है, वे पत्थर फेंक रहे थे और उपद्रव कर रहे थे। यह हड़ताल दिन-ब-दिन जारी रही और अधिकारियों को इसे समाप्त कराने का कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था। अतः पुलिस की सहायता के लिए सेना बुलाई गई और कई स्थानों पर गोलियां चलवाई गईं। 6 दिनों की इस हड़ताल में गोलियों से 14 व्यक्ति मारे गए और 30 घायल हुए, जबकि गैरसरकारी सूत्रों के अनुसार मारे गए लोगों की संख्या 30 और घायलों की 100 थी। तिलक की 6 वर्ष की सजा के विरोध में लोगों ने 6 दिनों की हड़ताल मनाई।

मिल मालिकों पर सरकार ने बहुत दबाव डाला कि वे मिलें खोलें और गवर्नर ने शान्ति और सुव्यवस्था कायम करने में अधिकारियों की सहायता करने के लिए प्रमुख नागरिकों की एक सभा बुलाई। किन्तु बम्बई में सारा कारोबार 6 दिनों तक बिल्कुल ठप्प रहा। बहुत-से अन्य शहरों और कस्बों में भी हड़ताल रही। विद्यार्थी स्कूल-कॉलेजों में नहीं गए और तिलक को दिए गए बर्बर दण्ड के विरोध में हर जगह सभाएं की गईं।

समाचारपत्रों ने भी इस विरोध में योग दिया। दण्ड सुनाते समय न्यायाधीश डावर ने जिस प्रामाणिकता से अपनी बात कही थी, उस पर पत्रों ने विशेष रूप से आपत्ति की। 'मराठा' ने लिखा-''न्यायाधीश ने अपने पद का लाभ उठाकर ही यह कहा कि तिलक केवल अपने देश से प्रेम करने की डींग मारते हैं। यह बिल्कुल निर्दयतापूर्ण और सरासर झूठा है, नीचता और कायरतापूर्ण है।'' सुरेन्द्रनाथ बनर्जी द्वारा सम्पादित 'बंगाली' ने कहा-''हम इस दण्ड को अमानुषिक और बर्बरतापूर्ण समझते हैं। यह दण्ड तथाकथित अभियोग के अनुपात में बहुत बड़ा है, जिसकी निन्दा समान रूप से हमारे सारे देशवासी और सभी समझदार व्यक्ति करेंगे।''

इस सम्बन्ध में ब्रिटिश पत्रों की टिप्पणियां भी पढ़ने योग्य हैं। 'टाइम्स' ने लिखा-''दण्डित होने के समय भी तिलक भारत के सबसे बड़े राजनीतिज्ञ थे, जिनकी ओर सबकी आंखें लगीं थीं। अपने देशवासियों के बीच वह जितने लोकप्रिय और प्रभावशाली हैं, उतना भारत का कोई दूसरा राजनीतिज्ञ नहीं हैं।'' 'स्टार' ने कहा-''लगता है, तिलक के लेखों के कारण बमों के इस्तेमाल को कोई प्रत्यक्ष प्रोत्साहन नह मिला था...। कठिन समय में तो किसी भी राजनीतिज्ञ की काव्यमयी भाषा का टेढ़ा-मेढ़ा अर्थ निकाल लेना बहुत आसान है।'' 'मान्चेस्टर गार्जियन' ने लिखा-''जब तक तिलक के मुकदमे और उसमें उन्हें मिली सजा की याद लोगों में बनी रहेगी, तब तक भारतीयों और अंगरेजों के बीच कटुता दूर न होगी और ऐसा पारस्परिक विश्वास पैदा न होगा, जिसके बिना अंगरेजों द्वारा अच्छा शासन-संचालन बिल्कुल असम्भव है और सभी सुधार व्यर्थ सिद्ध होंगे।''

इन टीका-टिप्पणियों और प्रतिक्रियाओं से लॉर्ड मार्ले को इतना अधिक धक्का लगा कि उन्होंने 31 जुलाई को बम्बई के गवर्नर के नाम एक पत्र में लिखा-''मैं तिलक-काण्ड की चर्चा नहीं करूंगा। मैं केवल यही कहूंगा कि यदि आपने पहले ही मुझसे और अपने वकीलों से परामर्श कर लिया होता, तो मैं तिलक को हाथ नहीं लगाने देता। मुझे यह विश्वास करने का कोई कारण नहीं दीखता कि तिलक कोई ऐसा उपद्रव खड़ा कर सकते थे, जो उनकी सजा से भी अधिक खतरनाक साबित होता। लेकिन अब तो सारा खेल ही बिगड़ चुका है। इसलिए किया भी क्या जा सकता है?''

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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