जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
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आधुनिक भारत के निर्माता
जूरी गण रात 9-20 बजे लौटे और निर्णय दिया कि तिलक तीन अभियोगों के अपराधी हैं। यह निर्णय दो भारतीयों के विरुद्ध और सात यूरोपीयों के बहुमत पर आधारित था। न्यायाधीश ने यह निर्णय मान लिया और तिलक से पूछा कि दण्ड सुनाने के पहले वह क्या कुछ कहना चाहते हैं। इस पर उन्होंने जो उत्तर दिया, वह हमारे इतिहास का अंग बन गया है-
''मुझे केवल यह कहना है कि जूरी के निर्णय के बाद भी मैं आग्रहपूर्वक कह सकता हूं कि मैं निरपराध हूं। और भी महान शक्तियां है, जो सबका भाग्य निर्धारण करती हैं। शायद विधाता की इच्छा यही है कि जिस काम को मैं करना चाहता हूं, उसमें मेरे स्वतन्त्र रहने की अपेक्षा कष्ट सहने से ही सहायता मिले।''
इन निर्भीक और महान शब्दों से दो पीढ़ियां प्रेरणा ग्रहण करती हैं। किन्तु लगता है कि इन शब्दों का न्यायाधीश डावर पर उल्टा ही असर पड़ा, जो चिढ़कर उन्होंने न्यायिक निष्पक्षता और सयम की नकाब उतार फेंकी। सजा सुनाते समय उन्होंने जले पर नमक छिड़कते हुए कहा-
''मेरे विचार से तो विकृत मस्तिष्क और उल्टी खोपड़ीवाला कोई व्यक्ति ही यह कह सकता है कि आपने जो लेख लिखे हैं, वे राजनैतिक आन्दोलन भे न्यायोचित शस्त्र हैं। राजद्रोह से परिपूर्ण इन लेखों से खुलेआम हिंसा को बढ़ावा और हत्याओं को बल मिलता है। आपने बमों से की गई कायरतापूर्ण वीभत्स हत्याओं का समर्थन-अनुमोदन ही नहीं किया है, बल्कि भारत में फेंके गए उन बमों का इस तरह स्वागत किया है, जैसे भारत के लिए यह कोई बहुत अच्छी चीज हो। पिछले दस वर्षों में शासक वर्ग के प्रति आपकी घृणा और द्वेष मे कोई कमी नहीं आई है। और ये लेख हर सप्ताह जानबूझ कर सरकार के विरोध में लिखे जाते रहे हैं। अतः आपने जैसा बताया है, वैसे ये लेख उसी समय नहीं, बल्कि दो निर्दोष अंग्रेज महिलाओं पर हुए क्रूरता व कायरतापूर्ण अत्याचार के 15 दिन बाद लिखे गए थे।
''आपने बमों की चर्चा इस तरह की है, जैसे वे निश्चय ही राजनैतिक आन्दोलनों के वैध हथियार हों। ऐसी पत्रकारिता देश के लिए अभिशाप है। अतः आपकी उम्र और अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मैं इसे उचित समझता हूं कि शान्ति और सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए तथा जिस देश के प्रति आप प्रेम करने की डींग मारते, उस देश के हित में आप कुछ समय तक अपने देश से बाहर रहें। फलतः मैं आपको प्रथम दो अभियोगों पर तीन-तीन वर्ष की काले पानी की सजा देता हूं, जो बारी-बारी से लागू होंगी। इस प्रकार आपको कुल 6 वर्ष की काले पानी की सजा भुगतनी होगी। तीसरे अभियोग पर मैं आप पर एक हजार रुपए का जुर्माना करता हूं।''
पुलिस के भारी पहरे में तिलक को उच्च न्यायलय के बगल वाले दरवाजे से फौरन निकालकर कोलाबा रेलवे स्टेशन ले जाया गया जहां पहले से ही एक विशेष रेलगाड़ी उनको अहमदाबाद ले जाने के लिए तैयार खड़ी रखी गई थी। इस तरह काफी रात गए तक वर्षा में भीगती रहने के बावजूद हजारों लोगों की जो भीड़ न्यायालय के आस-पास जमा थी, उसे तिलक के दर्शन से वंचित कर दिया गया। मुकदमे की सुनवाई के समय लोगों की जो भारी भीड़ सुबह से उच्च न्यायालय के पास जमा हो जाया करती थी, वह शाम को तितर-वितर हो जाती थी। किन्तु जब लोगों ने यह समाचार सुना कि उस रात ही फैसला सुनाया जाएगा, तब लोगों की भारी भीड़ उच्च न्यायालय के अहाते में जमा हो गई। दूसरी ओर पुलिसवालों को भी बड़ी तादाद में वहां तैनात कर दिया गया, किन्तु उस रात कोई गम्भीर घटना नहीं घटी।
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- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट