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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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इस अधिवेशन की सफलताओं का निचोड़ तिलक ने इन शब्दों में पेश किया-

''लखनऊ में सबसे अधिक महत्व के दो कार्य हुए-एक तो यह कि सर्वसम्मति से स्वराज की निश्चित मांग की गई और दूसरा यह कि हिन्दुओं और मुसलमानों, दोनों ने यह मांग संयुक्त रूप से-एक स्वर से की। कुछ क्षेत्रों में यह धारणा व्याप्त है कि लखनऊ में मुसलमान भाइयों को बहुत अधिक रियायतें दी गई हैं, किन्तु चाहे विशुद्ध न्याय की दृष्टि से ऐसा उचित हो या अनुचित, स्वशासन की मांग में उनका हार्दिक समर्थन प्राप्त करने के लिए ऐसा करना आवश्यक था। और उनकी सहायता तथा सहयोग के बिना हम प्रगति कर भी नहीं सकते। यदि उनको अधिक से अधिक रियायतें दी जाती हैं और यदि उन्हें अधिक महत्व दिया जाता है, तो तदनुसार उसी अनुपात में स्वराज प्राप्त करने की उनकी जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है। यदि तीन पक्षों में कोई संघर्ष छिड़ जाए, तो उनमें से तीसरे को समाप्त करने के लिए दो को मिल ही जाना चाहिए। अग्रेज़ों के साथ चल रही रस्साकशी में मुसलमानों को हमारा साथ देना ही होगा। अतः निर्भीक होकर इस समय फौरन यह मांग करना, कि हम अपना शासन स्वयं चलाएंगे, सभी भारतीयों का परम कर्तव्य है।''

इस उद्धरण के साथ ही मुस्लिम लीग के अधिवेशन में दिए गए जिन्ना के अध्यक्षीय अभिभाषण का यह अंश देना भी उपयुक्त होगा, जिसमें उन्होंने कहा था कि-''अखिल भारतीय मुस्लिम लीग अपने सामान्य सिद्धान्तों और आदर्शो में कांग्रेस के साथ कदम से कदम मिलाकर देश को तरक्की के रास्ते आगे बढ़ाने के लिए किए जानेवाले किसी भी देशभक्तिपूर्ण प्रयास में भाग लेने को तैयार है।''

लखनऊ से तिलक कानपुर और कलकत्ता गए। इस यात्रा से ही उनके देशव्यापी दौरे का समारम्भ हुआ, जो अगले 18 महीनों तक चलता रहा। वह जहां कहीं भी गए, वहां उन्होंने लोगों को स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन का सन्देश सुनाया और उसके विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए जनता को समझाया कि यह आन्दोलन किस लिए छेड़ा गया है। उदाहरणार्थ, कानपुर में उन्होंने कहा-

''हम लोग ब्रिटिश साम्राज्य में केवल बराबरी के आधार पर ही रहेंगे। हम साम्राज्य में केवल नौकरों और कुलियों के रूप में नहीं रहेंगे। भारत को अब अपनी वास्तविक शक्ति और सच्चे स्वरूप का पता ठीक उसी प्रकार से चल गया है, जिस प्रकार कि कहावत है कि भेड़ों के बीच पले शेर के बच्चे को जल में अपनी परछाईं देखने के बाद इसका पता चला था। भारतीयों को अब अपनी स्थिति और भविष्य का पूरा-पूरा ज्ञान हो गया है। यदि जापानी, जो भारतीयों की भांति ही एशियावासी हैं, स्वतंत्रता का उपभोग कर सकते हैं और स्वराज का उत्तरदायित्व संभाल सकते हैं, तो हम भारतीय भी ऐसा क्यों नहीं कर सकते?''

लखनऊ कांग्रेस में स्थापित एकता और महान राष्ट्रीय नवजागरण को देखकर सरकार चिन्तित हो उठी। फरवरी, 1917 में पंजाब सरकार ने डिफेन्स ऑफ इण्डिया ऐक्ट के अन्तर्गत एक आदेश द्वारा पंजाब में तिलक का प्रवेश निषिद्ध कर दिया। दूसरी ओर जून में मद्रास सरकार ने श्रीमती एनी बेसेन्ट और उनके दो साथियों को गिरफ्तार कर लिया। इसी बीच सभी स्थानीय सरकारों को भेजे गए एक गुप्त परिपत्र में भारत सरकार ने यह निर्देश किया कि ''भारत सरकार की सिफारिश पर ब्रिटिश सरकार द्वारा अनुमोदित किसी भी सुधार से स्वशासन-विषयक बढ़ी-चढ़ी असामयिक मांग पूरी नहीं हो सकेगी, जिसके बारे में आन्दोलनकारी अपनी बहकी-निराशा से जनता में भ्रम फैला रहे हैं। इसलिए स्पष्ट है कि स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन चलानेवाली संस्थाएं इस बारे में लोगों में जितनी ही बड़ी-बड़ी आशाएं जगाएंगी, ब्रिटिश सरकार द्वारा अनुमोदित सुधारों के लागू किए जाने पर उतनी ही अधिक निराशा उसमें फैलेगी, जिसके परिणामस्वरूप लोग और भी जोरदार ढंग से इन सुधारों का विरोध करेंगे।''

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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