जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
|
0 5 पाठक हैं |
आधुनिक भारत के निर्माता
इस कटु आलोचना से सरकार तिलमिला उठी और डिफेन्स ऑफ इंडिया ऐक्ट के अन्तर्गत तिलक को अपने विचार व्यक्त न करने का आदेश मिला। किन्तु वह शीघ्र ही चिरोल मामले के सिलसिले में इंग्लैण्ड जानेवाले थे, इसीलिए लगता है, बम्बई सरकार ने उनके विरुद्ध कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की।
दूसरी ओर श्रीमती एनी बेसेन्ट की अध्यक्षता में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन ने मांटेग्यू घोषणा पर अपनी 'कृतज्ञता एवं सन्तोष' प्रकट किया और सरकार से अनुरोध किया कि ''भारत में उत्तरदायी सरकार स्थापित करने के सम्बन्ध में शीघ्र ही एक संसदीय परिनियम (पार्लिमेण्टरी स्टैट्यूट) बनाया जाए, जिसमें पूर्ण स्वराज देने की अन्तिम तिथि भी निश्चित हो।''
लेकिन जब जुलाई, 1918 में मॉण्टफोर्ड रिपोर्ट प्रकाशित हुई, तो इस आशा पर तुषारापात हो गया, क्योंकि इस रिपोर्ट में औपनिवेशिक दर्जे की कोई चर्चा नहीं थी, प्रान्तों में केवल द्वैध शासन लागू करने की व्यवस्था थी और केन्द्रीय सरकार को पहले की ही भांति निरंकुश और गैरजिम्मेदार रहने दिया गया था-यहां तक कि प्रान्तों में भी गवर्नरों को आरक्षण (रिजर्व) शक्तियां प्राप्त थीं, जो जनता द्वारा निर्वाचित मन्त्रियों के ऊपर तलवार की भांति लटक रही थीं।
मॉण्टफोर्ड रिपोर्ट पर तिलक की प्रतिक्रिया 'केसरी' में प्रकाशित एक सुप्रसिद्ध लेख-'सुबह हुई, किन्तु सूर्य कहां?'-के शीर्षक से ही स्पष्ट हो गई। मॉण्टफोर्ड रिपोर्ट पर विचार करने के लिए अगस्त, 1918 में बम्बई में कांग्रेस का एक विशेष अधिवेशन हुआ, जिसमें यह घोषणा की गई कि ''इस रिपोर्ट के सभी प्रस्ताव निराशा और असन्तोषजनक हैं।'' मुख्य प्रस्ताव पर, जिसमें कहा गया था कि 'भारत की जनता स्वशासन के योग्य है और इसके विरुद्ध रिपोर्ट में जो बातें कही गई हैं, उनका यह अधिवेशन खण्डन करता है,' भाषण करते हुए तिलक ने कहा-
'मॉण्टफोर्ड रिपोर्ट एक सुन्दर, अत्यंत चातुर्यपूर्ण और कूटनीतिक दस्तावेज है। हम लोगों ने आठ आना स्वशासन की मांग की थी। लेकिन आठ आने के बदले रिपोर्ट हमें एक आना उत्तरदायी सरकार ही देती है और कहती है कि यह आठ आने के स्वशासन से अधिक मूल्यवान है। इस रिपोर्ट की सारी कुशलता इसकी भाषा की शैली में है, जिससे हमें विश्वास कराने का प्रयत्न किया गया है कि उत्तरदायी सरकार का एक कौर हमारी पूर्ण स्वशासन की भूख को मिटाने के लिए पर्याप्त है। हम सरकार से यह स्पष्टतः कह देना चाहते हैं कि हम एक आना उत्तरदायी सरकार के लिए उसके आभारी हैं, किन्तु साथ ही हम चाहते हैं कि इस योजना में कांग्रेस-लीग योजना की सभी बातें भी शामिल कर ली जाएं।'
इस रिपोर्ट की खामियों से तिलक का यह विश्वास और भी दृढ़ हो गया कि ब्रिटेन की जनता को भारतीयों की आकांक्षाओं से परिचित कराने के लिए कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमण्डल इंग्लैण्ड अवश्य भेजना चाहिए। पहले-पहल यह विचार उनके मन में 1917 में ही आया था, किन्तु इस आशंका से, कि युद्धकाल में किसी ऐसे प्रतिनिधिमण्डल का' स्वागत ब्रिटेन कैसे करेगा, यह विचार उन्होंने छोड़ दिया था। किन्तु 1918 में परिस्थिति बदल गई थी। इसके अलावा, सर वैलेण्टाइन चिरोल के विरुद्ध दायर किए गए मानहानि के अपने मुकदमे के सिलसिले में उनका लन्दन जाना आवश्यक था। अतः अप्रैल, 1918 में उन्होंने कोलम्बो से लन्दन रवाना होने का प्रयत्न किया, किन्तु तत्कालीन ब्रिटिश युद्ध मन्त्रिमण्डल के आदेश से ठीक रवानगी के समय ही भारतीय प्रतिनिधिमण्डल के पारपत्र (पासपोर्ट) रद्द कर दिए गए, जिससे उनका लंदन जाने का प्रयास विफल हो गया।
परन्तु इस बीच एक आश्चर्यजनक बात यह हुई कि स्वयं भारत सरकार ने पैरवी करके ब्रिटिश सरकार से तिलक को लन्दन जाने की अनुमति दिलाने में सफलता प्राप्त की। यह अनुमति इस शर्त पर दी गई कि 'वह अपनी विदेश यात्रा के दौरान किसी भी राजनैतिक आन्दोलन में भाग नहीं लेंगे और न ही उनके साथ 'होम रूल लीग' या कांग्रेस का कोई प्रतिनिधि अथवा अन्य राजनैतिक समर्थक रहेगा।' सरकार के इस सद्भाव का मूल कारण यही था कि वह समझती थी कि तिलक ब्रिटेन की अपेक्षा भारत में रहकर सरकार के लिए अधिक खतरनाक साबित होंगे, क्योंकि ब्रिटेन में तो उनकी स्थिति 'समुद्र तट के एक कंकड़ के समान ही होगी।'
परिणामस्वरूप तिलक 24 सितम्बर, 1918 को जहाज से आर० पी० करंदीकर, गणेश वासुदेव जोशी और जी० एम० नामजोशी के साथ ब्रिटेन के लिए रवाना हो गए।
|
- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट