जीवनी/आत्मकथा >> समय की सलीब पर - 2 समय की सलीब पर - 2डॉ. विजयानन्द
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आत्मकथात्मक उपन्यास
'समय की सलीब पर' साहित्यकार विजयानन्द का दो भागों में प्रकाशित उपन्यास है। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद के ग्रामीण जीवन से आगे बढ़, नई दिल्ली और प्रयागराज को अपना कार्यक्षेत्र बनाकर उन्होंने जीवन संघर्ष के साथ, साहित्य में भी संघर्ष किया है। अब तक प्रकाशित उनकी लगभग अस्सी पुस्तकें उनके रचनाधर्म को सिद्ध करती हैं।
प्रस्तुत आत्मकथात्मक उपन्यास में कथाकार ने उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल का गरीबी, गाँव की दुश्मनी, द्वेष-ईर्ष्या से भरा आपसी संघर्ष, प्रयागराज के छात्र आंदोलन, राम जन्मभूमि आंदोलन तथा दिल्ली में जीविका के लिए संघर्ष और फिर वापस स्थाई रूप से प्रयागराज में रहकर शिक्षण संस्था चलाते हए, कोरोना के कारण आर्थिक तंगी से जूझते हुए, साहित्य सर्जना के पूरे सामाजिक परिवेश को वर्णित किया है।
आज के टूटते संयुक्त परिवारों एवं रिश्तों के संक्रांतिकाल को उपन्यास की कथावस्तु, अत्यंत संवेदना के साथ प्रस्तुत करती है, जिससे पाठकों को कुछ सीखने की प्रेरणा भी मिलती है।
यह उपन्यास अत्यंत पठनीय तथा संग्रहणीय बन गया है।
अनिल जोशी
साहित्यकार एवं उपाध्यक्ष,
केन्द्रीय हिन्दी संस्थान,
आगरा
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