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उपन्यास >> शेरसवारी

शेरसवारी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :303
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16200
आईएसबीएन :0

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विमल सीरीज - 34

पूर्वाभास

 

'जौहर ज्वाला' का आखिरी मंजर सोलह मई मंगलवार, की सुबह दिल्ली में लेखूमल झामनानी के फार्म पर वाकया होता है जबकि मुबारक अली और उसके साथी सोहल और नीलम को रिहा कराते हैं, 'भाई' और बिग बॉस रीकियो फिगुएरा वक्त रहते फार्म से उड़ जाते हैं और विमल बिरादरीभाइयों की-यानी कि झामनानी, पवित्तर सिंह, भोगीलाल और ब्रजवासी की-मुश्कें कस कर उन्हें पुलिस के रहमोकरम पर छोड़ जाता है। बिरादरीभाइयों की रखवाली के लिये वो झामनानी के ही दो खास कारिन्दों अमरदीप और शैलजा को तैनात करता है जिन्होंने कि विमल की फार्म से रवानगी के दो घन्टों बाद उन्हें मौकायवारदात पर मौजूद ए.सी.पी. प्राण सक्सेना और इन्स्पेक्टर नसीब सिंह के हवाले कर देना होता है और खुद भी पुलिस के हवाले होकर बिरादरीभाइयों के खिलाफ वादामाफ गवाह का रोल अदा करना होता है।

विमल नीलम के साथ मुम्बई होटल सी व्यू की सुरक्षा में पहुंच जाता है जहां उसे ये चिन्ता फिर भी सताती है कि भविष्य में फिर कभी भी बाजरिया नीलम और सूरज उस पर वार हो सकता था, बावजूद इसके कि होटल में मां बेटे की सुरक्षा के बहत पुख्ता इन्तजामात थे।

रीकियो फिगुएरा वापिस काठमाण्डू पहुंच जाता है और दिल्ली में अपनी पराजय और जख्मों को सहलाता 'भाई' पना, अपने एक खुफिया ठिकाने पर, पहुंचता है जहां फिगुएरा उसे फटकार लगाता है और खबरदार करता है कि उसका हुक्म अभी भी स्टैण्ड करता था कि एक महीने के अन्दर अन्दर-जिसमें से कि ग्यारह दिन गुजर भी चुके थे-उसने या तो सोहल की 'कम्पनी' की मुखालफत की जिद तोड़नी थी या उसकी हस्ती मिटा देनी थी।

पीछे दिल्ली के हालात से वाकिफ होने के लिये 'भाई' अपने दोस्त अमृतलाल नाग एम.पी. उर्फ नेताजी को दिल्ली फोन लगाता है।

फार्म में बन्धे पड़े झामनानी को अपने दो कारिन्दों हिम्मत सिंह और मुकेश बजाज की सूरत में बड़ी खुफिया, बड़ी नामुमकिन मदद हासिल हो जाती है जिससे उत्साहित होकर वो इन्स्पेक्टर नसीबसिंह से हालात को बिरादरीभाइयों के हक में मोड़ कर लीपापोती करने के लिये एक करोड़ रुपये की डील करता है। नतीजतन महाकरप्ट पुलिसिया नसीबसिंह ऐसी चाल चलता है कि अमरदीप और शैलजा मारे जाते हैं, ए.सी.पी. प्राण सक्सेना भी मारा जाता है और हालात को यूं मैनीपुलेट करता है कि ये लगता कि बिरादरीभाइयों को लाचार पाकर अमरदीप और शैलजा की नीयत खराब हो गयी थी, उन्होंने फार्म को लूटने की कोशिश की थी तो ए.सी.पी. प्राण सक्सेना ने अपनी जान पर खेल कर उन्हें मार गिराया था और खुद फर्ज की राह पर शहीद हो गया था। क्योंकि रिश्वत के एक करोड़ रुपये का तुरन्त भुगतान उन हालात में सम्भव नहीं था इसलिये फार्म पर उपलब्ध छः किलो हेरोइन वो अपने कब्जे में कर लेता है और उसे फार्म से बाहर कहीं छुपा आता है। फिर हवलदार तरसेमलाल-जो कि सोहल से हमदर्दी दिखाने की सजा के तौर पर मार डाला गया होता है-की लाश गायब कर दी जाती है, सारे यार्ड में फैले बेशुमार हथियार ठिकाने लगा दिये जाते हैं और यूं जाहिर किया जाता है कि पुलिस और दो विश्वासघाती आतताइयों के बीच-जो कि दो पुलिस अफसरों को वहां जबरन बन्धक बनाये बैठे थे-हुई मुठभेड़ के अलावा वहां कुछ भी नहीं हुआ था। कुछ हुआ था तो बस एक बेचारा युवा ए.सी.पी. शहीद हुआ था।

बिरादरीभाई हवा की तरह आजाद हो जाते हैं।

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