उपन्यास >> शेरसवारी शेरसवारीसुरेन्द्र मोहन पाठक
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विमल सीरीज - 34
ये खबर विमल तक बाजरिया मुबारक अली, 'भाई' तक बाजरिया अमृतलाल माग और फिगुएरा तक बाजरिया 'भाई' पहुंचती है।
मौकायवारदात पर तफ्तीश के लिये महरौली जोन का डी.सी.पी. एस.पी. श्रीवास्तव पहुंचता है जो कि फौरन भांप जाता है कि तमाम करतूत इन्स्पेक्टर नसीबसिंह की थी जो कि बिरादरीभाइयों के हाथों ऐसा बिका था कि उसने उनकी खातिर अपने ए.सी.पी. का कत्ल करने से भी गुरेज नहीं किया था लेकिन वो उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाता क्योंकि नसीबसिंह ने बहुत महारत से वारदात पर लीपापोती की होती है। वो झामनानी से पूछताछ करता है तो झामनानी वहां बिरादरीभाइयों की मौजूदगी की वजह एक पार्टी बताता है जो वहां आयोजित की गयी थी लेकिन एकाएक खूनखराबा वाकया हो जाने की वजह से जिसके मेहमान वहां से रुख्सत . हो गये थे। डी.सी.पी. झामनानी से उन तमाम मेहमानों की बमय नाम, पता, फोन नम्बर-लिस्ट हासिल करता है।
डी.सी.पी. श्रीवास्तव तमाम वाकये की खबर इन्स्पेक्टर नसीबसिंह के-और दिवंगत ए.सी.पी. प्राण सक्सेना के भी-आला अफसर डी.सी.पी. मनोहरलाल को करता है और उस पर अपना शक जाहिर करता है कि तमाम किया धरा नसीबसिंह का था जिसने जरूर बिरादरीभाइयों से कोई मोटी रिश्वत खायी थी। डी.सी.पी. मनोहरलाल नसीबसिंह को अपने आफिस तलब करता है, उसका बयान सुनता है, उसे क्रास क्वेश्चन करता है तो वो भी इसी नतीजे पर पहुंचता है कि झामनानी के फार्म पर हुए ड्रामे की असल कहानी कोई और ही थी जिस पर पर्दा डालने की हरचन्द कोशिश इन्स्पेक्टर नसीबसिंह कर रहा था। नतीजतन, पैंडिंग डिपार्टमेंटल इंक्वायरी, वो नसीबसिंह को सस्पेंड कर देता है और उसे चेता देता है कि आइन्दा उसकी हर मूवमेंट वाच की जाने वाली थी, उसकी टेलीफोन कॉल्स तक टेप की जाने वाली थीं और बिरादरीभाइयों से उसके, प्रत्यक्ष या परोक्ष, ताल्लुकात पर खास निगाह रखी जाने वाली थी।
अगले रोज सुबह दिल्ली में किंग्सवे कैम्प के एक खुफिया ठीये पर बिरादरीभाइयों की मीटिंग होती है जिसमें पवित्तर सिंह पिछले रोज जो कुछ हुआ उसके लिये झामनानी को जिम्मेदार ठहराता है क्योंकि उसने हाथ आते ही सोहल को मार गिराने की जगह उसकी खिल्ली उड़ाने की, उसको जलील करने की कोशिश की। रस बात पर पवित्तर सिंह और झामनानी में काफी तकरार होती है जिसमें भोगीलाल और ब्रजवासी थोड़ी बहुत कमीबेशी में झामनानी की तरफदारी करते हैं लेकिन बाद में पवित्तर सिंह की इस राय से सब इत्तफाक जाहिर करते हैं कि सोहल के आइन्दा कहर से बचने के लिये-जो कि उन्हें जिन्दा जान कर उन पर टूट के रहना था-ववती तौर पर उन्हें अन्डरग्राउन्ड हो जाना चाहिये था और किसी को ढूंढ़े नहीं मिलना चाहिये था। अलबत्ता मोबाइल फोनों के जरिये वो आपसी सम्पर्क बाखूबी बनाये रख सकते थे।
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