लोगों की राय

उपन्यास >> शेरसवारी

शेरसवारी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :303
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16200
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

विमल सीरीज - 34

रात आठ बजे पवित्तर सिंह अपनी कार खुद चलाता सुजान सिंह पार्क के टैक्सी स्टैण्ड पर पहुंचता है जो कि उसे मालूम होता है कि मुबारक अली का पक्का अड्डा था। वहां मुबारक अली उसे नहीं मिलता तो वो उसके जोड़ीदार करतारे के पास सन्देशा छोड़ के जाता है कि वो कल शाम चार बजे वहां मुबारक अली के लिये फोन करेगा लिहाजा उसे अड्डे पर रोक कर रखा जाये। वो बात फरीद नाम का अड्डे का एक क्लीनर भी सुनता है और उसके जरिये वो बात आखिरकार मुकेश बजाज और फिर झामनानी तक पहुंचती है जो कि हैरान होता है कि आखिर क्यों सरदार साईं मुबारक अली से दुश्मन के कैम्प के आदमी से, सोहल के खासुलखास से-मिलना चाहता था!

रात को बुझेकर, पिचड और विक्टर आकर इरफान और शोहाब को रिपोर्ट करते हैं। जेकब परदेसी का पता तब तक वो नहीं निकाल पाये होते लेकिन उस मीटिंग में ये बात उठती है कि दगड़ी चाल में बिलाल का कत्ल करने वाले को कैसे मालूम था कि बिलाल उधर ईरानी के रेस्टोरेंट में पहुंचने वाला था, जो वो उसके कत्ल का उधर एडवांस में इन्तजाम करके रख सका। तब जमीर मिर्ची नाम का वो टैक्सी ड्राइवर सब को याद आता है जो कि विक्टर का दोस्त था, जो उन्हें दगड़ी चाल के रास्ते में माहिम काजवे की लालबत्ती पर मिला था जिसे विक्टर ने खुद बताया था कि वो भायखला जा रहा था, जरूर वो बिलाल को जानता था और समझ गया था कि वो गिरफ्तार था और भायखला ले जाया जा रहा था, लिहाजा जरूर आगे उसी ने इस बाबत एडवांस में किसी को खबर पहुंचायी थी।

इरफान जमीर मिर्ची को थामने का हुक्म देता है।

रात को इनायत दफेदार मुम्बई पुलिस के डी.सी.पी. डिडोलकर के घर पहुंचता है जिसकी बाबत कि उसे मालूम होता है कि वो कम्पनी' का पिट्ठ था और 'कम्पनी' के निजाम के दौरान 'कम्पनी' के बिग बॉसेज के हाथों फुल बिका हुआ पुलिसिया था। दफेदार उसे 'भाई' के खास आदमी के तौर पर अपना परिचय देता है और उसे 'भाई' का हुक्म सुनाता है कि वो किसी भी तरीके से कथित राजा गजेन्द्र सिंह एन.आर.आई. फ्रॉम नैरोबी को-जो कि होटलं सी-व्यू का मालिक बना बैठा था लेकिन असल में कोई एन.आर.आई. नहीं, मशहर इश्तिहारी मुजरिम सरदार सरेन्द्र सिंह सोहल था-एक्सपोज करे। डिडोलकर उसे एक कठिन काम मानता है इसलिये दो दिन में अपना जवाब देने के लिये कह कर दफेदार को रुख्सत कर देता है।

उसी रात को दफेदार मुम्बई से नब्बे किलोमीटर दूर पनवल और नेराल के बीच एक ऊबड़खाबड़, विंस्टन प्वायंट के नाम से जाने जाने वाले, इलाके के एक तारीक लेकिन मुकम्मल तौर से महफूज बंगले में 'भाई' से रूबरू मिलता है और दिनभर की भाग दौड़ की-जिसमें बिलाल का कत्ल भी शुमार होता है-अपनी रिपोर्ट पेश करता है। 'भाई' इस बात से असंतोष जाहिर करता है कि डी.सी.पी. डिडोलकर ने अपना जवाब दो दिन में देना था लिहाजा वो दफेदार को सुपारी किलर बारबोसा की तलाश का हुक्म देता है ताकि उसे राजा गजेन्द्र सिंह की सुपारी दी जा सकती। साथ ही वो एक वफादार आदमी को जेल भिजवाने की बात करता है जो ये दावा करे कि वो 'भाई' का लोकल पता जानता था जो कि वो जेल से रिहाई के बदले में सोहल को बता सकता था।

सोहल की लाश गिराने के 'भाई' के उस चौतरफा इन्तजाम से दफेदार को इत्तफाक नहीं होता लेकिन वो हर बात के लिये हामी भरता है।

(यहां तक की कहानी आपने 'चाण्डाल चौकड़ी' में पढ़ी। अब आगे पढ़िये....)

...Prev |

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai