उपन्यास >> शेरसवारी शेरसवारीसुरेन्द्र मोहन पाठक
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विमल सीरीज - 34
उन्हें राजा साहब का टका सा जवाब मिलता है कि लीज कैंसल नहीं हो सकती थी। रणदीवे अपनी और अपने डायरेक्टर साहबान की जान को खतरा बताता है तो राजा साहब का जवाब होता है कि वो उनकी जाती प्राब्लम थी। रणदीवे कोर्ट में जाने की धमकी देता है जिसका राजा साहब पर कोई असर नहीं होता। तब रणदीवे मजबूरन वो कदम उठाने की बात करता है जो वो नहीं उठाना चाहता था। वो ये रहस्योद्घाटन करता है कि वो, राजेश जठार और मोहसिन खान जानते थे कि राजा साहब सोहल था। रणदीवे सविनय कहता है कि अगर सोहल उनकी प्राब्लम को अपनी प्राब्लम नहीं समझेगा तो मजबूरन उन्हें अपनी उस जानकारी के साथ पुलिस के पास जाना पड़ता, राजा साहब गिरफ्तार हो जाता और फिर होटल अपने आप ही मौजूदा लीज से आजाद हो जाता। विमल उनसे सहयोग करने का वादा करता है और कहता है कि दो दिन बाद जब दफेदार जवाब मांगने आये तो वो उसे जवाब दें कि एक भारी कम्पैंसेशन की एवज में राजा साहब एक हफ्ते में होटल खाली कर देने के लिये तैयार हो गये थे। यूं उन्हें नौ दिन की मोहलत मुहैया हो जाती जिसके दौरान 'भाई' के जहन्नुमरसीद हो जाने की पूरी पूरी सम्भावना थी।
वो लोग खुशी खुशी वापिस लौट जाते हैं। दिल्ली में शाम को जीओज़ क्लब में डी.सी.पी. मनोहरलाल की डी.सी.पी. श्रीवास्तव से मुलाकात होती है। मुलाकात के दौरान वार्तालाप में इन्स्पेक्टर नसीबसिंह की सस्पेंशन और झामनानी के फार्म पर मेहमानों की लिस्ट का जिक्र आता है। श्रीवास्तव बताता है कि लिस्ट में दर्ज कुछ मेहमानों को चैक किया गया था लेकिन वो सब झामनानी के पढ़ाये तोते निकले थे इसलिये उस तफ्तीश को वक्त बरबादी जान कर ड्राप कर दिया गया था। उसी क्षण क्लब के टी.वी. पर एक न्यूज फ्लैश होती है जिसके मुताबिक परसों रात आधी रात के बाद विवेक विहार निवासी बिजनेसमैन साधूराम मालवानी एक पार्टी से घर लौट रहा था तो वो मॉब फ्यूरी का शिकार हो गया था। एक गलतफहमी के तहत कुछ लोगों ने उसकी कार रोक कर उसे इस बुरी तरह धुनना शुरू कर दिया था कि अगर तभी वहां पुलिस की एक गश्ती गाड़ी न पहुंच गयी होती तो वो यकीनन ठौर मारा जाता। खबर के मुताबिक मालवानी,परसों रात से ही प्रीत विहार के एक नर्सिंग होम में भर्ती था।
वो खबर डी.सी.पी. मनोहरलाल को चौंकाती है क्योंकि एक साधूराम मालवानी झामनानी की गैस्ट लिस्ट में भी दर्ज था। अगर टी.वी. न्यूज वाला शख्स वही मालवानी था तो वो तो झामनानो के फार्म पर मौजूद हो ही नहीं सकता था।
तत्काल प्रीतविहार थाने के एस.एच.ओ. को फोन किया जाता है और उसे नर्सिंग होम जाकर मालवानी का बयान लेने का हुक्म दिया जाता है।
लेकिन इत्तफाक ऐसा होता है कि लिस्ट के जिन दो साइयों से झामनानी का सम्पर्क नहीं हो सका होता, उनसे सम्पर्क बनाने के लिये झामनानी पहले ही ब्रजवासी के साथ निकला होता है। लिहाजा प्रीतविहार के नर्सिंग होम में मालवानी के पास वो दोनों पहले पहुंच जाते हैं जहां कि झामनानी अपने सिन्धी भाई को अपने हक में बयान देने के लिये तैयार कर लेता है और यूं एक बार फिर झामनानी का ।
खेल बिगड़ते बिगड़ते बच जाता है।
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