आचार्य श्रीराम शर्मा >> महाकाल का सन्देश महाकाल का सन्देशश्रीराम शर्मा आचार्य
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Mahakal Ka Sandesh - Jagrut Atmaon Ke Naam - a Hindi Book by Sriram Sharma Acharya
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मन की चाल दुमुँही हैं। जिस प्रकार दुमुँहा साँप कभी आगे चलता है, कभी पीछे।उसी प्रकार मन में दो परस्पर विरोधी वृत्तियाँ काम करती रहती हैं। उनमें से किसे प्रोत्साहन दिया जाए और किसे रोका जाए, यह कार्य विवेक बुद्धि काहै। हमें बारीकी के साथ यह देखना होगा कि इस समय हमारे मन की गति किस दिशा में है ? यदि सही दिशा में प्रगति हो रही है, तो उसे प्रोत्साहन दियाजाए और यदि दिशा गलत है, तो उसे पूरी शक्ति के साथ रोका जाए, इसी में बुद्धिमत्ता है; क्योंकि सही दिशा में चलता हुआ मन जहाँ हमारे लिएश्रेयस्कर परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है, वहाँ कुमार्ग पर चलते रहने से एक दिन दु:खदायी दुर्दिन का सामना भी करना पड़ सकता है।
(अखण्ड ज्योति-१९६२, जून-४४)
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इस उथल-पुथल के युग में जबकि समुद्र मंथन जैसा संघर्ष चल रहा है, एक ओर बुराईकी तो दूसरी ओर अच्छाई की शक्ति जीवन-मरण के युद्ध में संलग्न है, तो हमें निरपेक्ष दर्शक की तरह नहीं बैठे रहना चाहिए। पाप और पतन की ओर ले जानेवाली दुष्प्रवृत्तियों से जूझने के लिए और पुण्य एवं उत्थान की ओर अग्रसर करने वाली सत्प्रवृत्तियों के समर्थन के लिए यदि हम कुछ न करेंगे, तो उसकेपरिणाम अत्यधिक भयानक होंगे। ऐसे संकटकाल में मौन रहना एवं निष्क्रियता धारण करना भी एक प्रकार का पाप है।
(अखण्ड ज्योति-१९६२, फरवरी-५९)
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जिधर भी दृष्टि पसारकर देखते हैं, तो इस सुन्दर-सज्जित दुनिया में एक ही कमीदीखती हैउच्च भावनाओं, उदारता, आत्मीयता एवं कर्तव्य निष्ठा की। इस अभाव के कारण परमात्मा की यह सुन्दर कृति डरावनी और नरक-सी वीभत्स दिखती है।अविश्वास, संदेह, आशंका और विपत्ति की घटाएँ ही चारों ओर घुमड़ती दिखती हैं। यह सब कुछ विकसितऔर गतिशील दिखता है; पर एक ही वस्तु मूर्छित,निर्जीव दिखती है, वह है-मनुष्य की अंतरात्मा। इसी की उपेक्षा सबसे अधिक हो रही है। सब कुछ बढ़ाने की योजनाएँ बन रही हैं, पर मनुष्यत्व का, चरित्रऔर अत्यधिक भयानक होंगे। ऐसे संकटकाल में मौन रहना एवं निष्क्रियता धारण करना भी एक प्रकार का पाप है।
(अखण्ड ज्योति-१९६२, फरवरी-५९)
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