आचार्य श्रीराम शर्मा >> महाकाल का सन्देश महाकाल का सन्देशश्रीराम शर्मा आचार्य
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Mahakal Ka Sandesh - Jagrut Atmaon Ke Naam - a Hindi Book by Sriram Sharma Acharya
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जिधर भी दृष्टि पसारकर देखते हैं, तो इस सुन्दर-सज्जित दुनिया में एक ही कमीदीखती हैउच्च भावनाओं, उदारता, आत्मीयता एवं कर्तव्य निष्ठा की। इस अभाव के कारण परमात्मा की यह सुन्दर कृति डरावनी और नरक-सी वीभत्स दिखती है।अविश्वास, संदेह, आशंका और विपत्ति की घटाएँ ही चारों ओर घुमड़ती दिखती हैं। यह सब कुछ विकसितऔर गतिशील दिखता है; पर एक ही वस्तु मूर्छित,निर्जीव दिखती है, वह है-मनुष्य की अंतरात्मा। इसी की उपेक्षा सबसे अधिक हो रही है। सब कुछ बढ़ाने की योजनाएँ बन रही हैं, पर मनुष्यत्व का, चरित्रऔर आदर्शवाद का भी उत्कर्ष हो, इसकी न तो आवश्यकता समझी जाती है और न चेष्टा की जाती है।
(वाङ्मय-६४, पृ० १.२४)
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सच्चा मनुष्य एक शूरवीर सिपाही की भाँति निर्भीक रहता है। वह आदर्श औरसिद्धान्तों का पालन करने के लिए अपने शरीर के टुकड़े-टुकड़े करा देने पर भी पथ से विचलित नहीं होता। दूसरों के प्राणों की रक्षा करने के लिए जिसनेअपने प्राणों की बाजी लगा डाली है, उस उदार चित्त सैनिक का जीवन किसी संत से कम नहीं है। तीर, तलवारों की वर्षा जिसके विश्वास को डगमगाती नहीं, जोअपने प्राणों से बढ़कर राष्ट्र के गौरव और सम्मान को समझता है, वही शूरवीर इस धरती पर धन्य होता है। जीते तो सभी हैं; पर जो सिद्धान्त के लिए जीवितहैं, जीना उन्हीं का सार्थक है।
(अखण्ड ज्योति-१९६२)
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पाप की अवहेलना मत करो। छोटा-सा बिच्छू अपने डंक से तिलमिला देने वाली पीड़ाउत्पन्न कर सकता है। पाप का प्रश्रय बिच्छु पालने के समान है। मन में पाप प्रलोभनों को पालने से कभी भी भयंकर विपत्ति टूट पड़ने की आशंका बनीरहेगी। आग की छोटी चिनगारी विशाल तन को जलाकर खाक कर देने वाली दावानल बन सकती है। पाप प्रवृत्ति की चिनगारी कार्यान्वित तो होती नहीं, मन में भीतरछिपी पड़ी है उससे क्या हानि? ऐसा सोचकर उसे उपेक्षापूर्वक प्रश्रय नहीं दिये रहना चाहिए। उसका संचय कभी भी विस्फोटक परिणाम प्रस्तुत कर सकता है।
(अखण्ड ज्योति-१९७४, जुलाई-१८)
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