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आचार्य श्रीराम शर्मा >> महाकाल का सन्देश

महाकाल का सन्देश

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16271
आईएसबीएन :000000000

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Mahakal Ka Sandesh - Jagrut Atmaon Ke Naam - a Hindi Book by Sriram Sharma Acharya

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हम जो सोचते हैं, वही सही है, हम जो चाहते हैं, वही उचित है-इस दुराग्रहीमान्यता ने मानवी प्रगति में अत्यधिक बाधा उत्पन्न की है और संसार की  शान्ति में भारी व्यवधान उत्पन्न किया है। अधिकाधिक उपभोग का अधिकारहमें है, दूसरों को अभावग्रस्त रहना पड़े, तो वे रहें हमें इसकी क्या चिन्ता है? यह विचार संकीर्ण स्वार्थवाद से भरा है, उसी प्रकार यह माननाभी सरासर अन्याय है कि हम जो सोचते हैं, वही सही है, हमारी चाहना ही न्यायोचित है। उस चाहना की पूर्ति में दूसरों के स्वार्थ यदि टकराते हों,तो भी उनकी उपेक्षा करके अपनी ही इच्छा पूर्ण होनी चाहिए, इस तरह सोचना चिंतन की निकृष्ट संकीर्णता है। उससे अन्याय का ही पोषण हो सकता है औरसंघर्ष, विद्वेष ही बढ़ सकता है।

(अखण्ड ज्योति-१९७४, जून-१७)

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भविष्य हमेशा अनिश्चित है, लेकिन वर्तमान निश्चित है। अतः अपनी निश्चित निधि कोखोकर अनिश्चित के लिए सोच-विचारों में उलझे रहना भविष्य के प्रति वर्तमान का अनादर करना है। वैसे भविष्य की चिन्ता करना बुरा नहीं है। उसकीएक निश्चित योजना-रूपरेखा बनाकर ही वर्तमान की पगडंडी पर चला जा सकता है।

(अखण्ड ज्योति-१९६३, मई-२४)

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संसार का कोई भी महत्त्वपूर्ण कार्य संकट और विघ्न से रहित नहीं होता। उसकीमहत्ता ही इसलिए होती है कि वह संकटों और विघ्नों की संभावनाओं से भरा होता है। जिस कार्य में संकट का सामना न करना पड़े और वह आसानी से पूरा होजाए, तो उसका महत्त्व कम ही रहेगा, फिर वह काम देखने में कितना ही बड़ा क्यों न हो। जो व्यक्ति संकट के भय से प्रगति करने का साहस नहीं करते,उन्हें सोचना चाहिए कि क्या इस जड़ता से वे सर्वथा बच जाएँगे?

(वाङ्मय-५७, पृ० २.४२)

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