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आचार्य श्रीराम शर्मा >> महाकाल का सन्देश

महाकाल का सन्देश

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16271
आईएसबीएन :000000000

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Mahakal Ka Sandesh - Jagrut Atmaon Ke Naam - a Hindi Book by Sriram Sharma Acharya

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आदर्शों के लिए गहरी निष्ठा रखने वाले व्यक्ति अपने कर्तव्य से इसलिए नहीं रुकते कि उनके मार्ग में खतरा है। खतरे को कमजोर और कायर नहीं उठा सकते, वे घाटा भी नहीं उठा सकते,किन्तु जिन्हें कर्तव्य का बोध है, वे समय पर अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में चूकते नहीं। मनोबल का सत्साहस उनका समर्थ साथी होता है।

(वाङ्मय-५७, पृ० २.२३)

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हमारा गायत्री परिवार घटिया स्तर का जीवनयापन करने का कलंक न ओढ़े रहे।प्रकारान्तर से यह लांछन अपने ऊपर भी आता है। हम किस बूते पर अपना सिर गर्व से ऊँचा कर सकेंगे। हमारा कर्तृत्व पोला था या ठोस, यह अनुमान उनलोगों की परख केरके लगाया जाएगा, जो हमारे श्रद्धालु एवं अनुयायी कहे जाते हैं। यदि वे वाचालता भर के प्रशंसक और दण्डवत् प्रणाम भर के श्रद्धालुरहे, तो माना जाएगा कि सब कुछ पोला रहा। यह अवसर न आए। बात बहुत, काम कुछ नहीं वाली विडम्बना का तो अब अन्त होना ही चाहिए।

(अखण्ड ज्योति-१९६९, नवम्बर-६२)

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हमें जानना चाहिए कि मनुष्य केवल शरीर मात्र ही नहीं है। उसमें एक परम तेजस्वीआत्मा भी विद्यमान है। हमें जानना चाहिए कि मनुष्य केवल धन, बुद्धि और स्वास्थ्य के भौतिक बलों से ही सांसारिक सुख, सम्पदा, समृद्धि एवं प्रगतिप्राप्त नहीं कर सकता। उसे आत्मबल की भी आवश्यकता है। आत्मा के अभाव में शरीर की कीमत दो कौड़ी भी नहीं रहती। इसी प्रकार आत्मबल के अभाव में तीनोंशरीर बल मात्र खिलवाड़ बनकर रह जाते हैं। वे किसी के पास कितनी ही बड़ी मात्रा में क्यों न हो, उससे सुखानुभूति नहीं मिल सकती। वे केवल भार,तनाव, चिन्ता एवं उद्वेग का कारण बनेंगे और यदिकहीं उनका दुरुपयोग होने लगा, तब तो सर्वनाश की भूमिका ही सामने लाकर खड़ी कर देंगे।

(अखण्ड ज्योति-१९६९, फर० ३)

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