आचार्य श्रीराम शर्मा >> महाकाल का सन्देश महाकाल का सन्देशश्रीराम शर्मा आचार्य
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Mahakal Ka Sandesh - Jagrut Atmaon Ke Naam - a Hindi Book by Sriram Sharma Acharya
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केवल अपने सुख, अपने मंगल और अपने कल्याण में व्यस्त और अपने ही लोगों का ध्यानरखने वाले लोग ईश्वरीय कर्तव्य से विमुख रहते हैं। अपना मंगल और अपना कल्याण भी वांछनीय है, लेकिन सबके साथ मिलकर, एकाकी नहीं। अपने हित तकबंधे रहने वाले बहुधा स्वार्थी हो जाते हैं। स्वार्थ और ईश्वरीय कर्तव्य में विरोध है। जो स्वार्थी होगा, वह कर्तव्य विमुख ही चलता रहेगा।
(अखण्ड ज्योति-१९६९, जन० ३)
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अगर हम अब तक चले आ रहे मृत रूपों को छोड़ने और नए आदर्शों वाली संस्था कीरचना करने में सक्षम नहीं होते, तो हम समाप्त हो जाएँगे। हमने एक महान् सभ्यता के निर्माण के लिए, उज्ज्वल भविष्य की संरचना के लिएपर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया है, लेकिन इसे नियंत्रित करने और सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त बुद्धि अर्जित नहीं की है। विचारों और सिद्धान्तोंके रूप में हमारे पास युगों-युगों की धरोहर है, लेकिन यह सब तब तक व्यर्थ है, जब तक हम इसे युगानुरूप बनाकर अपने व्यवहार में न ले आएँ, स्वयंआत्मसात् न कर लें।
(अखण्ड ज्योति-१९९८, जून)
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दुर्गुणी परिजन हमें उतना ही दु:ख देते हैं, जितना शरीर में घुसा हुआ कोई निरन्तरपीड़ा देने वाला कष्टसाध्य रोग। शरीर में घुसे हुए रोगों की उपेक्षा करने और उन्हें पनपने देने में एक दिन मृत्यु संकट ही उपस्थित हो जाता है। उसीप्रकार परिजनों में घुसे हुए दुर्गुण घर को नष्ट-भ्रष्ट और नारकीय अग्नि कुण्ड जैसा दु:खदायक बना सकते हैं। समय रहते इलाज जरूरी है। बिगाड़को रोकने के लिए हम कुछ नहीं करते, तो आगामी पीढ़ियाँ इस निष्क्रियता को क्षमा नहीं करेंगी।
(अखण्ड ज्योति-१९६२, जून-१७)
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