आचार्य श्रीराम शर्मा >> उत्तिष्ठत जाग्रत उत्तिष्ठत जाग्रतश्रीराम शर्मा आचार्य
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मनुष्य अनन्त-अद्भुत विभूतियों का स्वामी है। इसके बावजूद उसके जीवन में पतन-पराभव-दुर्गति का प्रभाव क्यों दिखाई देता है?
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अपना मूल्य गिरने न पाये, यह सतर्कता जिसमें जितनी पाई जाती है, वह उतना ही प्रगतिशील है।
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सिद्धान्तों के शब्द जाल में उलझकर व्यक्ति ज्ञानी तो नहीं, अभिमानी जरूर बन जाता हैऔर व्यक्ति को अभिमान से वैसे ही विरक्त रहना चाहिए, जिस प्रकार जल से कमल।
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प्रतिभाशाली का पाप समाज का बहुत बड़ा अहित करता है।
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पैसे से भी अधिक महत्त्वपूर्ण संपत्ति है-समय। खोया हुआ पैसा फिर पाया जा सकताहै, पर खोया हुआ समय फिर कभी लौटकर नहीं आता। के जीवन के कुछ स्तम्भ हैं, जिनके आधार पर सारा जीवन टिका है। अगर ये स्तम्भ कमजोर हैं, तो जीवन काकोई महत्त्व नहीं है, वे आधार हैं-
१-दृढ़ संकल्प
२-आत्म-विश्वास
३-निश्चित उद्देश्य
४-अनुकूल वातावरण और
५-सही विचार।
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देवमानव वे हैं, जो आदर्शों के क्रियान्वयन की योजना बनाते और सुविधा कीललक-लिप्सा को अस्वीकार करके युगधर्म के निर्वाह की काँटों भरी राह परएकाकी चल पड़ते हैं।
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ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओ, जो महान् है, उसका अवलम्बन करो और आगे बढ़ो।
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यदि तुम सफलता चाहते हो, तो अध्यवसाय को अपना मित्र, अनुभव को अपना सलाहकार, सावधानी को भाई और आशा को अपना अभिभावक बनाओ।
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दुनिया में भाग्य को रोककर नष्ट करने वाले दो ही कारण हैं-
१-अभिमान
२-घृणा।
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