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मैं था, चारदीवारें थीं

राजकुमार कुम्भज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16638
आईएसबीएन :978-1-61301-740-1

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P R E V I E W

ख़ुद की टक्कर से

 

नहीं है कोई
युग बीते मगर अकेला ही हूँ मैं
भीड़ है, धधकती आग है, सूना है
और युद्धरत सपना फिर भी
और क़ायम ताप में तपना फिर भी
जाता हूँ खेतों की तरफ़ जाता हूँ
चट्टानों से टकराता हूँ
जल-गीत गाता हूँ
खेलता हूँ द्वार-पार-झंकार सब
छोड़ता हूँ, दूर छोड़ता हूँ
हाहाकार सनी टूटी तलवार
भूलते हुए ख़ुद को, हँसी ख़ुद की
मिलेगी वह मुझको है तलाश जिसकी
और कि अंततः पैदा होती है जो चमक
ख़ुद की टक्कर से, सबके लिए।

 

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