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मैं था, चारदीवारें थीं

राजकुमार कुम्भज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16638
आईएसबीएन :978-1-61301-740-1

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P R E V I E W

जिनकी नहीं राह कोई

 

युद्ध-मैदानों में
फ़ौलादी इरादे लिए दौड़ रहे हैं घोड़े
दौड़ते घोड़ों के पाँव हवा में हैं
हवा में मचल रही हैं चिंगारियाँ
ऐसे में, ऐसे में बहुत संभव है
कि दौड़ते घोड़ों के पाँवों से
लिपट सकते हैं वे सर्प
जिनकी नहीं राह कोई
न रोशनी।

 



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