नई पुस्तकें >> मैं था, चारदीवारें थीं मैं था, चारदीवारें थींराजकुमार कुम्भज
|
0 5 पाठक हैं |
जिनकी नहीं राह कोई
- युद्ध-मैदानों में
- फ़ौलादी इरादे लिए दौड़ रहे हैं घोड़े
- दौड़ते घोड़ों के पाँव हवा में हैं
- हवा में मचल रही हैं चिंगारियाँ
- ऐसे में, ऐसे में बहुत संभव है
- कि दौड़ते घोड़ों के पाँवों से
- लिपट सकते हैं वे सर्प
- जिनकी नहीं राह कोई
- न रोशनी।
|
- विषय क्रम
अनुक्रम
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book