नई पुस्तकें >> मैं था, चारदीवारें थीं मैं था, चारदीवारें थींराजकुमार कुम्भज
|
0 5 पाठक हैं |
क्रमशः
1. चटकें चट्टानें / 13
2. कितने जन्म, कितनी मृत्यु ? / 14
3. शायद, मैं कवि होना चाहता हूँ / 15
4. सिर्फ़ कविता थी / 16
5. आदमी का हौसला / 17
6. जिनकी नहीं राह कोई / 18
7. ख़ुद की टक्कर से / 19
8. आख़िर वे कौन थे? / 20
9. मैं खुरचता हूँ अंधेरा / 21
10. क्या कुछ सोचते हुए ? / 22
11. अभी रात है तो सुबह भी होगी / 23
12. भाषा के अहाते में / 24
13. मैं हारते-हारते भी / 25
14. जीवन-संग्राम का सवाल हो तो / 26
15. ऐसे-कैसे होता है वसंत ? / 27
16. हवा बदल रही है चेहरा / 29
17. दुनिया ख़त्म होने से पहले / 30
18. जहाँ तक मैं समझता हूँ - 1 / 31
19. जहाँ तक मैं समझता हूँ - 2 / 32
20. जहाँ तक मैं समझता हूँ - 3 / 33
21. जहाँ तक मैं समझता हूँ - 4 / 34
22. जहाँ तक मैं समझता हूँ-5 / 35
23. मुझमें बची है कविता / 36
24. चहचहाना भूल रही हैं चिड़ियाएँ / 38
25. नामवर आलोचकजी नहीं रहे / 39
26. बाहर हाँफ रहे हैं तानाशाह / 40
27. हिंसक जानवरों से भरी है दुनिया / 41
28. हरी घास की आकाँक्षा / 42
29. हज़ारों संदेह के हज़ारों पक्षी / 43
30. ठीक-ठीक पहचानते हुए भी / 45
31. सर्कस में / 46
32. इक्कीसवीं सदी के जन / 47
33. बच्चे और फूल / 48
34. अंत में प्रेम के लिए / 49
35. अपनी मृत्यु के बाद भी / 50
36. शर्तें लागू / 51
37. तोड़ो मौन, तोड़ो मौन / 52
38. कबाड़ होते इस जीवन में / 54
39. सुंदर और क्रूर / 55
40. शायद, रूमाल होने का ख़्याल था / 56
41. यही तो कहता है वसंत / 57
42. सबूत माँगती रही कविता / 58
43. मैं पूछना चाहता हूँ / 59
44. ज़िद है कि हारती नहीं / 60
45. एक रंग भीगी पलकें / 61
46. अंधेरा और दलदल / 63
47. आख़िर वो हैं किधर ? / 64
48. कत्थई आकाश में / 66
49. जीवन में जो कुछ भी होता है / 67
50. फ़ख्र नहीं, फ़िक्र करो / 69
51. ज़िंदगी / 70
52. है लोकतंत्र यही / 71
53. ज़िद / 72
54. कोई शर्त नहीं / 73
55. सब की मुक्ति में / 74
56. सुनते हुए आवाज़ें सब / 75
57. कहा है सरकार ने / 76
58. बहत्तर में भी बृहत्तर के लिए / 77
59. दर्पण में लोकतंत्र / 79
60. लोकतंत्र है तो / 80
61. हर हाल / 81
62. ईश्वर ने बनाए जंगल / 82
63. जो हमसे बड़े हैं / 83
64. अपनी सोच-समझ से / 84
65. जिस किसी भी भीड़ में रहूँगा / 86
66. प्रेम एक अच्छी मनोदशा है / 88
67. बीच में कुछ सिक्के थे ज़रूर / 90
68. एक दिन खिलखिलाएँगी लड़कियाँ / 91
69. छ: दिसम्बर का दिन इस बार / 92
70. परछाई का करते हुए पीछा / 94
71. ईश्वर एक अफ़वाह है / 95
72. जब भी बोलता है राजा / 96
73. चुपके से कहा किसी ने चीखो / 98
74. तुम्हारी वीरान और सूनी आँखों में / 99
75. अधलिखी क़िताब है ज़िंदगी / 100
76. दोस्तों और शराब के होते हुए भी / 101
77. बूँद-बूँद अकेली लेकिन / 102
78. मैं था, चार दीवारें थीं / 103
79. कोशिश तो करो / 104
80. मैं उन बादलों को गोली मार दूँगा / 105
81. मैं धूप से बाहर हूँ / 106
82. प्रेम की आँख नहीं थी / 107
83. सामने दो रोटियाँ रखी थीं / 109
84. वसंत अब भी संभावना है / 110
85. आगे फैला हुआ हाथ / 111
86. क्रमशः कार्यक्रम, क्रमश: तमाशा / 112
87. दुःख ही है निश्चित / 113
88. हर चीख में मैं हूँ, हर चीख मेरी है / 114
89. बाहर का रास्ता / 116
90. चुंधिया रही थीं आँखें / 117
91. रद्द करते हुए तालियाँ / 118
92. प्रेम के पाँव नहीं थे / 119
93. मीडिया स्टूडियो में विशेषज्ञ / 121
94. जगह तो बहुत है / 123
95. तुम्हारे होठों पर / 125
96. तुम्हारी नींद में / 126
97. तुम्हारी पीठ पर / 127
98. हँसी ख़ुशी है कहाँ ? / 128
99. सार्थक गली / 129
100. प्रतिज्ञा यही थी / 130
101. हँसते हुए आदमी से बचो / 132
102. पहाड़ चढ़ने से पहले / 134
103. आग हारे नहीं / 135
104. लगभग आत्महत्या / 136
105. जुलूस निकलने ही वाला है / 137
106. मैं एक रुमाल ढूँढ रहा हूँ / 138
107. इधर घटती जाती थी उम्र / 140
108. ज़िम्मेदारी से बचते-बचाते / 142
109. थोड़ी-सी ज़मीन चाहिए / 143
110. स्वच्छता और रक़्क़ासा के लिए / 144
|
- विषय क्रम