नई पुस्तकें >> मैं था, चारदीवारें थीं मैं था, चारदीवारें थींराजकुमार कुम्भज
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कितने जन्म, कितनी मृत्यु ?
- मैं भूलता हूँ एक नदी
- कि वह जो चली आ रही थी जन्मों से
- और इसलिए कि मुझे मिलती हैं
- नदियाँ नई-नई, कई-कई
- और इसलिए कि नींद से बाहर निकल कर
- शायद नींद से बाहर निकल कर ही
- होता है पत्थरों तक का पुनर्जन्म
- कहने को तो थी उस तरफ़ भी ज़िंदगी
- लेकिन वह उतनी, वही, वैसी ही नहीं थी
- जितनी कि यह और जो कि पाई अभी-अभी
- फिर पता नहीं, कितने जन्म, कितनी मृत्यु?
- मैं भूलता हूँ एक सदी।
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