नई पुस्तकें >> मैं था, चारदीवारें थीं मैं था, चारदीवारें थींराजकुमार कुम्भज
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शायद, मैं कवि होना चाहता हूँ
- मैं नदी होना चाहता हूँ
- ताकि मुझमें तैरती मिलें मछलियाँ
- मैं हवा होना चाहता हूँ
- ताकि मुझमें उड़ती मिलें चिड़ियाएँ
मैं आग होना चाहता हूँ- ताकि मुझमें उठती मिलें ज्वालाएँ
शायद, मैं कवि होना चाहता हूँ ।
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