नई पुस्तकें >> मैं था, चारदीवारें थीं मैं था, चारदीवारें थींराजकुमार कुम्भज
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सिर्फ़ कविता थी
- सिर्फ़ कविता थी
- अंतिम प्रेम जैसा कुछ नहीं था वहाँ
- एक सुंदर-सा खिलौना था मिट्टी का
- जिसमें राख, मिट्टी, धूल भरी थी
- और सूखे पत्तों जैसी कुछ चिट्ठियाँ रखी थीं
- जिनके शब्द-शब्द में भरा था
- सदियों का पानी और दुःख
- वहीं कहीं एक उजाड़ था
- जिसमें मैं टँगा था
- और बज रही थी बाँसुरी
- बाँसुरी से बरस रहा था उजास जैसा कुछ
- अंतिम प्रेम जैसा कुछ नहीं था वहाँ
- सिर्फ़ कविता थी।
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