नई पुस्तकें >> देवव्रत देवव्रतत्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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भीष्म पितामह के जीवन पर खण्ड-काव्य
पुरोवाक्
सुधी वृंद,
पितामह भीष्म भारतीय इतिहास के एक जाज्वल्यमान योद्धा थे। वह आठवें वसु थे जो माता गंगा के गर्भ से पैदा हुए थे। उनका जीवन एक श्रापित जीवन था जो उनके शेष दिनों तक उनका पीछा करता रहा। पहले पिता के लिए सांसारिक सुख का त्याग, फिर पाण्डु के मरने के पश्चात उनके परिवार की देखभाल और उनके शिक्षा का दायित्व। भीष्म यह सारे कार्य बिना किसी दुराग्रह और कुण्ठा के करते गये। अन्त में धृतराष्ट्र के पुत्रों और पाण्डु के पुत्रों में धरती के लिए युद्ध छिड़ गया। देवव्रत कौरवों के पक्ष में रहकर युद्ध किये परंतु उनका स्नेह पाण्डवों के लिए भी उतना ही रहा है जितना कौरवों के लिए था। इस युद्ध को महाभारत नाम दिया गया जिसमें भीष्म ने कौरवों के पक्ष में युद्ध किया। दस दिन तक भीषण मार काट मचायी और स्वयं ही अपने मरने का रास्ता भी पाण्डवों को बताया। युद्ध के दसवें दिन अर्जुन ने उन्हें शिखण्डी की आड़ लेकर छल से मारा और पिता द्वारा अपनी इच्छा-मृत्यु के वरदान के कारण युद्ध के अन्त तक बाणों की शैया पर लेट कर युद्ध का परिणाम सुना।
मित्रों ! ऐसा उद्भट वीर, ज्ञानी और शास्त्रज्ञ भारतीय इतिहास में न तो अबतक हुआ और न आगे होगा। उन्होंने जो मिसाल अपने युद्ध जीवन की पूरे जगत को दी वह पूरे विश्व के लिए विशेषकर हर भारतीय के लिए अनुकरणीय है। भगवान कृष्ण के वे परम भक्त थे और उनके विचारों के परम समर्थक भी थे।
- त्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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