नई पुस्तकें >> देवव्रत देवव्रतत्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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भीष्म पितामह के जीवन पर खण्ड-काव्य
प्रथम सर्ग
प्राचीन काल में पृथ्वी पर,
हो जन्म लिए राजा प्रतीप,
वे बहुत बड़े धर्मात्मा थे,
एवं पालक थे लोगों के ॥1॥
वे परम उदार नृपति थे ही,
धर्मज्ञ वेद शास्त्री भी थे,
अत्यन्त शान्त सस्मित मुख थे,
ईश्वर के परम उपासक थे ॥2।।
एक बार तप के वास्ते,
हरिद्वार पहुँचे थे नृप,
एवं गंगा के कूल-निकट,
थे बैठ गए मन ध्यान लगा ॥3।।
बीते कुछ दिन साधना निरत,
था बढ़ा प्रेम हरि पर उनका,
इष्ट - पूर्ति - उद्देश्य हेतु,
वे भूल गए पूरा त्रिभुवन ॥4।।
पर एक दिवस रूपसी एक,
आ बैठ गई उनके उरु पर,
एवं सस्मित होकर बोली,
प्रेमी मन की गांठे खोली॥5।।
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- अनुक्रम