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देवव्रत

त्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :304
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16642
आईएसबीएन :978-1-61301-741-8

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भीष्म पितामह के जीवन पर खण्ड-काव्य



उन वसुओं की यह शर्त रही,
होने पर जन्म फेंक देना-
गंगा की प्रखर धार में जा,
वह ही है पूर्ण किया मैंने॥42॥

यह पुत्र आठवाँ हे नृपेंद्र!
होगा पराक्रमी पृथ्वी पर,
सातों वसुओं से अंश प्राप्त-
है, एक साथ में इस सुत को॥43॥

बोले राजन् 'हे देवि! सुनें,
इतिहास जानकर छटा कष्ट,
यह कृपा पात्र आपका बने,
हो गंगा-पुत्र नाम इसका॥44॥

इस तरह देवव्रत पहुँच गया,
पितु-पास, जननि के आश्रय से,
एवं संरक्षण में उनके,
हर विद्या लगा सीखने वह॥45॥

क्रमशः प्रस्फुटित हो रहा था,
चेहरे पर उसके महा तेज,
बल-बुद्धि उभय थे पनप रहे,
पाकर गुण उसकी काया का॥46॥

थीं उभय भुजाएँ अति वलिष्ठ,
छाती मानो सर्दूल-सदृश,
चेहरे पर तेज अपरिमित था,
विद्या में भी था पारंगत॥47॥

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