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अम्माँ

साजिद हाशमी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16643
आईएसबीएन :978-1-61301-745-6

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माँ की शान में 101 शेर

101 अदबी नगीने

- डा. सागर त्रिपाठी

 

101 अदबी नगीने हमारे रूबरू जलवा अफ़रोज़ होकर मुक़द्दस रूहानी चमक से झिलमिला रहे हैं, हम हैरत, मसर्रत में सराबोर इनके ख़ालिक़ जनाब साजिद हाशमी साहब की अज़्मतों को निहार रहे हैं।

अल्लाह पाक ने ज़मीन को दुनियावी जन्नत का रुतबा अता करते हुए एक अज़ीम और बेपनाह मुक़द्दस शय को माँ का लक़ब देकर समूची क़ायनात को पुरनूर कर दिया है।सोने पर सुहागा ये कि उसके क़दमों तले तबर्रुक के तौर जन्नत भी समेटकर हमारी झोलियों को रहमतों, बरकतों, और बेशुमार इनायात से मालामाल कर दिया है।

माँ पर अदीब ओ सुख़नवर, असातेज़ा, शोअरा हज़रात ने क्या कुछ नहीं लिख डाला है। सबके अपने अक़ीदे, जज़्बात एहतिराम रहे हैं, ताहम, जनाब साजिद हाशमी साहब के 101 अशआर तहे क़ल्ब में समाकर भरपूर रूहानी फ़रहत से आपके ज़ेहन ओ दिल, को मुअत्तर कर जाते हैं। जिन मासूम, हस्सास ज़ावियों से माँ की अज़्मतों, पाकीज़गी, और शफ़क़तों को तरजीह दी गई है, अदब और सुख़नवरी के लिए फ़ख़्र ओ मसर्रत का बाइस है। शेर गोई में अल्फ़ाज़ की तरतीब, अरूज़ की बन्दिश, कसावट, मन्ज़रकशी, तसव्वुफ़ की अहमियत है, लेकिन अक़ीदत, पाकीज़गी मोहब्बत, जॉनिसारी का मुज़ाहिरा इन अशआर को एक बालाक़द रुतबा अता करता हुआ नज़र आता है,,,,

इतनी पाकीज़ा कैफ़ियात से लबरेज़ चन्द अशआर पर, इज़हार ए ख़याल तो लाज़िम ही है, बानगी देखिए,,,

हाँ तेरे पाँव के नीचे ही है जन्नत का मक़ाम।
मैं तेरी गोद को क्या कह कर पुकारूँ अम्माँ।।

कितनी, मासूम तरबियत का पाकीज़ाज़ेहन इज़हार, तमाम कायनात ही अम्माँ की गोद में सिमट आयी है।

माँ तलक जाकर हुए हैं, ख़त्म सारे रास्ते।
मेरा साहिल भी वो ही है, मेरी मंजिल भी वो ही।।

इब्तिदा से इख़्तिताम तक का सफ़र माँ की उँगलियों को थामकर, पूरा करने का सपना, कमालस्त।

धरती ख़ुश थी ख़ुश अम्बर था।
जब तक माँ थी घर भी घर था।।

कितनी मसर्रत, फ़रहत का गोशा था आशियाना, जब तक अम्माँ बाहयात रहीं,,,,

लफ़्ज़ ए अम्माँ लिख दिया था रेत पर।
एहतिरामन  मौज उसको चूमने आती रही।।

ये शेर तो लाफ़ानी एहसास की भरपूर नुमाइन्दगी से रूह तक को मुअत्तर कर गया है।

माता के गुणगान में साजिद भारत माता शामिल है।
मुझको अपनी गोद सुलाया कितनी आली माताजी।।

माँ का आँचल, अपने वतन की सरज़मीन को  ही गोद बनाकर अपने लाल को भारत माँ के हवाले कर देता है।

अम्माँ के हवाले से  तमाम अशआर अपने आप में कमाल का रुतबा रखते हैं,
हर माँ का लाल इन्हें पढ़कर महज़ूज़ होगा। उम्मीद है कि क़लमकार की इस नायाब काविश को नक़्क़ाद, सुख़नवर सब ही सराहेंगे।

अल्लाह करे  ज़ोर ए क़लम और ज़ियादा।
अल्लाह करे ज़ोर ए हुनर और ज़ियादा।।

दुआगो,,,

डा. सागर त्रिपाठी
1/25, न्यू पुष्प विहार,
कोलाबा, मुम्बई - 400005, भारत।
मोबा. - 9920052915, 9820052915
ईमेल : sagartripathi7643@gmail.com 

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