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वैकेन्सी
वैकेन्सी
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2023 |
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 16832
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आईएसबीएन :9781613017685 |
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5 पाठक हैं
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आज के परिवेश का उपन्यास
आत्मकथ्य
'वैकेन्सी' वर्ष 2016 से 2019 के बीच सरकारी नौकरी की तलाश में एक शिक्षित युवा की कहानी है, जो उस दौर को बताती है कि कैसे देश का एक मध्यम वर्ग परिवार, किस तरह देश में उस समय पहले से ही मौजूद परिस्तिथियों और समस्याओं के बीच अपने सपने को पूरा करने के लिये छटपटा रहा था।
देश के बड़े जनमानस के सपनों और आकांक्षाओं को पूरा कराने के उद्देश्य से ही कुछ बड़े सरकारी सुधारवादी कदम भी उठाये जाते हैं। उनसे उपजी समस्याओं और बदलती अर्थव्यवस्था के बीच कैसे उस मध्यमवर्गीय परिवार के सदस्य अपने सपनों को पूरा करने के लिये संघर्ष करते हैं इस उम्मीद से कि शायद आने वाले दिन “अच्छे हों”।
यह कहानी एक परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है, एक ऐसा परिवार जिसमें छ: सदस्य हैं। परिवार का मुखिया उसकी पत्नी, दो बेटे और दो बेटियाँ हैं। परिवार का मुखिया एक मध्यमवर्गीय दुकानदार है। पत्नी गृहस्थ है। बड़ा बेटा जिसकी सरकारी नौकरी ढूंढ़ते-ढूंढ़ते उम्र अब शादी लायक हो चुकी है और अब अपने बाप के साथ ही उनके व्यापार में हाथ बँटाता है। छोटी बेटी भी सयानी हो चुकी है और एक प्राइवेट बैंक की कर्मचारी है। एक दूसरा बेटा जिसने अभी ग्रेजुएशन पूरा ही किया है थोड़ा लापरवाह है परन्तु जिम्मेदार बनने की कोशिश में लगा रहता है, सरकारी नौकरियों के लिये कम्पटीशन की तैयारी कर रहा है और यही हमारी कहानी का मुख्य पात्र भी है। मुखिया की सबसे छोटी बेटी कालेज जाती है और नई उमंगों से भरी हुई है। मुखिया के व्यवसाय की स्थिति “थोड़ा है थोड़े की जरूरत है“ जैसी हमेशा बनी रहती है। आसपास के सामाजिक वातावरण में हर किसी की कोशिश यह है कि दूसरे का “अच्छा हो”। बावजूद इसके संघर्ष जीवनयापन के लिये जारी है। बनाये गये लक्ष्य अभी भी सपना ही हैं और उम्मीदें फिर भी जीवंत हैं, शेष आगे के पृष्ठों पर ...
आपका
सुधीर भाई
मो. : 9450139653
ईमेल : sudhirgupt@rediffmail.com
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