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वैकेन्सी

सुधीर भाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16832
आईएसबीएन :9781613017685

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आज के परिवेश का उपन्यास



' वैकेन्सी '



तुम किसी लायक नहीं हो।
चपरासी ही बनोगे एक दिन।
कोई काम तो ठीक से करना ही नहीं आता।

रोज-रोज बाप के ताने सुन-सुनकर विकास पक गया था। सोचता था घर से भाग जाये पर जायेगा कहाँ?

आज विकास को फिर सुबह-सुबह अपने बाप से लताड़ मिल गई।

इक्कीस वर्ष के विकास ने हाल ही में ग्रेजुएशन के फाइनल इयर का एग्जाम दिया था। पढ़ाई के साथ नौकरी के फार्म भी भरता रहता था। अभी उसकी जिन्दगी की शुरुआत ही है परन्तु घर का माहौल जिन्दगी की रेलम-पेल में ऐसा बन गया है कि विकास के ग्रेजुएशन तक पहुँचते-पहुँचते विकास के बाप मुन्नूबाबू चिड़चिड़े से हो गए। मुन्नूबाबू की इच्छा थी कि विकास जल्द से जल्द पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी भी ढूँढ ले और अपने पैरों पर खड़ा हो जाये ताकि कुछ हद तक उनकी जिम्मेदारी का बोझ कम हो सके।

मुन्नूबाबू का परिवार आम मध्यमवर्गीय परिवारों जैसा ही है। परिवार में पत्नी दो बेटियों और दो बेटों को मिलाकर कुल छह सदस्य हैं। आम परिवारों की तरह यहाँ भी अक्सर पति-पत्नी और बच्चों में आपस में ही नोक-झोंक और खींच-तान मची रहती। परन्तु उससे कई गुना प्यार रहता जो पूरे परिवार को सुख-दुःख में जोड़े रखता, शायद इसी को परिवार का जादू कहते हैं।

विकास, मुन्नूबाबू का दूसरा बेटा, सन्तानों में तीसरे नम्बर पर है। मुन्नूबाबू का बड़ा बेटा अतुल छब्बीस वर्ष का हो गया है, मुन्नूबाबू के साथ ही उनके व्यापार में हाथ बँटाता है और शादी के लायक है। मुन्नूबाबू की चिन्ताओं में ये भी एक कारण शामिल है कि व्यापार इतना बड़ा है नहीं कि दोनों लड़कों को उसमे समायोजित कर लें। बड़े लड़के की शादी के बाद उसकी ग्रहस्थी भी बढ़ेगी और खर्च भी बढ़ेंगे तब परिवार को इस एकमात्र व्यवसाय से चलाना और भी मुश्किल होगा। फिर भगवान जाने आगे बड़े की शादी के बाद क्या उसका कर्म और भाग्य बनता है?

मुन्नूबाबू की कोशिश यही थी कैसे भी येन-केन तरीके से विकास की सरकारी नौकरी लग जाये। पर मुन्नूबाबू ठहरे व्यापारी आदमी। उनकी पुश्तों में भी किसी ने सरकारी नौकरी नहीं की थी। लेकिन बेटों से उनकी तमन्ना यही थी कि सरकारी नौकरी के लिए क्वालीफाई कर जायें और व्यवसाय की उलझनों से बचे रहें। ऐसा नहीं था कि उनका गुस्सा सिर्फ विकास पर ही निकलता था बल्कि घर के बाकी सदस्यों पर भी अब जल्दी ही गुस्सा हो जाते।

अतुल जब 20-21 वर्ष का था तब उसको भी नौकरी ढूँढ़ने के लिये कहते रहते थे। समय गुजरता गया। अतुल ने कई सरकारी नौकरी के फार्म भरे, कई बार एग्जाम देने एक शहर से दूसरे शहर भी गया, एक दो बार इन्टरव्यू तक पहुँचने में कामयाब भी हुआ पर अभी तक कामयाबी नहीं मिल पाई। कभी खुद की कमियाँ रास्ता रोकती रहीं तो कहीं मंजिल तक पहुँच कर आरक्षण ने रास्ता रोक दिया।

अतुल अभी भी व्यापार देखने के साथ-साथ सरकारी नौकरी के लिये फार्म भरता रहता था, परन्तु अब उसमें वो पहले जैसा उत्साह नहीं रहा। क्योंकि इस संघर्ष के बीच ये एक सोच अतुल में पनपने लगी कि अगर नौकरी नहीं भी मिली तो व्यवसाय तो है ही। होते-होते अतुल की उम्र शादी लायक हो गई और व्यापार में भी पकड़ मजबूत होती गई। मुन्नूबाबू को इस बात से संतोष तो था कि चलो उनके बाद गद्दी को सम्भालने वाला कोई तो है।

अतुल और विकास दो बेटों के साथ ही उनकी दो बेटियाँ भी हैं। बड़ी बेटी क्रान्ति जो विकास से सिर्फ एक साल ही बड़ी है और अपना ग्रेजुएशन पूरा कर चुकी है। वह एक प्राइवेट बैंक में फाइनेंसियल एडवाइजर है और घरेलू कार्यों में माँ निर्मलादेवी का भी हाथ बँटाती है। छोटी बेटी निक्की जो अभी उन्नीस वर्ष की है, कालेज जाती है और नई उमंगों से भरी हुई है। कुल मिलाकर छह लोगों का एक मध्यमवर्गीय परिवार है।

आज विकास को एक नौकरी के इन्टरव्यू के लिए जाना था। नौकरी प्राइवेट थी। प्राइवेट नौकरी का भी ये उसका पहला इन्टरव्यू था पर सुबह-सुबह ही लताड़ मिलने से उसका मूड कुछ उखड़ सा गया था। मन ही मन वो भनभानते हुए तैयार होकर नाश्ता करके इन्टरव्यू के लिये निकल जाता है। कानपुर जैसे शहर में बड़ी मल्टीनेशनल इण्डस्ट्री का अभाव है। यहाँ छोटी यूनिटें ही लगी हैं तो नौकरी का स्तर भी वैसा ही रहता है, लेकिन विकास के लिये ये एक शुरुआत थी। कम्पनी का ऑफिस शहर के पाश एरिया में था जो कि एक प्लेसमेन्ट कंसल्टेन्सी थी और इण्डस्ट्री को मैन पावर तथा बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराती थी। विकास ऑफिस में घुसते ही विस्मृत हो जाता है। क्या शानदार ऑफिस था। ऑफिस वेल डेकोरेटेड था।

ऑफिस में काफी संख्या में नवयुवक और नवयुवतियाँ इन्टरव्यू के लिये आये हुए थे। उन सभी को एक बड़े से शानदार हाल में बिठा दिया जाता है। कुछ नौकरी के लिये बेहद जरूरतमन्द थे जो इन्टरव्यू के लिये तैयारी से आये थे। कुछ विकास जैसे फ्रेशर कण्डीडेट थे जो कंसल्टेन्सी की काल पर बिना किसी तैयारी के ऐसे ही चले आये थे। युवाओं में आपस में बातचीत हो रही थी। विकास ढूँढ़ रहा था कि भीड़ में कोई अपनी जान पहचान का भी है क्या? तभी उसके कन्धे पर किसी ने पीछे से हाथ रखा। विकास ने गर्दन घुमाकर देखा और उसके मुँह से ख़ुशी से निकल पड़ा- ...सुरेश।

सुरेश - और विकास क्या हाल चाल है? यहाँ कैसे?

सुरेश और विकास दोनों ही अच्छे मित्र हैं। सुरेश जाति से दलित है परन्तु उसका रहन-सहन किसी कुलीन वर्ग से कम नहीं है। उसके पिता सरकारी कर्मचारी हैं। सुरेश और विकास आचार विचार और मेधा के मामले में भी बराबर हैं जिससे उन दोनों की कालेज में एक दूसरे से खूब पटरी बैठती है।

विकास : कुछ नहीं यार, बस इन्टरव्यू के लिये बुलाया गया था, और तुम यहाँ कैसे?

सुरेश : यार मैं पहले इन्टरव्यू दे चुका हूँ। अभी कंसल्टेन्सी ने वेटिंग में डाल रखा है।

विकास : अच्छा, किस नौकरी के लिये तुम्हारा इन्टरव्यू लिया था।

सुरेश : कंसल्टेन्सी ने अभी कम्पनी का नाम तो नहीं बताया है। बस हमारे रिज्यूम के आधार पर इन्टरव्यू लिया है और कहा है अगर रिज्यूम, नियोक्ता कम्पनी में शार्ट लिस्टेड होता है तो फिर मुख्य कम्पनी में इन्टरव्यू के लिये बुलाया जायेगा। और तू बता, आज शाम को क्या कर रहा है?

विकास : यार, पहले यहाँ से फ्री होऊँ फिर देखते हैं शाम का प्रोग्राम। इतने लोग हैं कि लग रहा है शाम के पाँच तो बज ही जायेंगे इन्टरव्यू देते-देते।

सुरेश : अच्छा विकास मैं चलता हूँ। जैसा भी हो फोन से बताना।

सुरेश के जाने के बाद, विकास ऑफिस के पियून के पास गया और उससे पूछा- कितने लोग इन्टरव्यू दे चुके हैं? और कितने देने बाकी हैं? उसका नम्बर कितने लोगों के बाद है?

विकास हाल के अन्दर जा रहा था तो एक आदमी, जो विकास को काफी देर से घूर रहा था, उसने विकास को इशारे से अपने पास बुलाया। विकास उसके पास गया और पूछा : ‘जी मुझसे कुछ?’

आदमी : नौकरी चाहिये?

विकास : हाँ, क्यों नहीं।

आदमी : जुगाड़ लगेगा।

विकास : अब क्या प्राइवेट नौकरी के लिये भी जुगाड़ लगाना पड़ेगा वो भी कंसल्टेन्सी में।

आदमी : नहीं सरकारी, ये मेरा नम्बर है। रेलवे, आर्मी तथा अन्य कई सरकारी विभागों में मेरी अच्छी पैठ है। कोई दिक्कत आये तो बतायें।

विकास नम्बर रख लेता है। वैसे भी नम्बर रखने में क्या बुराई है। एक तो वो जनरल कैटेगिरी में और बाप भी उसके आज की दुनियाँ के कायदे कानून से अलग थे। कुछ बाहरी जुगाड़ और सम्पर्क तो बनाये ही रखना पड़ेगा।

तीन बजे तक विकास का इन्टरव्यू हो जाता है। बिलकुल साधारण इन्टरव्यू था। विकास को भी कंसल्टेन्सी ने वही उत्तर दिया था जो सुरेश को दिया था।

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