नई पुस्तकें >> वैकेन्सी वैकेन्सीसुधीर भाई
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आज के परिवेश का उपन्यास
"विकास उठो, सुबह के दस बज रहे हैं। इस लड़के को तो किसी चीज की फिक्र ही नहीं है। चल उठ तेरे बाबू जी अभी तुझे सोता हुआ देख लेंगे तो और डाँट पड़ेगी।" – माँ निर्मला देवी ने विकास को झिड़कते हुये कहा।
विकास : क्या माँ.. सोने तो दो.. इतनी अच्छी नींद आ रही है।
निर्मलादेवी : उठ, कुछ तो शर्म कर, कितनी सुबह हो गई है। आधा दिन निकल आया है।
विकास : क्या माँ.. रोज-रोज वही, अब आज तो सण्डे है, सोने दो।
और विकास फिर से चादर में मुँह घुसेड़ लेता है। तभी विकास के मोबाइल की घन्टी बजती है।
निर्मलादेवी विकास को फ़ोन देते हुये : ले तेरे सुरेश का फोन है।
विकास : हाँ सुरेश बता, इतनी सुबह क्यों फोन किया?
सुरेश : भाई सुबह के ग्यारह बजने को है, तू भूल गया कि आज 12 बजे एक कैरियर काउंसलिंग के प्रोग्राम में चलना है।
विकास चौंकते हुए : अरे हाँ यार, मैं अभी तैयार होकर तेरे पास पहुँचता हूँ।
विकास और सुरेश तैयार होकर शहर के एक नामी भवन में पहुँचते हैं। जहाँ आज एक बड़े मैनेजमेन्ट गुरु युवाओं को सही कैरियर कैसे चुनें? के बारे में बताने वाले थे। एक बड़ा सा हाल युवक और युवतियों से भरा हुआ था, जो अपने भविष्य के सपनों को स्पष्ट करने के लिये आये हुये थे।
कार्यक्रम चालू होता है। मैनेजमेन्ट गुरु का मंच पर अवतरण होता है।
मैनजमेन्ट गुरु : हेलो एवरीबाडी, आप सबका इस प्रोग्राम में स्वागत है। आज आप, अलग-अलग कालेजों से अलग-अलग विषयों से स्नातक होने वाले, यहाँ अपने कैरियर के मार्गदर्शन के लिये आये हैं। एक बात मैं शुरुआत में ही स्पष्ट कर दूँ और इसे आप ठीक से समझ लें कि "किसी भी कार्य का कोई भविष्य नहीं, भविष्य उस व्यक्ति का है जो उस कार्य को करता है।" ये सोच का एक बड़ा अन्तर है। आप इसका मतलब समझे?
नीचे बैठे अधिकतर श्रोताओं का उत्तर 'नहीं' में आता है।
मैनजमेन्ट गुरु : मतलब ये है कि तुम किसी भी कार्य को करो, उस कार्य में तुम्हारा भविष्य तभी तक है जब तक तुम उसे एक सकारात्मक ऊर्जा के साथ करते हो। आपकी सकारात्मक ऊर्जा खत्म, आपका भविष्य खत्म। परन्तु कार्य, कार्य खत्म नहीं होता। जिस कार्य को आज तुम अपने सन्देह में सफल नहीं कर पाये, कल उसी कार्य से कोई और तुमसे कहीं ज्यादा ऊर्जा और सकारात्मकता के साथ अपना भविष्य बना रहा होगा। कार्य वही है, परन्तु करने वाले के नजरिये से ही उस व्यक्ति का भविष्य तय होता है न कि कार्य का। इसलिये जब भी आप किसी भी कार्य या कैरियर को चुनें तो अपने ऐटिट्यूड को उस कार्य के प्रति हमेशा सकारात्मक रखें। "पाजिटिव ऐटिट्यूड खत्म - कैरियर खत्म"। ध्यान रखें या तो कैरियर ऐसा चुनें जो आपके ऐटिट्यूड से मेल खाये या फिर अपने ऐटिट्यूड को ऐसा बना लें कि वो कैरियर के अनुरूप हो। सफलता तभी है।"
हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठता है।
विकास को सुनने में अच्छा तो लग रहा था। परन्तु वो यहाँ इस उद्देश्य से आया था कि शायद सेमिनार में सरकारी नौकरी या विदेश में नौकरी प्राप्त करने के बारे में कुछ मार्गदर्शन मिले। सेमिनार लम्बा चलता है। हाल के बाहर गवर्नमेन्ट जाब के कम्पटीशन की तैयारी कराने वाले तमाम कोचिंग सेन्टर वालों के काउन्टर लगे हुये थे। कोई रेलवे की तैयारी का था, तो कोई बैंक के लिये, कोई आईएएस/पीसीएस तो कोई आर्मी के एग्जाम की तैयारी के लिये था। सेमिनार खत्म होने के बाद इन काउन्टरों पर भीड़ और भी बढ़ गई थी। कोचिंग वाले अपने प्रचार के लिये छात्रों को ब्रोशर बाँट रहे थे। युवक-युवती भी काउन्टरों पर जाकर कैरियर और उससे सम्बन्धित कोचिंग की जानकारी ले रहे थे। सेमिनार के बाद विकास और सुरेश भी स्टालों पर पहुँचते हैं।
सुरेश विकास से कहता है - "यार विकास मेरा तो अभी भी गवर्नमेन्ट जाब की ही तैयारी पर फ़ोकस है। हो सकता है दुबई जाना कैंसिल कर दूँ। इस बार बैंक के फार्म भी भरे हैं और सिविल सर्विसेज़ का भी भर दिया है परन्तु तैयारी कुछ भी नहीं है। बस जो अभी फाइनल तक पढ़ा है उसी के भरोसे कम्पटीशन देने जा रहा हूँ।"
विकास : फिर तो भाई तू यहाँ भी कोई कोचिंग देख ही ले टाइम पास मत कर।
सुरेश : हाँ यार, तुमने किसी नौकरी के लिये भरा?
विकास : भाई भरा तो है। एक दो बैंकों के लिये और एक दो सरकारी विभागों के लिये, परन्तु अपना भी कुछ ऐसा ही है।
सुरेश : तो फिर क्यों न दोनों ही कोचिंग ज्वाइन कर लेते हैं।
विकास : देखते हैं।
कई कोचिंग संचालकों ने सरकारी नौकरियों की तैयारी के लिये छः माह से एक साल तक के कोचिंग पैकेज रखे थे, जिनकी फीस इतनी ज्यादा थी कि मध्यम आय वर्ग का परिवार बिना अपनी सुविधाओं में कटौती किये बिना भर ही न सके। और सामान्य श्रेणी के गरीब छात्र के लिये तो तैयारी करना एक सपना सा था। परन्तु यही खेला है। आम आदमी पहले अपने बच्चो को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाने के लिये अपनी क्षमता से ज्यादा जीवनपर्यन्त लूटा जाता है और उसके बाद नौकरी पाने के नाम पर वह लूटा जा रहा होता है।
विकास और सुरेश सेमिनार खत्म होनें के बाद अपने घर लौट ही रहे होते हैं कि एक चौराहे पर भीषण जाम लगा हुआ था। कोई धरना-प्रदर्शन हो रहा था। हमारी माँगें पूरी करो!!, हमारी माँगें पूरी करो!!!, के नारों के शोर से हो हल्ला मचा हुआ था। लोगों के वाहन जहाँ के तहाँ खड़े हो गये थे। हम भी आरक्षण ले के रहेंगे!!, ले के रहेंगे!, ले के रहेंगे!!!, सवर्णों को भी मिले आरक्षण का अधिकार!!, आरक्षण का अधिकार!!! आरक्षण का अधिकार!!!, तभी किसी ने भीड़ में से एक पत्थर सरकारी बस के शीशे पर दे मारा।
छनाक की आवाज के साथ एक सेकेण्ड का सन्नाटा होता है। और उसके साथ ही पुलिस बल दे लाठियाँ दे लाठियाँ प्रदर्शनकारियों पर टूट पड़ती है। चौराहे पर अफरा-तफ़री मच जाती है। पुलिस प्रदर्शनकारियों पर कम और वाहनों पर लाठियाँ ज्यादा बरसा रही थी। उनकी कार्यशैली स्थिति को और ज्यादा अराजक बनाने पर तुली हुई थी। लाठियों की मार के डर से जिसको जहाँ रास्ता मिलता है, वहाँ बचने की कोशिश करता है। तभी किसी ने जलते हुये टायर सड़क पर ढकेल दिये, बिना ये परवाह किये हुये कि स्कूल से लौटने वाले छोटे-छोटे बच्चे भी रिक्शों में बैठे हुये उस जाम में फँसे हुए हैं। विकास और सुरेश ये देख कर भौचक्के रह जाते हैं।
विकास : यार ये काहे का इतना हंगामा हो रहा है?
सुरेश (हँसते हुए) : तुम्हारी जाति-बिरादरी वाले आरक्षण के लिये हल्ला मचा रहे हैं।
विकास (गुस्से में) : अबे तुम आरक्षण की मलाई खा रहे हो तो हमें क्यों न मिले? आखिर हमारी तुम्हारी आर्थिक स्थिति और जीवन शैली में फर्क ही क्या है?
सुरेश : अरे, नाराज क्यों होता है दोस्त। (सुरेश ने हँसते हुये बात टालने की कोशिश की)
अगले दिन विकास सुबह का अख़बार पढ़ रहा होता है। शहर में कल हुए प्रदर्शन से अख़बार का फ्रंट पेज भरा हुआ था। प्रदर्शनकारी रात होते-होते और उग्र हो गये थे। कई बसें जला दी गई थीं। सिनेमाघरों में तोड़-फोड़ की गई थी। निजी वाहनों को भी तोड़ा गया था। आरक्षण माँगने वाले आन्दोलनकारी अपने को हर तर्क से जायज ठहराने में लगे हुए थे। परन्तु कुछ आन्दोलनकारियों से जब पत्रकारों ने सम्पत्ति के नुकसान के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि रात को कुछ लोग पुलिस की वर्दी में तोड़-फोड़ कर रहे थे। उनके साथ कुछ लोग सिविल ड्रेस में भी थे। ये प्रदर्शनकारियों का किया धरा नहीं है। पुलिस प्रशासन अपने को पाक साफ बताकर आन्दोलनकारियों पर इल्जाम लगा रहा था। मीडिया इस बात से असमंजस में था कि यह पुलिस ने किया या पुलिस की वर्दी में गुण्डों ने किया या आन्दोलनकारियों ने किया। शहर की खबर राष्ट्रीय चर्चा का विषय हो गई थी। एक नये आरक्षण के अगुवा नेता को मीडिया में चर्चा से जन्म मिल रहा था।
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