जीवनी/आत्मकथा >> कल्पना चावला सितारों से आगे कल्पना चावला सितारों से आगेअनिल पद्मनाभन
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प्रस्तुत पुस्तक में कल्पना चावला के जीवन पर प्रकाश डाला गया है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सभी आयु वर्ग विशेषकर युवाओं एवं जीवन में कुछ विशेष कर दिखाने में
प्रयत्नरत मेधाओं के लिए असमीम प्रेरणास्पद इस जीवनी में प्रसिद्ध पत्रकार
श्री अनिल पदमनाभन ने करनाल और नासा के उसके मित्रों तथा सहयोगियों से
बातचीत कर एक ऐसी महिला का सजीव चित्रण पेश किया है,जो हम सबके लिए
मार्गदर्शक-प्रेरणादायी उदाहरण है कि सतत पुरुषार्थ करें और ध्येयनिष्ठ
रहें तो अपने-अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं।
अनिल पद्मनाभन
कर्मवीर कभी विघ्न-बाधाओं से विचलित नहीं होते। ध्येयनिष्ठ, कर्तव्य-परायण व्यक्ति के लिए कुछ भी असंभव नहीं। भाग्य के आश्रित रहने वाले कभी कुछ नया नहीं कर सकते। इतिहास साक्षी है-संसार में जिन्होंने संकटों को पार कर कुछ नया कर दिखाया, यश और सम्मान के चरमोत्कर्ष को प्राप्त किया। ऐसा ही
इतिहास रचा हरियाणा के एक छोटे से नगर करनाल के मध्य वर्गीय परिवार में
जनमी कल्पना चावला ने।
बाल्यावस्था से ही वह सितारों के सपने देखा करती थी। देश-विभाजन की त्रासदी के बाद विस्थापित परिवार की जर्जर आर्थिक स्थिति के बावजूद अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति, तीक्ष्ण बुद्धिमत्ता, अटूट आत्मविश्वास तथा सतत कठोर परिश्रम जैसे गुणों के कारण ही वह अंतरिक्ष में जानेवाली प्रथम भारतीय महिला बनी। अधिक उल्लेखनीय तो यह है उसे दो-दो बार अंतरिक्ष यात्रा के लिए चुना गया।
सभी आयु वर्ग, विशेषकर युवाओं एवं जीवन में कुछ विशेष कर दिखाने में प्रयत्नरत मेधाओं के लिए असीम प्रेरणास्पद इस जीवनी में प्रसिद्ध पत्रकार श्री अनिल पद्मनाभन ने करनाल और नासा के उसके मित्रों तथा सहयोगियों से बातचीत कर एक ऐसी महिला का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है, जो हम सबके लिए मार्गदर्शक-प्रेरणादायी उदाहरण है कि सतत पुरूषार्थ करें और ध्येयनिष्ठ रहें तो अपने-अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं।
बाल्यावस्था से ही वह सितारों के सपने देखा करती थी। देश-विभाजन की त्रासदी के बाद विस्थापित परिवार की जर्जर आर्थिक स्थिति के बावजूद अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति, तीक्ष्ण बुद्धिमत्ता, अटूट आत्मविश्वास तथा सतत कठोर परिश्रम जैसे गुणों के कारण ही वह अंतरिक्ष में जानेवाली प्रथम भारतीय महिला बनी। अधिक उल्लेखनीय तो यह है उसे दो-दो बार अंतरिक्ष यात्रा के लिए चुना गया।
सभी आयु वर्ग, विशेषकर युवाओं एवं जीवन में कुछ विशेष कर दिखाने में प्रयत्नरत मेधाओं के लिए असीम प्रेरणास्पद इस जीवनी में प्रसिद्ध पत्रकार श्री अनिल पद्मनाभन ने करनाल और नासा के उसके मित्रों तथा सहयोगियों से बातचीत कर एक ऐसी महिला का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है, जो हम सबके लिए मार्गदर्शक-प्रेरणादायी उदाहरण है कि सतत पुरूषार्थ करें और ध्येयनिष्ठ रहें तो अपने-अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं।
आभार
इस पुस्तक को लिखना एक तरह से मेरे उस कार्य का विस्तार मात्र है, जिसे
कोलंबिया अंतरिक्ष यान की दुर्घटना के तुरंन्त बाद ‘इंडिया
टुडे’ के लिए किया। मैं ‘इंडिया टुडे’ का
आभारी हूँ, जिसने मुझे इस कार्य को करने का अवसर प्रदान किया। इसके लिए
मैं पत्रिका के प्रमुख संपादक अरूण पुरी, संपादक प्रभु चावला तथा अन्य
सहकर्मियों को धन्यवाद देता हूँ।
कल्पना चावला की प्रेरणादायक कहानी को लिखने में योगदान करने के लिए व्यक्ति सक्रिय रूप से सामने आए, जिन्होंने समय, विश्वास एवं धैर्य के साथ सहयोग दिया। मैं ह्यूस्टन व्यवसायी फोटोग्राफर कृष्ण गिरि के प्रति कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय दिया और कहानी को पूरा करने में भरपूर सहायता दी। इसी तरह की सहायता ह्यूस्टन निवासी भारतीय अमेरिकन लोगों तथा भारतीय वाणिज्य दूत स्कंद तयाल से भी प्राप्त हुई। मैं लक्ष्मी पुचा, प्रियंक जायसवाल तथा विजय पैलोड का भी आभारी हूँ। इसी प्रकार की महत्त्वपूर्ण सहायता कल्पना के करनालवाले सहपाठी व प्रिय मित्र अतुल्य सरीन से प्राप्त हुई। मैं कृतज्ञ हूँ खुशीराम चुग, रविंदर मिराखुड़ ऋच अकूफ, मिरियम मसलानिक तथा प्रोफेसर इराज कलखोरण का। मैं काफी हद तक वेब और मीडिया द्वारा कल्पना पर की गई कवरेज पर विश्वास करता हूँ। इसमें नासा द्वारा सार्वजनिक की गई सूचनाएँ, कोलोरेडो इंजीनियरिंग मैगजीन, इयान गिलन के अपने अनेक वेब साइट, पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज आदि मुख्य हैं।
इस कार्य में मुझे अपने मित्रों से बड़ा प्रोत्साहन मिला, जो मेरे साथ छह सप्ताह की इस अवधि में तथा बड़ी ही तनावपूर्ण स्थिति में दृढ़तापूर्वक साथ देते रहे। मेरी पुत्री पायल, जिसने कभी अंतरिक्ष यात्री बनने की ठानी थी, सदैव नए विचारों तथा सहयोगात्मक सुझावों के साथ उपस्थित रही।
मैं सुमोद, सीमा, अनु अर्जुन, मुरली भाई व अनीता के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ, जो प्रसन्नतापूर्वक इस पुस्तक के प्रति मेरे लगाव व उत्साह को बढ़ाते रहे। मैं दो दिवंगत आत्माओं-अपने पिताजी एवं भतीजे-को भी नहीं भूल सकता, जो परिवार के अन्य लोगों के साथ मेरे इस प्रथम प्रयास से अत्यंत प्रसन्न होते। अंत में मैं सयोनी बसु और शांतनु रायचौधुरी को धन्यवाद देना चाहता हूँ, जिन्होंने न केवल इस पुस्तक को आकार देने में सहयोग दिया अपितु इस पूरे प्रयास में अद्भुतधैर्य का प्रदर्शन भी किया।
कल्पना चावला की प्रेरणादायक कहानी को लिखने में योगदान करने के लिए व्यक्ति सक्रिय रूप से सामने आए, जिन्होंने समय, विश्वास एवं धैर्य के साथ सहयोग दिया। मैं ह्यूस्टन व्यवसायी फोटोग्राफर कृष्ण गिरि के प्रति कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय दिया और कहानी को पूरा करने में भरपूर सहायता दी। इसी तरह की सहायता ह्यूस्टन निवासी भारतीय अमेरिकन लोगों तथा भारतीय वाणिज्य दूत स्कंद तयाल से भी प्राप्त हुई। मैं लक्ष्मी पुचा, प्रियंक जायसवाल तथा विजय पैलोड का भी आभारी हूँ। इसी प्रकार की महत्त्वपूर्ण सहायता कल्पना के करनालवाले सहपाठी व प्रिय मित्र अतुल्य सरीन से प्राप्त हुई। मैं कृतज्ञ हूँ खुशीराम चुग, रविंदर मिराखुड़ ऋच अकूफ, मिरियम मसलानिक तथा प्रोफेसर इराज कलखोरण का। मैं काफी हद तक वेब और मीडिया द्वारा कल्पना पर की गई कवरेज पर विश्वास करता हूँ। इसमें नासा द्वारा सार्वजनिक की गई सूचनाएँ, कोलोरेडो इंजीनियरिंग मैगजीन, इयान गिलन के अपने अनेक वेब साइट, पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज आदि मुख्य हैं।
इस कार्य में मुझे अपने मित्रों से बड़ा प्रोत्साहन मिला, जो मेरे साथ छह सप्ताह की इस अवधि में तथा बड़ी ही तनावपूर्ण स्थिति में दृढ़तापूर्वक साथ देते रहे। मेरी पुत्री पायल, जिसने कभी अंतरिक्ष यात्री बनने की ठानी थी, सदैव नए विचारों तथा सहयोगात्मक सुझावों के साथ उपस्थित रही।
मैं सुमोद, सीमा, अनु अर्जुन, मुरली भाई व अनीता के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ, जो प्रसन्नतापूर्वक इस पुस्तक के प्रति मेरे लगाव व उत्साह को बढ़ाते रहे। मैं दो दिवंगत आत्माओं-अपने पिताजी एवं भतीजे-को भी नहीं भूल सकता, जो परिवार के अन्य लोगों के साथ मेरे इस प्रथम प्रयास से अत्यंत प्रसन्न होते। अंत में मैं सयोनी बसु और शांतनु रायचौधुरी को धन्यवाद देना चाहता हूँ, जिन्होंने न केवल इस पुस्तक को आकार देने में सहयोग दिया अपितु इस पूरे प्रयास में अद्भुतधैर्य का प्रदर्शन भी किया।
अनिल पद्मनाभन
प्राक्कथन
कोलंबिया अंतरिक्ष यान में प्रातः के 5.30 बजे का समय है। यान धरती की ओर
वापस आ रहा है। चालक दल के सदस्य क्रम से एक के बाद एक यान के पृथ्वी पर
उतरने की सामान्य प्रक्रिया को अंतिम रूप से जाँच रहे हैं। करीब 45 मिनट
बाद यान को जमीन पर उतरना है। यह यान अंतरिक्ष की अपनी अट्ठाईसवीं यात्रा
पूरी करने के बाद धरती पर वापस आ रहा है। कुछ ही मिनटों में यह पृथ्वी के
वायुमंडल में प्रवेश कर फ्लोरिडा के केप केनेवरल अंतरिक्ष केन्द्र पर
उतरेगा। उसी क्षण यह अंतरिक्ष यान ताप के चरम बिंन्दु 3,000 डिग्री
सेंटीग्रेट पर पहुँचेगा, जो काफी जोखिम भरी स्थित होती है। तभी बिना सोचे
ही अभियान विशेषज्ञ लॉरेल बी. क्लार्क ने वीडियो कैमरा उठाया और उड़ान डेक
के आर-पार चालू कर दिया। अभियान विशेषज्ञ कल्पना चावला तथा अंतरिक्ष यान
के चालक विलियम सी. मैककूल नारंगी रंग की अंतरिक्ष पोशाक पहने अपने-अपने
उपकणों को दिखाते हुए कैमरे की ओर इंगित कर रहे थे। तभी अभियान के प्रमुख
कर्नल रिक हस्बेंड ने दुर्भाग्यवश अपने पाँव से नियंत्रण उपकरण पर ठोकर
मारी, जिससे शटल यान के असंख्य नियंत्रण पैनलों में से एक टूट गया। कर्नल
हस्बेंड को इसका तब तक कोई भान नहीं हुआ जब तक ह्यूस्टन के कमान ने उसे
खतरे के प्रति सचेत नहीं किया। उसके ‘शूट’ जवाब पर
समस्त अमेरिका में चारों ओर आशंका से देखा गया।
इस समय बाहर अंधेरा है। यान चालकों को शटल यान के बाहर के दृश्य ठीक से दिखाई नहीं दे रहे हैं। यही वह समय था जब कोलंबिया को पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करना था। उड़ान डेक पर लगे हुए परातकनीक यंत्रों पर प्रकाश की किरणें फैलीं, तभी कोलंबिया ने पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया। बाहर हल्का गुलाबी रंग बिखरा था। अन्दर क्लार्क शटल की छत पर एक खिड़की से बाहर का दृश्य चित्रित करने के लिए वीडियो कैमरे को घुमाया। कर्नल हस्बेंड ने परिहास में कहा, ‘देखो, जैसे कोई वात्या भट्टी हो, ऐसे में बाहर जाना ठीक नहीं।’
इस बीच उड़ान डेक पर फैले केबल पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के कारण नीचे की ओर झुकने लगे थे। गंतव्य केप केनेवरल अंतरिक्ष केन्द्र केवल आधा घंटे की दूरी पर था, जहाँ कोलंबिया को उतरना था। प्रातः के 8.30 बजे थे। उधर चावला दल के परिवार जन शटल यान की प्रतीक्षा में आतुरता से इधर-उधर टहल रहे थे। गत रात्रि को फ्लोरिडा पहुँचे वे सभी लोग सुबह सात बजे से ही जगे हुए थे। उस भीड़ में ही कहीं कल्पना का पति जीन-पीयरे हैरिसन भी था। कल्पना की भतीजियाँ इस अवसर के लिए सज-सँवर कर आई थीं। कल्पना लगभग तीन सप्ताह पूर्व अपने दूसरे अभियान पर निकली थी और वह पति से मिलने के लिए उसकी प्रतीक्षा नहीं कर सकी थी। ह्यूस्टल में उसके घर पर केवल माँ ही रह गई थी। परिवार के शेष सभी सदस्य फ्लोरिडा स्थित अंतरिक्ष केंन्द्र पर खड़े उत्सुकता से शटल यान की प्रतीक्षा कर रहे थे। वे इस ऐतिहासिक क्षण पर अपनी मोंटू (कल्पना) के साथ खुशी मनाने के लिए भारत से वहाँ आए थे।
अन्य स्थानों पर अनेक लोग अपने-अपने टेलीविजन के सामने बैठे हुए कोलंबिया यान को एक सफेद लकीर के रूप में स्क्रीन पर देख रहे थे। यान के धरती पर उतरने का दृश्य दिखाया जा रहा था। ह्यूस्टन स्थित केनेडी अंतरिक्ष केन्द्र के नियंत्रण कक्ष में नासा के वैज्ञानिक शटल यान के उतरने की सामान्य प्रक्रिया पूरी कर रहे थे। आज आसमान साफ है। मेक्सिको की खाड़ी से किसी प्रकार के आँधी-तूफान के उठने की कोई सूचना नहीं है सभी कुछ ठीक है। ध्वनि की गति से बीस गुना तीव्र गति से कोलंबिया यान अभी भी लगभग पाँच लाख फीट की ऊँचाई पर आकाश में उड़ रहा था। लेकिन अब प्रतीक्षा समाप्त हुई और अंतरिक्ष यान ने पृथ्वी के वायुमंडल को चीरते हुए नीचे उतरना आरंभ किया।
विश्व के दूसरे छोर स्थित उत्तर भारत में हरियाणा के शहर करनाल में उत्सव जैसा माहौल है। वहाँ शीतकाल के अंतिम दिनों की साँझ की वेला है। टैगोर बाल निकेतन के लगभग तीन सौ छात्र अपने विद्यालय की प्रतिभावान् पूर्व छात्रा कल्पना चावला के अंतरिक्ष यात्रा से सकुशल वापस आने को उत्सव के रूप में मनाने के लिए एकत्र हुए हैं। निश्चय ही पूरे करनाल शहर के लिए यह घटना एक समारोह जैसी है।
नक्षत्रों पर नजर रखनेवाले संसार के लगभग सभी लोग कोलंबिया शटल यान की अंतरिक्ष यात्रा के अंतिम कुछ घंटों के मार्ग पर अपनी दृष्टि गड़ाए हुए हैं। वे स्क्रीन पर सफेद लकीर के उभरने की प्रतीक्षा में हैं। कैलिफोर्निया में कुछ सौभाग्यशाली लोगों ने शटल को लगभग 60 कि. मी. की ऊँचाई पर देखा; किंतु कुछ लोगों को लगा जैसे कोलंबिया के टुकड़े गिर रहे हों। सहसा कुछ मिनटों के बाद टेक्सास के ऊपर एक जोरदार धमाका सुनाई दिया, जिससे खिड़कियाँ तक चटकने लगीं। केप केनेवरल में प्रातः के 9 बजे हैं। ह्यूस्टन कमान केन्द्र में घबराहट फैल गई। कमान केन्द्र द्वारा दिए गए संदेश पर कर्नल हस्बेंड का उत्तर बीच में ही कट गया और कोलंबिया से संपर्क भी टूट गया। भूमि पर उतरने से दो मिनट पहले जे पी (जीन-पीयरे) को शटल के अपेक्षित धमाके सुनाई नहीं दिए।
जैसे-जैसे समय गुजरता गया, खामोशी गहराने लगी थी। पृथ्वी पर जमीनी रख-रखाव दल को लगा कि कुछ गड़बड़ हो गई है। टेलीविजन पर सफेद लकीर अनेक सफेद धब्बों में परिवर्तित होने लगी थी। संसार भर में अंतरिक्ष यात्रा की सफलता को लेकर कई प्रश्न उठने लगे थे। फोन-पर-फोन बजने लगे थे। यान के उतरने के स्थान पर अधिकारीगण अपने-अपने सेलफोन कान में लगाए दर्शक दीर्घा को ताकते बेचैन हो रहे थे। टेलीविजन कैमरा झूठ नहीं बोलता। कोलंबिया शटल यान ध्वस्त हो चुका था और उसके टुकड़े अमेरिका के लुसियाना, टेक्सास व अर्कन्सास आदि शहरों के ऊपर गिरकर बिखर रहे थे।
भरी दुपहरी में भी वातावरण में अंधकार-सा छा गया। केनेडी अंतरिक्ष केन्द्र के सभी कर्मचारी हतप्रद हो गए। यान चालक दल के परिवारजनों को केनेवरल में एकत्रित किया जाने लगा। शटल का आपत्काल घोषित किया गया। ह्यूस्टन में कल्पना के परिवारजनों को टेवीविजन स्क्रीन पर उपस्थित दृश्य पर विश्वास नहीं हो रहा था। क्या मोंटू घर वापस नहीं आएगी ? उसके ग्रहनगर में बच्चों का समारोह खत्म हो गया। उसके बदले टैगोर बाल निकेतन के छात्रों सहित अन्य सारे जन अपने प्रकाशमान सितारे के शोक में एक अरब देशवासियों के साथ सम्मिलित हो गए। कल्पना के साथ ही अंतरिक्ष यात्रा के अन्य छह बहादुरों का भी आकस्मिक अंत हो गया।
इकतालिस वर्षीया कल्पना चावला अपने पीछे अनेक अनुत्तरित प्रश्न छोड़ गई है। करनाल की विलक्षण बेटी सफलतापूर्वक ऐसी कठिन यात्रा कर सकी, जो न केवल महाद्वीपों को लाँघनेवाली थी अपितु भिन्न संस्कृतियों से जुड़ी थी और अंततः स्वयं अंतरिक्ष में खो गई। कल्पना ने अन्य लोगों से अलग संपन्न परिवार के वैभवपूर्ण जीवन से बाहर निकलकर विश्व की खोज करनी चाही और पर प्रतिकूल परिस्थिति को चुनौती की तरह स्वीकार किया। अंधविश्वासों और रूढ़ियों से ऊपर उठकर छोटे कद की वह दुबली-पतली लड़की अपनी मधुर मुसकान एवं दृढ़ संकल्प के साथ अपने सपनों को साकार करती चली गई। कल्पना की यह कहानी करनाल से आरंभ हुई और अनेक अविश्वसनीय घटनाओं सहित उसके जीवन के साथ जुड़ी हुई है। करनाल, जहाँ वह बड़ी हुई करनाल नगर नई दिल्ली वह चंडीगढ़ के मध्य जी. टी. रोड पर यमुना के पश्चिमी किनारे पर स्थित है इस नगर के साथ की ऐतिहासिक तथ्य जुड़े हुए हैं, जिनमें से कुछ महाभारत से संबद्ध हैं। किंवदंती के अनुसार, करनाल जिले में ही कौरव पांडवो-का प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया था। अनेक शताब्दियों के बाद भी नगर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में कोई परिवर्तन नहीं आया है।
सन् 1961 में करनाल के श्री बनारसी लाल चावला के घर में एक शिशु का जन्म हुआ। धाय के कथनानुसार, संज्योति (माँ) को लगा कि जन्म लेनेवाला शिशु लगातार उसके पेट में लात मार रहा है, जिससे उसे सुखद आभास हुआ कि वह लड़का ही होगा। पहले से उसके दो लड़कियाँ व एक लड़का था; किंतु जब बनारसी लाल व संज्योति के घर चौथा बच्चा पैदा हुआ तो वह लड़की थी, जो बहुत चुस्त व हृष्ट-पुष्ट दिखाई दे रही थी। ऐसी बच्ची को देखकर माता-पिता को आश्चर्य हुआ। चावला परिवार अभी हाल ही में करनाल आया था। विभाजन के बाद हजारों परिवारों की तरह बनारसी लाल भी पाकिस्तान से विस्थापित होकर यहाँ पहँचे थे। बनारसी लाल ने जब पाकिस्तान के नगर गुजराँवाला को छोड़ा था तब उन्होंने पहला पड़ाव लुधियाना में डाला था। शरणार्थी होने के कारण इन्हें हर काम नए सिरे से शुरू करना था और अपने परिवार में श्री चावला को परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अनेक व्यवसाय करने पड़े, यहाँ तक की छोटे-छोटे बरतनों को लेकर गली-गली घूमकर बेचा भी। किंतु समयानुसार अपने व्यवसाय में परिवर्तन के साथ करनाल में प्रगति की सीढ़ी चढ़ने लगे। यद्यपि बढ़ते परिवार के साथ करनाल आने तक उनकी प्रगति बहुत धीमी थी। जब वे करनाल में आए थे तब वह एक कस्बे जैसा ही था। वहाँ रहते हुए उन्होंने उस कस्बे में कपड़े की अपनी दुकान के साथ ही एक दोमंजिला मकान खरीद लिया। कुछ दिनों बाद उन्होंने टायर उत्पादन का काम शुरू किया, जो बहुत ही लाभकारी सिद्ध हुआ। किंतु चावला परिवार ने यह सब करते हुए भी अपनी आध्यात्मिकता बनाए रखी। बनारसी लाल के माता-पिता घरद्वार छोड़ करनाल के बाहर एक कुटिया में रहने लगे। परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का था। जहाँ बनारसी लाल स्वयं नित्य ‘गुरू ग्रंथ साहिब’ का पाठ करते थे वहीं संज्योति का झुकाव पुणे के स्वामी रजनीश के विचारों की ओर बढ़ने लगा था। खान-पान के मामले में भी चावला परिवार पूरी तरह सात्त्विक था। परिवार के सभी लोग शाकाहारी थे। स्वयं कल्पना ने जीवन भर, अंतरिक्ष यात्री होने तक, सात्विक वृत्ति को निभाया।
मोंटू (परिवार के लोग प्यार से कल्पना को इसी नाम से पुकारते थे) के जीवन में संघर्ष के दिन पूरे नहीं हुए थे। पारिवारिक व्यवसाय में काफी प्रगति होने के बाद भी बनारसी लाल चावला ने व्यवसाय के छोटे-मोटे मूल तत्त्वों को नहीं छोड़ा। एक तरह से धंधे को शून्य से शुरू कर बहुत ऊँचाई तक पहुँचा दिया था। टायर बनाने की स्वदेशी मशीन अपने हाथों तैयार करने के लिए श्री चावला महामहिम राष्ट्रपति से सम्मानित भी हुए। ‘परिश्रम करने से कभी हानि नहीं होती’ ऐसा चावला परिवार के सभी लोग मानते थे। 17 फरवरी, 2003 को कोलंबिया की उड़ान पर जाने से पूर्व कल्पना ने ‘इंडिया टुडे’ के प्रतिनिधि से कहा था, ‘परिस्थितियाँ कैसी भी हों, मेहनत करते रहने से सपने साकार होने में सहायता अवश्य मिलती है।’
अपने पिता के अनुभवों से उसने कितनी सीख ली है, यह उसके सरल स्वभाव एवं मधुर मुसकान के पीछे ढक सा गया था। उस छोटी सी काली आँखोंवाली लड़की ने परिवार की परंपरा के अनुसार परिश्रम व दृढ़ निश्चय के गुणों को आत्मसात् कर लिया था, इसका पता बहुत वर्षों बाद चला था। एक के बाद एक अपने संकल्प को पूरा करने में मोंटू पूरी तरह सफल होती गई थी और यही कारण था कि वह एक लड़की के रूप में भी सभी बाधाओं को पार करती रही। ह्यूस्टन में शोक व्यक्त करने आईं उसकी कुछ सहेलियों से बात करते हुए कल्पना की माँ ने बताया, ‘कल्पना ने जन्म तो हमारे परिवार में लिया था, पर दिमाग उसका अपना था।’
कल्पना को करनाल जैसे छोटे नगर में आयु बढ़ने के साथ-साथ अनेक अनुभव हुए। उस समय लड़कियों को पढ़ाई की सुविधा देना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात थी। बहुत थोड़े परिवारों में ही शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाता था। कल्पना के सहपाठियों के अनुसार, करनाल में पचास छात्रों की कक्षा में मुश्किल से पाँच लड़कियाँ होती थीं। शिक्षा के मामले में मोंटू का परिवार काफी आगे था। बड़ी बहन सुनीता खेलों में अग्रणी थी। मोंटू जब पढ़ने योग्य हुई तो परिवार में धन की कमी न थी, फिर भी माता-पिता कल्पना को घर से बहुत दूर नहीं भेजना चाहते थे, इसलिए घर के नजदीक स्थित टैगोर बाल निकेतन में मोंटू का नाम लिखवाया गया।
कैप्टन डी. शरण, जो पास के गाँव में ही पला-बढ़ा और इंडियन एयरलाइंस में विमान चालक है-वही पायलट, जिसका विमान काठमांडो में अपहृत कर कंधार ले जाया गया था-अपने संस्मरण में याद करता है कि टैगोर बाल निकेतन नगर के गिने-चुने विद्यालयों में से एक था। उस समय महिला-शिक्षा को प्रोत्साहन नहीं मिलता था। एक कक्षा में मुश्किल से तीन लड़कियाँ होती थीं। करनाल जैसे कस्बे में किसी लड़की का शिक्षा में आगे बढ़ना बड़ा मुश्किल था। यहाँ तक की लड़कों के लिए भी पढ़ाई उतनी सरल नहीं थीं। उसे नित्य कॉलेज जाने और बाद में फ्लाइंग क्लब में उड़ान संबधी प्रारंभिक प्रशिक्षण लेने के लिए काफी दूर साइकिल से जाना पड़ता था।
टैगोर बाल निकेतन नगर का कोई बहुत अच्छा स्कूल नहीं था, फिर भी वह जिस तरह से स्थापित किया गया था तथा संचालित होता था उसमें वह विशिष्ट था। इसकी स्थापना व संचालन ‘बड़ी दीदी’ के नाम से प्रख्यात पुष्पा रहेजा किया करती थीं। वह सभी बच्चों को अपने परिवार के सदस्यों की तरह रखती थीं। स्वयं अविवाहित होने के कारण यह उनके लिए सुविधाजनक भी था। स्नेहिल स्वभाव और पढ़ाई में अभिरूचि ने कल्पना के शिक्षकों को बहुत प्रभावित किया। प्रकृति से ही स्फूर्ति व शक्ति प्राप्त कल्पना समय-समय पर अपने सहपाठियों को लेकर स्थानीय पार्कों में पिकनिक के लिए जाया करती थी। ऐसे अवसरों पर वह उन्हें उत्साहित करती थी और कहती थी कि कुछ देर के लिए वास्विकता को भुलाकर मान लो कि तुम सपनों में बहुत दूर जा चुकी हो, जहाँ तुम्हें आनंद के कुछ क्षण प्राप्त होते हैं। कल्पना के लिए ये सपने बढ़-चढ़कर सच सिद्ध हुए।
उसके अधिकांश मित्र उसे याद करते हुए कहते हैं कि बचपन से ही वह लड़कों के आगे नहीं तो उनकी बराबरी पर अवश्य रहती थी। शालीनता से कटे हुए बाल और चुस्त-दुरूस्त पोशाक को उसके सहपाठी याद करते हैं। कल्पना सदा अपने विचारों के अनुसार चलती थी। अपने भाई द्वारा प्रोत्साहित करने पर उसने चौदह वर्ष की आयु में ही कार चलाना सीख लिया था।
कल्पना अपने बचपन की गरमी के दिनों की रातें बहुत यादगार क्षण के रूप में सँजोए हुए थी। उत्तर भारत की तपती हुई गरमी में जब दिन भर चलती लू जीना मुश्किल कर देती थी तब रात की ही प्रतीक्षा रहती थी। उस समय ऐसी परंपरा थी, विशेषकर जब बिजली गुल होती थी, कि लोग अपनी चापाइयाँ बाहर निकाल लेते थे। भारत में गरमियों में प्रायः लोग खुले आसमान के नीचे ही सोते हैं। तापमान काफी गिर जाया करता था। घास की रस्सियों से बुनी बाँस की चारपाई चावला परिवार में पर्याप्त संख्या में थीं। लगातार इस्तेमाल और अधिक लोगों के बैठने से चारपाइयाँ प्रायः ढ़ीली हो जाती थीं। कल्पना प्रायः पीठ के बल लेटे और चादर ओढ़कर आसमान की ओर निरन्तर देखा करती थी। तारा गणों की ओर निहारते हुए कभी-कभी टूटते तारे भी दिखाई देते थे। ऐसे समय आश्चर्य और कौतूहलवश कुछ मूल प्रश्न कल्पना के मन में उत्पन्न होते थे और इन्हीं विचारों ने उसे कोलंबिया की अंतरिक्ष उड़ान तक पहुँचाया। अंतरिक्ष उड़ान शुरू करने से पूर्व उसने ‘इंडिया टुडे’ को एक साक्षात्कार में बताया था कि शायद यहीं से उसे अंतरिक्ष यात्रा करने की सूझी थी-बिना सोचे विचारे।
इस समय बाहर अंधेरा है। यान चालकों को शटल यान के बाहर के दृश्य ठीक से दिखाई नहीं दे रहे हैं। यही वह समय था जब कोलंबिया को पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करना था। उड़ान डेक पर लगे हुए परातकनीक यंत्रों पर प्रकाश की किरणें फैलीं, तभी कोलंबिया ने पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया। बाहर हल्का गुलाबी रंग बिखरा था। अन्दर क्लार्क शटल की छत पर एक खिड़की से बाहर का दृश्य चित्रित करने के लिए वीडियो कैमरे को घुमाया। कर्नल हस्बेंड ने परिहास में कहा, ‘देखो, जैसे कोई वात्या भट्टी हो, ऐसे में बाहर जाना ठीक नहीं।’
इस बीच उड़ान डेक पर फैले केबल पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के कारण नीचे की ओर झुकने लगे थे। गंतव्य केप केनेवरल अंतरिक्ष केन्द्र केवल आधा घंटे की दूरी पर था, जहाँ कोलंबिया को उतरना था। प्रातः के 8.30 बजे थे। उधर चावला दल के परिवार जन शटल यान की प्रतीक्षा में आतुरता से इधर-उधर टहल रहे थे। गत रात्रि को फ्लोरिडा पहुँचे वे सभी लोग सुबह सात बजे से ही जगे हुए थे। उस भीड़ में ही कहीं कल्पना का पति जीन-पीयरे हैरिसन भी था। कल्पना की भतीजियाँ इस अवसर के लिए सज-सँवर कर आई थीं। कल्पना लगभग तीन सप्ताह पूर्व अपने दूसरे अभियान पर निकली थी और वह पति से मिलने के लिए उसकी प्रतीक्षा नहीं कर सकी थी। ह्यूस्टल में उसके घर पर केवल माँ ही रह गई थी। परिवार के शेष सभी सदस्य फ्लोरिडा स्थित अंतरिक्ष केंन्द्र पर खड़े उत्सुकता से शटल यान की प्रतीक्षा कर रहे थे। वे इस ऐतिहासिक क्षण पर अपनी मोंटू (कल्पना) के साथ खुशी मनाने के लिए भारत से वहाँ आए थे।
अन्य स्थानों पर अनेक लोग अपने-अपने टेलीविजन के सामने बैठे हुए कोलंबिया यान को एक सफेद लकीर के रूप में स्क्रीन पर देख रहे थे। यान के धरती पर उतरने का दृश्य दिखाया जा रहा था। ह्यूस्टन स्थित केनेडी अंतरिक्ष केन्द्र के नियंत्रण कक्ष में नासा के वैज्ञानिक शटल यान के उतरने की सामान्य प्रक्रिया पूरी कर रहे थे। आज आसमान साफ है। मेक्सिको की खाड़ी से किसी प्रकार के आँधी-तूफान के उठने की कोई सूचना नहीं है सभी कुछ ठीक है। ध्वनि की गति से बीस गुना तीव्र गति से कोलंबिया यान अभी भी लगभग पाँच लाख फीट की ऊँचाई पर आकाश में उड़ रहा था। लेकिन अब प्रतीक्षा समाप्त हुई और अंतरिक्ष यान ने पृथ्वी के वायुमंडल को चीरते हुए नीचे उतरना आरंभ किया।
विश्व के दूसरे छोर स्थित उत्तर भारत में हरियाणा के शहर करनाल में उत्सव जैसा माहौल है। वहाँ शीतकाल के अंतिम दिनों की साँझ की वेला है। टैगोर बाल निकेतन के लगभग तीन सौ छात्र अपने विद्यालय की प्रतिभावान् पूर्व छात्रा कल्पना चावला के अंतरिक्ष यात्रा से सकुशल वापस आने को उत्सव के रूप में मनाने के लिए एकत्र हुए हैं। निश्चय ही पूरे करनाल शहर के लिए यह घटना एक समारोह जैसी है।
नक्षत्रों पर नजर रखनेवाले संसार के लगभग सभी लोग कोलंबिया शटल यान की अंतरिक्ष यात्रा के अंतिम कुछ घंटों के मार्ग पर अपनी दृष्टि गड़ाए हुए हैं। वे स्क्रीन पर सफेद लकीर के उभरने की प्रतीक्षा में हैं। कैलिफोर्निया में कुछ सौभाग्यशाली लोगों ने शटल को लगभग 60 कि. मी. की ऊँचाई पर देखा; किंतु कुछ लोगों को लगा जैसे कोलंबिया के टुकड़े गिर रहे हों। सहसा कुछ मिनटों के बाद टेक्सास के ऊपर एक जोरदार धमाका सुनाई दिया, जिससे खिड़कियाँ तक चटकने लगीं। केप केनेवरल में प्रातः के 9 बजे हैं। ह्यूस्टन कमान केन्द्र में घबराहट फैल गई। कमान केन्द्र द्वारा दिए गए संदेश पर कर्नल हस्बेंड का उत्तर बीच में ही कट गया और कोलंबिया से संपर्क भी टूट गया। भूमि पर उतरने से दो मिनट पहले जे पी (जीन-पीयरे) को शटल के अपेक्षित धमाके सुनाई नहीं दिए।
जैसे-जैसे समय गुजरता गया, खामोशी गहराने लगी थी। पृथ्वी पर जमीनी रख-रखाव दल को लगा कि कुछ गड़बड़ हो गई है। टेलीविजन पर सफेद लकीर अनेक सफेद धब्बों में परिवर्तित होने लगी थी। संसार भर में अंतरिक्ष यात्रा की सफलता को लेकर कई प्रश्न उठने लगे थे। फोन-पर-फोन बजने लगे थे। यान के उतरने के स्थान पर अधिकारीगण अपने-अपने सेलफोन कान में लगाए दर्शक दीर्घा को ताकते बेचैन हो रहे थे। टेलीविजन कैमरा झूठ नहीं बोलता। कोलंबिया शटल यान ध्वस्त हो चुका था और उसके टुकड़े अमेरिका के लुसियाना, टेक्सास व अर्कन्सास आदि शहरों के ऊपर गिरकर बिखर रहे थे।
भरी दुपहरी में भी वातावरण में अंधकार-सा छा गया। केनेडी अंतरिक्ष केन्द्र के सभी कर्मचारी हतप्रद हो गए। यान चालक दल के परिवारजनों को केनेवरल में एकत्रित किया जाने लगा। शटल का आपत्काल घोषित किया गया। ह्यूस्टन में कल्पना के परिवारजनों को टेवीविजन स्क्रीन पर उपस्थित दृश्य पर विश्वास नहीं हो रहा था। क्या मोंटू घर वापस नहीं आएगी ? उसके ग्रहनगर में बच्चों का समारोह खत्म हो गया। उसके बदले टैगोर बाल निकेतन के छात्रों सहित अन्य सारे जन अपने प्रकाशमान सितारे के शोक में एक अरब देशवासियों के साथ सम्मिलित हो गए। कल्पना के साथ ही अंतरिक्ष यात्रा के अन्य छह बहादुरों का भी आकस्मिक अंत हो गया।
इकतालिस वर्षीया कल्पना चावला अपने पीछे अनेक अनुत्तरित प्रश्न छोड़ गई है। करनाल की विलक्षण बेटी सफलतापूर्वक ऐसी कठिन यात्रा कर सकी, जो न केवल महाद्वीपों को लाँघनेवाली थी अपितु भिन्न संस्कृतियों से जुड़ी थी और अंततः स्वयं अंतरिक्ष में खो गई। कल्पना ने अन्य लोगों से अलग संपन्न परिवार के वैभवपूर्ण जीवन से बाहर निकलकर विश्व की खोज करनी चाही और पर प्रतिकूल परिस्थिति को चुनौती की तरह स्वीकार किया। अंधविश्वासों और रूढ़ियों से ऊपर उठकर छोटे कद की वह दुबली-पतली लड़की अपनी मधुर मुसकान एवं दृढ़ संकल्प के साथ अपने सपनों को साकार करती चली गई। कल्पना की यह कहानी करनाल से आरंभ हुई और अनेक अविश्वसनीय घटनाओं सहित उसके जीवन के साथ जुड़ी हुई है। करनाल, जहाँ वह बड़ी हुई करनाल नगर नई दिल्ली वह चंडीगढ़ के मध्य जी. टी. रोड पर यमुना के पश्चिमी किनारे पर स्थित है इस नगर के साथ की ऐतिहासिक तथ्य जुड़े हुए हैं, जिनमें से कुछ महाभारत से संबद्ध हैं। किंवदंती के अनुसार, करनाल जिले में ही कौरव पांडवो-का प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया था। अनेक शताब्दियों के बाद भी नगर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में कोई परिवर्तन नहीं आया है।
सन् 1961 में करनाल के श्री बनारसी लाल चावला के घर में एक शिशु का जन्म हुआ। धाय के कथनानुसार, संज्योति (माँ) को लगा कि जन्म लेनेवाला शिशु लगातार उसके पेट में लात मार रहा है, जिससे उसे सुखद आभास हुआ कि वह लड़का ही होगा। पहले से उसके दो लड़कियाँ व एक लड़का था; किंतु जब बनारसी लाल व संज्योति के घर चौथा बच्चा पैदा हुआ तो वह लड़की थी, जो बहुत चुस्त व हृष्ट-पुष्ट दिखाई दे रही थी। ऐसी बच्ची को देखकर माता-पिता को आश्चर्य हुआ। चावला परिवार अभी हाल ही में करनाल आया था। विभाजन के बाद हजारों परिवारों की तरह बनारसी लाल भी पाकिस्तान से विस्थापित होकर यहाँ पहँचे थे। बनारसी लाल ने जब पाकिस्तान के नगर गुजराँवाला को छोड़ा था तब उन्होंने पहला पड़ाव लुधियाना में डाला था। शरणार्थी होने के कारण इन्हें हर काम नए सिरे से शुरू करना था और अपने परिवार में श्री चावला को परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अनेक व्यवसाय करने पड़े, यहाँ तक की छोटे-छोटे बरतनों को लेकर गली-गली घूमकर बेचा भी। किंतु समयानुसार अपने व्यवसाय में परिवर्तन के साथ करनाल में प्रगति की सीढ़ी चढ़ने लगे। यद्यपि बढ़ते परिवार के साथ करनाल आने तक उनकी प्रगति बहुत धीमी थी। जब वे करनाल में आए थे तब वह एक कस्बे जैसा ही था। वहाँ रहते हुए उन्होंने उस कस्बे में कपड़े की अपनी दुकान के साथ ही एक दोमंजिला मकान खरीद लिया। कुछ दिनों बाद उन्होंने टायर उत्पादन का काम शुरू किया, जो बहुत ही लाभकारी सिद्ध हुआ। किंतु चावला परिवार ने यह सब करते हुए भी अपनी आध्यात्मिकता बनाए रखी। बनारसी लाल के माता-पिता घरद्वार छोड़ करनाल के बाहर एक कुटिया में रहने लगे। परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का था। जहाँ बनारसी लाल स्वयं नित्य ‘गुरू ग्रंथ साहिब’ का पाठ करते थे वहीं संज्योति का झुकाव पुणे के स्वामी रजनीश के विचारों की ओर बढ़ने लगा था। खान-पान के मामले में भी चावला परिवार पूरी तरह सात्त्विक था। परिवार के सभी लोग शाकाहारी थे। स्वयं कल्पना ने जीवन भर, अंतरिक्ष यात्री होने तक, सात्विक वृत्ति को निभाया।
मोंटू (परिवार के लोग प्यार से कल्पना को इसी नाम से पुकारते थे) के जीवन में संघर्ष के दिन पूरे नहीं हुए थे। पारिवारिक व्यवसाय में काफी प्रगति होने के बाद भी बनारसी लाल चावला ने व्यवसाय के छोटे-मोटे मूल तत्त्वों को नहीं छोड़ा। एक तरह से धंधे को शून्य से शुरू कर बहुत ऊँचाई तक पहुँचा दिया था। टायर बनाने की स्वदेशी मशीन अपने हाथों तैयार करने के लिए श्री चावला महामहिम राष्ट्रपति से सम्मानित भी हुए। ‘परिश्रम करने से कभी हानि नहीं होती’ ऐसा चावला परिवार के सभी लोग मानते थे। 17 फरवरी, 2003 को कोलंबिया की उड़ान पर जाने से पूर्व कल्पना ने ‘इंडिया टुडे’ के प्रतिनिधि से कहा था, ‘परिस्थितियाँ कैसी भी हों, मेहनत करते रहने से सपने साकार होने में सहायता अवश्य मिलती है।’
अपने पिता के अनुभवों से उसने कितनी सीख ली है, यह उसके सरल स्वभाव एवं मधुर मुसकान के पीछे ढक सा गया था। उस छोटी सी काली आँखोंवाली लड़की ने परिवार की परंपरा के अनुसार परिश्रम व दृढ़ निश्चय के गुणों को आत्मसात् कर लिया था, इसका पता बहुत वर्षों बाद चला था। एक के बाद एक अपने संकल्प को पूरा करने में मोंटू पूरी तरह सफल होती गई थी और यही कारण था कि वह एक लड़की के रूप में भी सभी बाधाओं को पार करती रही। ह्यूस्टन में शोक व्यक्त करने आईं उसकी कुछ सहेलियों से बात करते हुए कल्पना की माँ ने बताया, ‘कल्पना ने जन्म तो हमारे परिवार में लिया था, पर दिमाग उसका अपना था।’
कल्पना को करनाल जैसे छोटे नगर में आयु बढ़ने के साथ-साथ अनेक अनुभव हुए। उस समय लड़कियों को पढ़ाई की सुविधा देना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात थी। बहुत थोड़े परिवारों में ही शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाता था। कल्पना के सहपाठियों के अनुसार, करनाल में पचास छात्रों की कक्षा में मुश्किल से पाँच लड़कियाँ होती थीं। शिक्षा के मामले में मोंटू का परिवार काफी आगे था। बड़ी बहन सुनीता खेलों में अग्रणी थी। मोंटू जब पढ़ने योग्य हुई तो परिवार में धन की कमी न थी, फिर भी माता-पिता कल्पना को घर से बहुत दूर नहीं भेजना चाहते थे, इसलिए घर के नजदीक स्थित टैगोर बाल निकेतन में मोंटू का नाम लिखवाया गया।
कैप्टन डी. शरण, जो पास के गाँव में ही पला-बढ़ा और इंडियन एयरलाइंस में विमान चालक है-वही पायलट, जिसका विमान काठमांडो में अपहृत कर कंधार ले जाया गया था-अपने संस्मरण में याद करता है कि टैगोर बाल निकेतन नगर के गिने-चुने विद्यालयों में से एक था। उस समय महिला-शिक्षा को प्रोत्साहन नहीं मिलता था। एक कक्षा में मुश्किल से तीन लड़कियाँ होती थीं। करनाल जैसे कस्बे में किसी लड़की का शिक्षा में आगे बढ़ना बड़ा मुश्किल था। यहाँ तक की लड़कों के लिए भी पढ़ाई उतनी सरल नहीं थीं। उसे नित्य कॉलेज जाने और बाद में फ्लाइंग क्लब में उड़ान संबधी प्रारंभिक प्रशिक्षण लेने के लिए काफी दूर साइकिल से जाना पड़ता था।
टैगोर बाल निकेतन नगर का कोई बहुत अच्छा स्कूल नहीं था, फिर भी वह जिस तरह से स्थापित किया गया था तथा संचालित होता था उसमें वह विशिष्ट था। इसकी स्थापना व संचालन ‘बड़ी दीदी’ के नाम से प्रख्यात पुष्पा रहेजा किया करती थीं। वह सभी बच्चों को अपने परिवार के सदस्यों की तरह रखती थीं। स्वयं अविवाहित होने के कारण यह उनके लिए सुविधाजनक भी था। स्नेहिल स्वभाव और पढ़ाई में अभिरूचि ने कल्पना के शिक्षकों को बहुत प्रभावित किया। प्रकृति से ही स्फूर्ति व शक्ति प्राप्त कल्पना समय-समय पर अपने सहपाठियों को लेकर स्थानीय पार्कों में पिकनिक के लिए जाया करती थी। ऐसे अवसरों पर वह उन्हें उत्साहित करती थी और कहती थी कि कुछ देर के लिए वास्विकता को भुलाकर मान लो कि तुम सपनों में बहुत दूर जा चुकी हो, जहाँ तुम्हें आनंद के कुछ क्षण प्राप्त होते हैं। कल्पना के लिए ये सपने बढ़-चढ़कर सच सिद्ध हुए।
उसके अधिकांश मित्र उसे याद करते हुए कहते हैं कि बचपन से ही वह लड़कों के आगे नहीं तो उनकी बराबरी पर अवश्य रहती थी। शालीनता से कटे हुए बाल और चुस्त-दुरूस्त पोशाक को उसके सहपाठी याद करते हैं। कल्पना सदा अपने विचारों के अनुसार चलती थी। अपने भाई द्वारा प्रोत्साहित करने पर उसने चौदह वर्ष की आयु में ही कार चलाना सीख लिया था।
कल्पना अपने बचपन की गरमी के दिनों की रातें बहुत यादगार क्षण के रूप में सँजोए हुए थी। उत्तर भारत की तपती हुई गरमी में जब दिन भर चलती लू जीना मुश्किल कर देती थी तब रात की ही प्रतीक्षा रहती थी। उस समय ऐसी परंपरा थी, विशेषकर जब बिजली गुल होती थी, कि लोग अपनी चापाइयाँ बाहर निकाल लेते थे। भारत में गरमियों में प्रायः लोग खुले आसमान के नीचे ही सोते हैं। तापमान काफी गिर जाया करता था। घास की रस्सियों से बुनी बाँस की चारपाई चावला परिवार में पर्याप्त संख्या में थीं। लगातार इस्तेमाल और अधिक लोगों के बैठने से चारपाइयाँ प्रायः ढ़ीली हो जाती थीं। कल्पना प्रायः पीठ के बल लेटे और चादर ओढ़कर आसमान की ओर निरन्तर देखा करती थी। तारा गणों की ओर निहारते हुए कभी-कभी टूटते तारे भी दिखाई देते थे। ऐसे समय आश्चर्य और कौतूहलवश कुछ मूल प्रश्न कल्पना के मन में उत्पन्न होते थे और इन्हीं विचारों ने उसे कोलंबिया की अंतरिक्ष उड़ान तक पहुँचाया। अंतरिक्ष उड़ान शुरू करने से पूर्व उसने ‘इंडिया टुडे’ को एक साक्षात्कार में बताया था कि शायद यहीं से उसे अंतरिक्ष यात्रा करने की सूझी थी-बिना सोचे विचारे।
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