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चन्द्रेश गुप्त का रचना संसार

राजेन्द्र तिवारी

विनोद श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2024
पृष्ठ :416
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16997
आईएसबीएन :9781613017357

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विलक्षण साहित्यकार चन्द्रेश गुप्त का समग्र रटना संसार

एक अभूतपूर्व गीत महोत्सव और भाई चन्द्रेश गुप्त

- राम किशोर वाजपेयी

 

जीवन संघर्ष किसी न किसी रूप में प्रायः सभी के साथ रहता है। लेकिन जिसने नाक पर घूँसे की चोट खायी हो, वह कभी दर्द की परिभाषा नहीं पूछता। भाई चन्द्रेश गुप्त का जीवन संघर्ष ऐसा ही था और वे सौम्य व शान्त भाव से अपने पूरे जीवन भर मुस्कुराते रहे। यद्यपि इनके द्वारा रचित लगभग तीन सौ पुस्तकें रहीं। किन्तु इनका कोई लेखा-जोखा नहीं है। उनके दैनिक जीवन की अपेक्षायें और आवश्यकतायें उनका सब कुछ हड़प कर गयीं, फिर भी पहचान के लिये जो शेष रहा वह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है।

चन्देश जी आयु में मुझसे लगभग पाँच वर्ष बड़े थे। मैं उनका सम्मान करता था और वे मुझे अपने बड़प्पन के भाव से विमुख ही रखते थे। समानता और स्नेह ही उनका स्वभाव था। कानपुर की साठोत्तरी पीढ़ी के वह अग्रज रचनाकार थे। उनका स्वर और तेवर वामपन्थियों की भाँति क्रान्तिकारी तो नहीं था लेकिन उनकी रचनाधर्मिता एक ओर संघर्षशील और दृढ़ मूल्यों वाली थी तो दूसरी ओर विगत पीढ़ी के प्रति समन्वयकारी थी। एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में इनकी स्वीकार्यता अभी भी है।

भाई चन्द्रेश गुप्त के व्यक्तित्व का एक अन्य पहलू भी बहुत प्रभावशाली और प्रेरणादायक रहा है जिसकी चर्चा कम ही होती है। वह है उनके एक सफल और अद्भुत आयोजक का, एक सूझ-बूझ वाले संयोजक का। इस भूमिका में वह समारोह की सफलता का श्रेय आत्मीय उदारता के साथ अन्यों को सदैव देते रहे। कानपुर नगर की तत्कालीन स्वनामधन्य संस्थायें वासन्ती और नटराज के चर्चित समारोह इसके मुखर और बड़े उदाहरण हैं।

मुझे भली-भाँति याद है कि यह बात वर्ष 1978 की है। उन दिनों भारतीय स्टेट बैंक का स्थानीय प्रधान कार्यालय जिसके अन्तर्गत लगभग समस्त उत्तर प्रदेश (तब उत्तराखण्ड का गठन नहीं हुआ था) की शाखायें संचालित होती थीं, कानपुर मण्डल के नाम से पुकारा जाता था और यह माल रोड पर वर्तमान कानपुर के मुख्य शाखा प्रांगण में ही स्थित था।

मैं बैंक की ट्रेड यूनियन स्टेट बैंक आफ इण्डिया स्टाफ एसोसिऐशन में सक्रिय था। कानपुर मण्डल की कर्मचारी कल्याण समिति के सचिव हमारे प्रिय साथी कामरेड पी. एस. शुक्ल थे। हम लोगों ने बैंक की ओर से एक अखिल भारतीय कवि-सम्मेलन आयोजित कराने का संकल्प लिया। बैंक का प्रतिनिधित्व औपचारिक रूप से तो मैं कर रहा था किन्तु व्यावहारिक स्तर पर इस उत्तरदायित्व का निर्वहन भाई चन्द्रेश गुप्त ने ही किया था। उन दिनों बैंक में मेरे सहयोगी श्री विजय किशोर निगम ‘गुलशन’ के संयोजकत्व में कला परिषद का गठन हो चुका था। कला परिषद द्वारा बैंक परिसर में आयोजित अपरान्ह मासिक कवि गोष्ठियाँ बहुत चर्चित थीं और इनमें भाई चन्द्रेश गुप्त की अग्रणी भूमिका रहा करती थी। उस वर्ष शरद पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित होने वाले इस कवि सम्मेलन में चन्द्रेश जी के सानिध्य में शारदिक गीत महोत्सव का नाम दिया गया जो सफलता की दृष्टि अभूतपूर्व तो रहा ही और कई अन्य दृष्टियों से ऐतिहासिक भी सिद्ध हुआ। इस गीत महोत्सव के आयोजन के अवसर पर उद्घाटन की संक्षिप्त औपचारिकताओं के बाद गीत महोत्सव का संचालन अपनी हृदयग्राही वाणी से गरिमायुक्त रचनाओं के लिये देश के जाने-पहचाने कवि श्री उमाकान्त मालवीय (प्रयाग) को सौंपा गया। आयोजन में पधारे अन्य कवियों में सर्वश्री धर्मजीत सरल, शिवओम अम्बर, दिलजीत सिंह रील, अमरनाथ श्रीवास्तव, विष्णुकुमार त्रिपाठी राकेश, सूर्यभानु गुप्त, भारत भूषण, कैलाश गौतम, शिव बहादुर सिंह भदौरिया, कन्हैया लाल नन्दन, रमानाथ अवस्थी, वीरेन्द्र मिश्र के अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर सर्वश्री राम स्वरूप सिन्दूर, चन्द्रेश गुप्त, शतदल, सन्तोष कुमार परिहार, रमेश चन्द्र सक्सेना आदि मंच की शोभा बढ़ा रहे थे। इस अभूतपूर्व गीत-महोत्सव की महत्ता-चर्चा इसमें आमंत्रित कवियों और उनके द्वारा पढ़ी गयी रचनाओं के कारण हुयी। दूसरे गीत-महोत्सव का प्रचार-प्रसार अपने-आप में अनूठे ढंग से किया गया था। स्थानीय समाचार पत्रों के माध्यम से आयोजन की घोषणा जोर-शोर के साथ की गयी। आमंत्रित कवियों की स्वीकृतियाँ भी समय-समय पर चर्चा का विषय बनायी गयीं। सफल आयोजन के पश्चात स्थानीय समाचार-पत्रों ने गीत-महोत्सव की समीक्षा सम्पादकीय पृष्ठों पर विस्तार से प्रकाशित की थी। यह एक ऐसा आयोजन था जिसका राज्य स्तर पर प्रसारण दूरदर्शन से तीन किश्तों में किया गया था। इन सभी के पार्श्व में भाई चन्द्रेश गुप्त की भूमिका आज भी स्मरणीय और वन्दनीय है।


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