नई पुस्तकें >> तपस्विनी सीता तपस्विनी सीतात्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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सीता चरित्र पर खण्ड काव्य
प्राक्कथन
सुधीवृन्द! मानव जीवन को, जो इस धरा पर जन्म लिया है, अच्छे और बुरे दिन दोनों ही देखने पड़ते हैं। फिर वे चाहे देवी-देवता मानव रूप में जन्मे हों या साधारण मनुष्य। त्रेता युग में श्री राम और माता सीता के रूप में स्वयं ईश्वर और माता लक्ष्मी ने जन्म लिया । कहते हैं सीता का जन्म उस समय हुआ जब महाराज जनक राज्य में अकाल पड़ने की वजह से ऋषियों द्वारा बताए गए उपाय के अनुसार हल जोत रहे थे। उस समय हल की फाल जमीन के नीचे किसी चीज से टकराई । महाराज जनक ने अपने सेवकों से जब उस वस्तु को निकालने के लिए कहा और सेवकों ने जब उस वस्तु को निकाला तो वह एक घड़ा था, जिसमें एक कन्या सो रही थी। महाराज उस कन्या को लेकर राजमहल आए और अपनी पत्नी माता सुनयना को सौंप दिया। माता ने उसे अपनी बड़ी संतान मान कर उसका लालन-पालन किया और उसका नाम 'सीता' रखा।
कन्या बड़ी हुई और माता ने एक दिन देखा कि सीता ने मन्दिर की सफाई करते समय शिव जी के पुराने धनुष को बाएँ हाथ से उठाकर उसके नीचे की जगह साफ की और पुनः धनुष को यथावत रख दिया। माता सुनयना ने महाराज के आने पर सारी बात बताई । महाराज ने सुनकर अपने मन में कुछ निश्चय किया और सीता के स्वयंवर की घोषणा की तथा प्रतिज्ञा रखी कि जो भी वीर पुरुष शिव धनुष का दो खण्ड कर देगा वही सीता को ब्याह कर ले जाएगा। सारी पृथ्वी से राजे-महाराजे आए और उसे तोड़ने की कोशिश की। परंतु कोई भी उस धनुष को तोड़ना तो दूर उठा भी नहीं सके।
उस समय सभा में महर्षि विश्वामित्र भी आमन्त्रित हुए थे जो श्री राम और श्री लक्ष्मण के साथ पधारे थे। महर्षि के आदेश पर श्री राम ने धनुष को तोड़ा और सीता जी को पत्नी के रूप में ग्रहण किया ।
सज्जनों कालक्रम में श्री राम का युवराज पद पर अभिषेक होने के समय माता कैकेई ने बाधा डाली और श्री राम को श्री लक्ष्मण और श्री सीता सहित वन को भेज दिया। श्री राम को यह पता था कि वन में राक्षस उन पर आक्रमण करेंगे, अतः माता सीता को अग्नि में वास करने को कहा तथा माया की सीता तैयार करके उन्हीं के साथ वन में रहने लगे। वन में श्री सीता जी का अपहरण राक्षस राज रावण के द्वारा हुआ और लंका पहुँच कर उन्हें अशोक वाटिका में रखा। श्री राम ने सीता माता का पता लगाकर स्वयं लंका पहुँचकर रावण की हत्या की और माता सीता को मुक्त कराकर वापस अयोध्या आये।
युवावस्था में श्री राम का राज्याभिषेक और माता सीता का भगवान राम की पटरानी के रूप में सिंहासन पर अधिष्ठित होने का समय जब आया, माता कैकेई द्वारा बाधा डाली गई। वह भगवान राम का सीता को लेकर पहला वन गमन था। वन से वापस आने के बाद माता सीता के बारे में यह लांछन लगा कि सीता इतने दिनों तक रावण के पास रहीं अतः रावण उन्हें निश्चित रूप से भ्रष्ट किया होगा। इसके बाद भी श्रीराम उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार करके अयोध्या लाए हैं । इस अफवाह को श्री राम ने भी सुना और माता सीता को पुनः अकेली बन में रहने के लिए राजमहल से निकाल दिया।
सज्जनों, इसी कहानी पर आधारित यह काव्य है। कह नहीं सकता यह कहानी कितनी दूर तक सत्य है अथवा असत्य है। अतः जिन बुद्धिजीवी जनों को इस में त्रुटि दिखाई देती है उन्हें मेरा अनुरोध है मुझे सुझाव के साथ सूचित करें मैं सहर्ष उसे स्वीकार करूँगा।
काव्य की रचना में मेरे सबसे छोटे भाई श्री राजकुमार तिवारी एम.ए. बी.एड.(अंग्रेजी), ने संदर्भ के लिए कुछ प्राचीन पुस्तकें दीं, जिसके लिए मैं उन्हें हृदय से शुभाशीष देता हूँ और कृतज्ञता ज्ञापन करता हूँ। पुस्तक के प्रकाशक बन्धु को भी तहे दिल से आभार प्रकट करता हूँ।
जय श्री राम
भवदीय
त्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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